व्यंग्य स्तम्भ
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सरकार तथा साहित्यकार बेमतलब की कसरत में तल्लीन हैं सरकार के लिए जनता ही जनार्दन होती है साहित्यकार के लिए पाठक ही परमेश्वर होता है लेकिन दोनों ही अपने अपने इष्ट को तिलांजलि देने पैर तुले हैं