समाज की सोच
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सुबह पाँच बजे शुरु हुई दिनचर्या के पहले पड़ाव को पार करने के बाद सरिता ने गहरी सांस ली। स्नान-ध्यान के साथ हुई दिन की सधी शुरुआत के बाद स्कूल जाने वाले दो बच्चों और दफ्तर निकलने को हरदम हङबङी मचाते
जब तक हाथ-पैर चलते थे तब तक अंशुमन बाबू को सभी पूछते थे। घर के बुजुर्ग थे, क्यों न पूछे। लंबा चौड़ा परिवार था उनका। नाती-पोतों से भरा-पूरा घर। अंशुमन बाबू उसी नाती-पोतों के बीच घिरे रहते। कोई