भाभी मां की कुछ दिन पहले ही मृत्यु हुई थी। जो एक छोटे बच्चे को जन्म देकर ही गुजर चुकी थी। घर की सारी रसोई और लालन-पालन की जिम्मेदारी मेरी मां पर आ गई थी। मेरी उम्र अभी 15 -16 वर्ष की ही थी। छोटा बच्चा जिसने अभी तक मां का दूध मुंह में नहीं लिया था। अक्सर बीमार रहता था। भैया अभी भी टेंशन में रहते थे। पिताजी अपने काम में व्यस्त थे। बीमार बच्चे को ले जाने की जिम्मेदारी अब मेरी थी। गांव में या गांव के आस-पास हॉस्पिटल की सुविधा नहीं होने के कारण। गांव से दूर शहर की और जाना पड़ता था। साथ ही कच्चा रास्ता होने के साथ 2 किलोमीटर चलने पर पक्की सड़क पर लोग पहुंचते थे। कुछ वर्ष बाद जैसे- तैसे बच्चा चलने फिरने लगने लगा। मैंने जीवन में अपनों के लिए अपने गांव की सेवा के लिए कुछ करने की ठान ली। मैंने कक्षा आठवीं परीक्षा गांव के पास वाले गांव पूरी करने के बाद । पास वाले शहर में जाकर पढ़ाई करना जरूरी समझा। 12वीं कक्षा पास करने के बाद। जीएनएम (G.N.M)डिप्लोमा एक नर्सिंग कोर्स होता है। तैयारी में लग गया साथ ही पढ़ाई भी जारी रखी। 3 साल कोर्स पूरा करने पर। हालांकि मैंने प्रैक्टिकल रूप में सभी बीमारी के लिए कोन सी दवा या टेबलेट दी जाती कौन सी बीमारी में कोनसी ड्रिप चढ़ाई जाती है। पास ही के सिटी हॉस्पिटल में कंपाउंडर के रूप में अस्थाई पर मंथ के हिसाब से रख लिया गया। डॉक्टर साहब द्वारा दिए गए निर्देशों की पालना करना। कभी रूम नंबर 6 में तो कभी रूम नंबर7 में अभी। तो कभी नर्ससिग वार्ड में नये रोगियों को संभालना पुरानो का ट्रीटमेंट जारी रखना।
बड़ा सिटी हॉस्पिटल होने के साथ ही यहां हर तरह के मरीज आते थे। कभी बड़ी एक्सीडेंट वाले तो कभी छोटी मोटी बुखार ,खांसी ,वाले।
मेरी रोजना की यही दिनचर्या थी सुबह जल्दी जाना शाम को लेट आना खाना बनाना और खाना लेकिन जब टाइम मिलता था ।किताबों के पन्ने पलट कर देख लेता था।
एक दिन आधे घंटा लेट हो चुका था क्योंकि पानी की लाइन खराब होने से प्लंम्बर आने में 15 मिनट लग चुके थे ।थोड़ा खाना खाया और साथ में टिफिन लेकर हॉस्पिटल की तरफ चल दिया।
डॉक्टर साहब ने फटकार लगाई। और कहा कि मेन वार्ड नंबर 6 में पहुंचीये। पेशेंट को अभी भर्ती किया है।
जी सर,
और वार्ड नंबर 6 की तरफ चल दिया।
मुझे दूर से ही कहराने( दर्द भरी रोने) की आवाज सुनाई दी । मैंने सोचा शायद बड़ा एक्सीडेंट या किसी का पेट दर्द कर रहा होगा। चलो चल कर देखता हूं।
जब मैंने जाकर देखा तो 28 वर्ष का नौजवान बेड पर लेटा हुआ था।
साथ ही दो लड़कियां जिनकी उम्र 5 से 7 साल और एक छोटा लड़का जिसकी उम्र 4 साल के करीब थी। जो एक औरत की गोद में बैठा था ।पास एक 60 साल का बुजुर्ग खड़ा हुआ था। इससे पता लगता है ।कि उस नौजवान के पिता ,पत्नी और उसके बच्चे हैं।
दाखिला कार्ड देखने पर पता चला कि उसका नाम श्यामू है जिसको मुह की कैंसर है।
उसके पिता से बात करने पर पता चला कि वे 10 वर्ष की उम्र में ही तंबाकू जर्दा गुटखा का सेवन करता रहता था।
श्यामू के पिता- और यह मेरा अकेला बेटा है इसकी मां भी गुजर चुकी है। समझाने पर इसने हमारी एक न मानी देखो ना बेटा मेरे से कहा इसके 2 बच्चिया और एक बच्चा है और शादी के बाद भी बहू ने बहुत समझाया।
हमारे पास जमीन जायदाद के नाम पर महज 2 बीघा मात्र है ।जो केवल भरण-पोषण योग्य है।
यह स्वयं भी कोई काम नहीं करता था।
मैंने कहा- ठीक है बाबू जी मैं देखता हूं
वे अभी भी दर्द से तड़प रहा था।
श्यामू ने लड़खड़ा थी। आवाज में कहां डॉक्टर साहब मेरे को ठीक कर दो मेरे बीवी बच्चे हे।
मैंने कहा श्यामू अपना मुंह खोलना देखने पर पता चला कि उसकी जीव में तंबाकू से एक बड़ी गांठ
बन चुकी थी ।
जो बोलने पर लड़खड़ा ने की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी।
जिसे ठीक होना नामुमकिन था।
मेरे पास इसका कोई रास्ता नहीं था सिवाय दर्द और नींद का इंजेक्शन लगाने के अलावा। जिससे उसे थोड़ी राहत मिल सके। थोड़ी देर बाद श्यामू को नींद आ चुकी थी।
मैंने कहा बाबूजी- एक तरफ ले जाकर शाम के पिता को पूरी बात बताएं।
आपने बहुत देर कर दी आने में इसकी जीव में बड़ी गांठ बन चुकी है ।जो एक घातक कैंसर का रूप है। हो सकता है कोई भी डॉक्टर इसको सही कर सकें।
श्यामू के पिता- मैं अपने बेटे को ऐसे मरने नहीं दूंगा इसके लिए भले ही मुझे कुछ करना पड़े।
मैंने कहा- ठीक है बाबू जी आप डॉक्टर साहब से लिखवा कर दवाइयां ले आइए।
शाम को 8:00 बज चुके थे । मेरा ड्यूटी से रूम पर जाना था।
खाना खाकर जैसे ही शाम को बिस्तर पर लेटा- श्यामू की दर्द भरी कहानी मेरी आंखों के सामने घूम रही थी।
की मां बाप अपने बच्चों को किस तरह पालते हैं। कितनी तकलीफ उठाते हैं। हर दर्द सहन करते हैं।स्वयं भूखा रहकर अपने बच्चों को खिलाते उनको बड़ा करते हैं । शादी - ब्याह करते हैं। लेकिन बच्चे ही अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आते।
यह सोचते हुए ऐसी झपकी (नींद )लगी। 5:00 बजे का अलार्म की आवाज सुनाई दी।
रोज की तरह टिफिन उठाकर रूम से हॉस्पिटल की तरफ चल दिया।
श्यामू को देखने की मेरी जिज्ञासा हुई।
श्यामू से बात करना अच्छा कुछ तकलीफ कम हुई उसने केवल सिर हिलाकर ही जवाब दिया।
उसके पिताजी बाजार गए थे कुछ दवाइयां लेने।
मैंने उन दो छोटी लड़कियों से पूछा बेटा कुछ खाया आपने।
उन्होंने ना में जवाब दिया। लंच रूम गया और मैंने अपना टिफिन उठा लाया। दोनों लड़कियों का थोड़ा थोड़ा खाना दे दिया। मैंने श्यामू की पत्नी से भी बोला लेकिन उन्होंने सिर हिला मना कर दिया।
इतने में श्यामू के पिता जी भी बाजार से आ गए थे।
मैंने बोला - बाबू जी डॉक्टर साहब ने क्या कहा।
श्यामू के पिता- एक तरफ ले जाकर बेटा डॉक्टर साहब ने जवाब दे दिया है कि इसके कैंसर का रोग गले तक जा पहुंचा है जिससे इसे सांस लेने में भी दिक्कत हो रही।
इसे कोई भी डॉक्टर नहीं बचा सकता।
दवाइयों से ही इसकी सांस चल रही है।
मे आज ही अपने पड़ोसी को अपनी जमीन को गिरवी(सूत पर )रख कर थोड़े पैसे लाया हूं। जिससे की दवाइयां आ सके। इतने पैसे भी नहीं है कि दूसरे शहर में जाकर श्यामू का इलाज करवा सकूं।
मैंने बोला- बाबूजी खाना खा लीजिए मेरे पास टिफिन रखा है।
श्यामू के पिता- नहीं बेटा बुढ़ापे में ऐसे ही भूख कम लगती है। और जिसका जवान बेटा मौत की गोदी में लेटा हुआ है । उसे भूख और नींद कहां से आएगी।
तभी अचानक मुझे याद आया कि वार्ड नंबर 7 में किसी नये पेशेंट को भर्ती करना।
मैंने कहा -ठीक है बाबू जी मुझे कुछ काम है। कुछ जरूरत पड़े तो कह देना।
यह सिलसिला चलता रहा।
बीच-बीच में देखने चल जाया करता था।
मैं डॉक्टर साहब से किसी विषय में बात कर रहा था। कि श्यामू के पिता घबराते हुए आऐ और बोले- डॉक्टर साहब जल्दी चलिऐ श्यामू की तबीयत ज्यादा खराब हो रही है।
मैं और डॉक्टर साहब श्यामू के पिताजी पीछे पीछे चल रहे थे। जैसे ही वार्ड नंबर 6 में पहुंचे। श्यामू दर्द से तड़प रहा था। कहराते हुई दर्द भरी आवाज में हकलाते हुए ।
धीरे से बोल डॉक्टर साहब अब मुझसे दर्द सहन नहीं होता।
मुझे कोई ऐसा इंजेक्शन लगाओ ताकि मेरी जीवन लीला समाप्त हो जाए।
डॉक्टर साहब बोले- हम जीवन देते हैं ।लेते नहीं
हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की लेकिन दर्द कम होने का नाम नहीं लिया।
और श्यामू तड़प-तड़प कर मौत की तरफ बढ़ता ही गया।
और वह आखरी चीख, श्यामू को सदा के लिए सुला गई।उनके परिवार को जीवन भर रुला कर चली गई।
मातम की आवाज पूरे हॉस्पिटल में फैल गई।
मेरा मन गद-गदा हो उठा। कि शायद श्यामू धूम्रपान (गलत नशे)का प्रयोग न करता था !आज उनका परिवार हंसता खेलता रहता।
शायद -पिताजी और अपनी पत्नी का कहना मानता।
न जाने कितने श्यामू और देखना बाकी है जो दर्द भरी
मौत से मर जाऐगे।
और मैं वार्ड नंबर 7 की तरफ चल दिया ।
नोट:- यह एक कहानी वास्तविक और काल्पनिक आधार का समावेश हे।
लेखक - रमेशबाबू