एक था जादूगर, दिखाता था वो रंगीन दुनिया। खेत खलिहान, और दूध की नदियां। चारो ओर खुशियों, की बहार। जादूगर का जादू, थे जो कुछ खास। रहते थे जो सदा, उसके पास। करता था उन पर ही काम, बाकी सब मुरख और अनजान। ज
आलू ,मटर ,टमाटर में थी दोस्ती सच्ची और प्यारी साथ निभाते थे उनका धनिया और हरी मिर्च न्यारी धूमधाम से खेला करते गोभी - गाजर और फली भी प्याज भी साथ में आती थी दोस्त तो थी वो भी न्यारी कभ
चल चार कदम हर बार यूँ ही, डगमगाया लौट आया। कभी कोशिश नहीं की, कभी थोड़ा चला, कभी बीच रस्ते से लौट आया। ठोकरों का डर कभी, कभी उनसे गिर जाने का, हर बार डरा, और डर के वापस आया। कभी मंजिल
किसान है वो मेहनत की खाता है किसान है वो मेहनत की कठिनाई का सामना करता है, धूप, बर्फ, बारिश में भी अपने काम को निभाता है। खेतों में जो उनकी किल्लत है, वो कोई नहीं समझ सकता, हर दिन की
ढूंढा तुमको मैंने, यहाँ वहां न जाने कहाँ, कुछ लोगों से पूंछा, तेरे मिलने का ठिकाना, कुछ ठिकाने भी ढूंढे, जहाँ तुम मिला करते थे, जहाँ तुम मिला करते थे, वहां तुम मिले नहीं अरसो से, नए ठिकानों पर
कुछ अंदर है, कुछ बाहर है, कुछ मेरे भी, कुछ तेरे भी, कुछ यहाँ वहां, है बिखरा हुआ, कुछ कांच सा, टुटा हुआ कहीं, कुछ ताश सा, बिखरा हुआ कहीं, कुछ मातम सा, है छाया हुआ, कहीं हर्ष बिगुल, सा बजा
कुछ चोट लगीं, कुछ जख्म मिले, कुछ आह सहीं, कुछ राह चला, कुछ दूर चला, फिर भटक गया, भटका ऐसा, फिर मिला नहीं, न रही मिली, न खुद से मिला, जिन्दा था भी, या न था, ऐसा भी कुछ, एहसास न था, म
किस्सा है अमरावती का जो की अभी 72-73 वर्ष की है, पर यह किस्सा 2-3 साल पुराना है | किस्सा शुरू करने के पहले अमरावती छोटा सा परिचय जरूरी है | अमरावती के पति राम अमोल पाठक जी एक पब्लिकेशन हाउस के सम्पादक
(निकु और नीशू दो दोस्त की दोस्ती) (नीकु और नीशू दोनों दोस्त आपस में वार्तालाप कर रहे हैं)निकु - ये बताओ नीशू दोस्त! आज कई दिनों के बाद हम दोनों दोस्त विद्यालय जा रहे हैं। क्या तुमने गृहकार्
शालिनी ( प्यारी सी बालिका ) बात हाल ही के कुछ वर्ष पहले की है । जब हमारे विद्यालय में शालिनी का प्रवेश कक्षा एक में हुआ था । एक बहुत सुंदर - सी, बहुत प्यारी - सी और विद्यालय का गृह कार्य समय पर क
अपने कम्प्यूटर के लिए मैं एक नया रंगीन प्रिंटर लाया था। घर में सबको बुला कर शेखी बघारते हुए बताया," ये बहुत अच्छी तकनीक से बना है और किसी भी चीज को हू-बहू प्रिंट कर देता है।" फिर मैंने सबको आदेश दिया
नवीन ने नयी कार क्या खरीदी बधाई देने वालों का ताँता सा लग गया। हर कोई आकर उसे नयी कार की बधायी देता ,मिठाई मांगता और फिर लगभग एक जैसे सवालों की झड़ी लगा देता,"कितने की ली? क्या एवरेज देती है? साथ में
बच्चें मन के सच्चे... बचपन में याद है ….. अब इस तरह का आशीर्वाद कम ही मिलता है….. जब कोई रिश्तेदार व परिवार वाले हमारे घर आते थे तब फल व खिलौने लेकर आते थे और जब उनके वापस लौट
किस्सा कोई दो-तीन साल पुराना है, किस्सा है 72-73 वर्ष की अमरावती का | अमरावती के पति राम अमोल पाठक जी नहीं रहे, उनको गुजरे कोई 7-8 साल हो चुके हैं | दुनिया अमरावती को सहानुभूति की नजर से देखती है
विचार आते हैं लिखते समय नहीं बोझ ढोते वक़्त पीठ पर सिर पर उठाते समय भार परिश्रम करते समय चांद उगता है व पानी में झलमलाने लगता है हृदय के पानी में विचार आते हैं लिखते समय नहीं ...पत्थर ढोते
दीखता त्रिकोण इस पर्वत-शिखर से अनाम, अरूप और अनाकार असीम एक कुहरा, भस्मीला अन्धकार फैला है कटे-पिटे पहाड़ी प्रसारों पर; लटकती हैं मटमैली ऊँची-ऊँची लहरें मैदानों पर सभी ओर लेकिन उस कुहरे से
रात, चलते हैं अकेले ही सितारे। एक निर्जन रिक्त नाले के पास मैंने एक स्थल को खोद मिट्टी के हरे ढेले निकाले दूर खोदा और खोदा और दोनों हाथ चलते जा रहे थे शक्ति से भरपूर। सुनाई दे रहे थे स्वर – बड
घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनंतर व्यापक अंधकार में सिकुड़ी सोयी नर की बस्ती भयकर है निस्तब्ध गगन, रोती-सी सरिता-धार चली गहराती, जीवन-लीला को समाप्त कर मरण-सेज पर है कोई नर बहुत स
मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है कि जो तुम्हारे लिए विष है, मेरे लिए अन्न है। मेरी असंग स्थिति में चलता-फिरता साथ है, अकेले में साहचर्य का हाथ है,
मैं उनका ही होता जिनसे मैंने रूप भाव पाए हैं। वे मेरे ही हिये बंधे हैं जो मर्यादाएँ लाए हैं। मेरे शब्द, भाव उनके हैं मेरे पैर और पथ मेरा, मेरा अंत और अथ मेरा, ऐसे किंतु चाव उनके हैं। मैं ऊ