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बेटी

21 सितम्बर 2016

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बेटी

यह कविता देश की दोनों बेटियों को समर्पित है जिन्होंने ओलंपिक में पदक जीतकर देश का मान सम्मान बढ़ाया है एवं उन लोगों के लिये कटाक्ष है जो कन्या भ्रूण हत्या कर देते हैं, या बेटी होने पर उपेक्षा करते हैं।



जन्म लिया कन्या ने घर में, सन्नाटा पसर गया।
माँ-बाप, दादा-दादी का सपना बिखर गया।
चाहत थी सबको बेटे की, जो आगे वंश बढ़ाएगा।
क्या पता था, सबका सपना टूट जाएगा।

हुई बड़ी, बेटी धीरे-धीरे, नव यौवन में प्रवेश हुआ।
उसने खेल -कूद को अपना जीवन ठान लिया।
सबने सोचा लड़की है, यह क्या कर पायेगी!!
घर से बाहर निकल कर, केवल ठोकर खायेगी।

उसने जिद न छोड़ी, हिम्मत से काम लिया।
अपनी मेहनत के दम पर, खेलों में भाग लिया।
हो सफल उस लड़की ने, माँ-बाप को श्रेय दिया।
अश्रुपूर्ण नेत्रों से, माँ-बाप ने आशीर्वाद दिया।


-निशान्त पन्त "निशु"

निशान्त पन्त -निशु- की अन्य किताबें

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भोले बाबा - कविता

1 सितम्बर 2016
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भोले बाबातू ही शून्य है, तू ही सत्य हैबाकि सब कुछ झूठ है।भोले बाबा तेरे दरबार में,ही सब कष्टों से छूट है।तू ही जीवन है, तू ही मृत्यु।तू ही सबका पालनहार है।जो भी भजता तेरा नाम,पूरे होते उसके काम हैं।पी कर हलाहल बाबा तुमने,देव जनों के कष्ट हरे।कर तांडव तुमने बाबा,दुष्टों के भी प्राण हरे।तुम ही आदि हो,

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बेटी

21 सितम्बर 2016
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बेटीयह कविता देश की दोनों बेटियों को समर्पित है जिन्होंने ओलंपिक में पदक जीतकर देश का मान सम्मान बढ़ाया है एवं उन लोगों के लिये कटाक्ष है जो कन्या भ्रूण हत्या कर देते हैं, या बेटी होने पर उपेक्षा करते हैं।जन्म लिया कन्या ने घर में, सन्नाटा पसर गया।माँ-बाप, दादा-दादी का सपना बिखर गया।चाहत थी सबको बेटे

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माँ

16 अक्टूबर 2016
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यह कविता मैंने मातृदिवस के उपलक्ष्य में मई २०१६ में लिखी थी।नौं माह गर्भ में रख कर,रक्त से अपने पोषित कर,कड़ी वेदना सह कर भी,नव जीवन का निर्माण किया।हम कर्जदार है उस माँ के,जिसने हमको जन्म दिया।दुनिया में आकर शिशु ने,जो पहला शब्द उदघोष् किया,वो करता इंगित उस स्त्री को,जिसने हमको जन्म दिया।"माँ" शब्द

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