सरकार तथा
साहित्यकार बेमतलब की कसरत में तल्लीन हैं सरकार के लिए जनता ही जनार्दन होती है साहित्यकार के लिए पाठक ही परमेश्वर होता है लेकिन दोनों ही अपने अपने इष्ट को तिलांजलि देने पैर
तुले हैं
29 अक्टूबर 2015
सरकार तथा
साहित्यकार बेमतलब की कसरत में तल्लीन हैं सरकार के लिए जनता ही जनार्दन होती है साहित्यकार के लिए पाठक ही परमेश्वर होता है लेकिन दोनों ही अपने अपने इष्ट को तिलांजलि देने पैर
तुले हैं
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मैं ब्लॉग शुरू करना चाहता था लेकिन हिंदी में नहीं लिख पता था शब्दनगरी से यह संभव होता दिख रहा हैD