अनुत्तरित प्रश्न
एक जंगल था ,
बहुत प्यारा था
सभी की आँख का तारा था।
वक्त की आंधी आई,
सभ्यता चमचमाती आई।
इस सभ्यता के हाथ में आरी थी।
जो काटती गई जंगलों को
बनते गए ,आलीशान मकान ,
चौखटें ,दरवाजे ,दहेज़ के फर्नीचर।
मिटते गए जंगल सिसकते रहे पेड़
और हम सब देते रहे भाषण
बन कर मुख्य अतिथि वनमहोत्सव में।
हर आरी बन गई चौकीदार।
जंगल के जागरूक कातिल
बन कर उसके मसीहा नोचते रहे गोस्त उसका।
मनाते रहे जंगल में मंगल।
औद्योगिक दावानल में जलते
आसपास के जंगल चीखते हैं।
और हमारे बौने व्यक्तित्व अनसुना कर चीख को ,
मनाते हैं पर्यावरण दिवस।
सिसकती शक्कर नदी के सुलगते सवाल
मौन कर देते हैं हमारे व्यक्तित्व को।
पिछले साल कितने पौधे मरे ?
कितने पेड़ कट कर आलीशान महलों में सज गए ?
हमारी नदी क्यों मर रही है ?
गोरैया क्यों नहीं चहकती मेरे आँगन में ?
इन सब अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर खोज रहा हूँ ,
और लिख रहा हूँ एक श्रद्दांजलि कविता
अपने पर्यावरण के मरने पर।
सुशील कुमार शर्मा
सुशील कुमार शर्मा की अन्य किताबें
सुशील कुमार शर्मा व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। इसके साथ ही आपने बी.एड. की उपाधि भी प्राप्त की है। आप वर्तमान में शासकीय आदर्श उच्च माध्य विद्यालय, गाडरवारा, मध्य प्रदेश में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) के पद पर कार्यरत हैं। आप एक उत्कृष्ट शिक्षा शास्त्री के आलावा सामाजिक एवं वैज्ञानिक मुद्दों पर चिंतन करने वाले लेखक के रूप में जाने जाते हैं| अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में शिक्षा से सम्बंधित आलेख प्रकाशित होते रहे हैं |
अापकी रचनाएं समय-समय पर देशबंधु पत्र ,साईंटिफिक वर्ल्ड ,हिंदी वर्ल्ड, साहित्य शिल्पी ,रचना कार ,काव्यसागर, स्वर्गविभा एवं अन्य वेबसाइटो पर एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
आपको विभिन्न सम्मानों से पुरुष्कृत किया जा चुका है जिनमे प्रमुख हैं
1.विपिन जोशी रास्ट्रीय शिक्षक सम्मान "द्रोणाचार्य "सम्मान 2012
2.उर्स कमेटी गाडरवारा द्वारा सद्भावना सम्मान 2007
3.कुष्ट रोग उन्मूलन के लिए नरसिंहपुर जिला द्वारा सम्मान 2002
4.नशामुक्ति अभियान के लिए सम्मानित 2009
इसके आलावा आप पर्यावरण ,विज्ञान, शिक्षा एवं समाज के सरोकारों पर नियमित लेखन कर रहे हैं |
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