बड़े खुश हैं हम बादल गुजर गया लेकिन बरसा नहीं। सूखी नदी हुआ अभी अरसा नहीं। धरती झुलस रही है लेकिन बड़े खुश हैं हम। नदी बिक रही है बा रास्ते सियासत के। गूंगे बहरों के शहर में बड़े खुश हैं हम। न गोरैया न दादर न तीतर बोलता है अब। काट कर परिंदों के पर बड़े खुश हैं हम। नदी की धार सूख गई सूखे शहर के कुँए। तालाब शहर के सुखा कर बड़े खुश हैं हम। पेड़ों का दर्द सुनना हमने नहीं सीखा। काट कर जिस्म पेड़ों के बड़े खुश हैं हम। ईमान पर अपने कब तलक कायम रहोगे तुम।