यहा कुछ शायराना ही लिखेंगे,करेगे गुफ्तगू कुछ कहेगे कुछ सुनेगे।।
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मसला अलहदा था कि मैं हँस रहा था, वो क्या है न,कि हम यूँ ऑसू बहाया नही करते,।। क्या हुआ कि जख्म अब.रिसने लगे है, दिल रो लेता है,ऑखों से अब हम रोया नही करते।। तन्हाई से दोस्ती पक्की कर ली है हमने, तन्हा
पत्थर मूर्त ही नही ,दिल भी होता है, पिघल जाए शायद यह भ्रम क्यूं होता है।। =/= समझाया था उसे नफ़रत करे और करे जम कर,मगर ध्यान रहे, कि कतार मे खड़ा दुश्मन भी कोई होता है।। =/= मुसाफ़िर था,वह राह का,उसे,