यह कविता मैंने मातृदिवस के उपलक्ष्य में मई २०१६ में लिखी थी।
नौं माह गर्भ में रख कर,
रक्त से अपने पोषित कर,
कड़ी वेदना सह कर भी,
नव जीवन का निर्माण किया।
हम कर्जदार है उस माँ के,
जिसने हमको जन्म दिया।
दुनिया में आकर शिशु ने,
जो पहला शब्द उदघोष् किया,
वो करता इंगित उस स्त्री को,
जिसने हमको जन्म दिया।
"माँ" शब्द के उदघोष् मात्र से,
जिस स्त्री का मन विभोर हुआ।
हम कर्जदार है उस माँ के,
जिसने हमको जन्म दिया।
खुद भूखी रह कर जो माँ,
बच्चों की अन्नपूर्णा हुई।
गर्मी में पंखा झलकर, हमें सुलाती,
खुद स्वेद से सराबोर हुई।
हम कर्जदार है उस माँ के,
जिसने हमको जन्म दिया।
--निशान्त पन्त "निशु"