यदि घर आँगन में बेटियां न हो तो घर सूना पड़ा रहता है । बेटियों के किलकारियाँ, कोयल की मीठी बोली की तरह सबका मन मोह लेती है। आज की दुनिया में मनुष्य संवेदनहीन हो गया है, उस संवेदनहीनता का कुपरिणाम हैं, "कन्या भूर्ण हत्या"।
मां के गर्भ में पल रही हज़ारों बालिकाओं कन्या भ्रूण हत्या यानी जन्म के पूर्व हत्याके खतरे का सामना कर रही हैं। सदियों से बालिकाओं के खिलाफ भेदभाव और पूर्वाग्रह गर्भ में ही शुरू हो जाता है। समाज में इस बुराई के लिए जिम्मेदार विभिन्न सामाजिक कारण हैं। लोगों में बढ़ती संवेदनहीनता, इस समस्या का मूल कारण हैं और इस मुद्दे को दूर करने के लिए "संवेदनशीलता" अति आवश्यक है।
इस जघन्य बुराई का एक और प्रमुख कारण लोगों का संकीर्ण सोच है। लोग गर्भ में पल रही मासूम बालिका का गर्भपात इसीलिए करवा देते हैं क्योंकि बच्ची की शादी के लिए भविष्य में दहेज देना आवश्यक होगा। इसके अलावा, चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में नवीनतम तकनीक आ गयी हैं जैसे, "अल्ट्रासोनोग्राफी" जिसके द्वारा बच्चे के जन्म से पहले बच्चे के लिंग का निर्धारण हो जाता है। हालाँकि इस तकनीक का मूल उद्देश्य, भ्रूण में जन्मजात असामान्यताओं का पता लगाने के लिए किया गया था, पर अब इसका दुरुपयोग किया जा रहा है।
बेटियों की किलकारियाँ
को देखकर ऐसी
अनुभूति होती जैसे
प्रकृति सुन्दर गीत सुना
रही हो। हालाँकि,
सरकार और समाज
की सोच में
बदलाव आ रहा
है। "बेटी बचाओ,
बेटी पढ़ाओं", जैसे कदम
भी सरकार उठा
रही है परन्तु
असर तो तब
दिखेगा जब लोग
अपनी मानसिकता बदलेंगे। इस विषय पर आप की क्या सोच हैं? साझा कीजिये!