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आशा

12 फरवरी 2015

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वैसा जीना भी क्यआ जीना है जो , आशाविहीन हो ऐसा लगे जैसा, सरीर आत्मा विहीन हो , हर असफलता एअक अमृत है जैसी , जो आशाये बढ़ाये निरंतर मन की !!!! बस थोड़ा सवाद करबा है , पि जाओ मीरा बन जैसी .. फिर प्रभु तुमहे सफलता की राह दिखायेंगे और तुमहे सफल बनायेंगे ..,, एअस्थिर होना सवार्थ है ,, समाज देश की प्रगति जैसी आशाये मन की पहर जैसी आपने निरंतर सीढ़ियों से चढ़ते जाना है , और उस पहाड़ की चोटी पर जाकर इस्थिर अपने को कर न है ............

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अर्चना गंगवार

अर्चना गंगवार

उत्तम रचना

1 सितम्बर 2015

शब्दनगरी संगठन

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2 मई 2015

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कागज की नावो

11 फरवरी 2015
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वो कागज की नॉव याद है , वो बरसात की पानी याद है , और उन की हाथो में , कागज का फूल याद है ,... उन की हाथो का पीठ पर अस्पर्श याद है, वो मुझे उन का चिढ़ाना याद है , वो उन का मुस्कुराना याद है , और उन की आखो मे सागर जैसी लहरे याद है, वो उन का कुछ नहीं कहना याद है, उन का रुठ जाना याद है , वो

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आशा

12 फरवरी 2015
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वैसा जीना भी क्यआ जीना है जो , आशाविहीन हो ऐसा लगे जैसा, सरीर आत्मा विहीन हो , हर असफलता एअक अमृत है जैसी , जो आशाये बढ़ाये निरंतर मन की !!!! बस थोड़ा सवाद करबा है , पि जाओ मीरा बन जैसी .. फिर प्रभु तुमहे सफलता की राह दिखायेंगे और तुमहे सफल बनायेंगे ..,, एअस्थिर होना सवार्थ है ,, समाज देश क

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रेलवे से बढ़ती उम्मीदें

26 फरवरी 2016
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दिन-ब-दिन भारतीय रेलवे से लोगों की उम्मीदें बढ़ती जा रही है और इसकी हालत और सुविधाओं से निराशा बढ़ने की दर भी कम होने की गुंजाइश कमतर होती जा रही थी. रेल बजट में अब तक जो घोषणाएं की जाती थीं, वह निश्चित रूप से लोकप्रियता और वाहवाही की पटरियों से होकर गुजरती थी. साल-दर-साल रेलवे की हालत इसीलिए बिगड़ती भ

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