देशमान्य गोपाल कृष्ण गोखले बाल्यकाल में बहुत ग़रीब थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा किसी प्रकार पूर्ण हो गई थी। जब कॉलेज की खर्चीली पढ़ाई का प्रश्न सामने आया तो गोखले चिंतित हो गए। तब उनकी भाभी ने अपने आभूषण बेचकर उनकी फीस भरी। उनके बड़े भाई गोविंद राव अपने पंद्रह रुपए के मासिक वेतन मे से सात रुपए गोखले को भेज देते थे और शेष आठ रुपयों से अपना खर्च चलाते थे।
शिक्षा पूर्ण होने पर गोखले को पैंतीस रुपए मासिक की नौकरी मिल गई। बड़े भाई के उपकार से उनका रोम-रोम कृतज्ञ था, इसलिए वे ग्यारह रुपए अपने पास रखकर चौबीस रुपए प्रतिमाह अपने भाई को भेज देते थे। उनके भाई ने उन्हें ऐसा करने से बहुत मना किया तो वे बोले, "भाई साहब, यह रुपयों का बदला रुपयों से नहीं है, बल्कि ममता का उत्तर श्रद्धा से है। यह सुनकर उनके भाई ने उन्हें गले लगा लिया।