चिंता होना स्वभाविक होता है, लेकिन ऐसी बहुत सी व्यर्थ की चिंताए हमारे पास होती हैं जो जीवन को घुन की भांति खा जाती हैं। आज के दौर में, देखा जाएँ तो जीवन चिंताग्रसित होता जा रहा हैं, चिंता करना मनुष्य का स्वभाव बनता जा रहा है।
स्वामी रामतीर्थ ने कहा है कि , "चिंताएं, परेशानियां, दुःख और तकलीफें परिस्थितियों से लड़ने से नहीं दूर हो सकतीं, वे दूर होंगी अपनी अंदरूनी कमजोरी दूर करने से जिसके कारण ही वे सचमुच पैदा हुईं है।"
चिंता, हम सभी के जीवन में किसी न किसी रूप में आ ही जाती हैं। चिंताओं से मुक्त रहने के लिए व्यक्ति नजाने कौन कौन सी दवाइयाँ खा रहा हैं, जिसका व्यक्ति के जीवन में बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव रहा हैं और हमें उसका अंदाजा भी नहीं हैं । वर्तमान समय में, लोग उन स्थितियों की चिंता करते हुए परेशान हैं, जो वास्तिविक जीवन में कभी घटेंगी ही नहीं। कुछ लोग जो बातें बीत चुकी हैं उन्हें याद करके परेशान हैं, कुछ अपनी सेहत से तो कुछ रोज़मर्रा ज़िन्दगी की चिंताओं से परेशान है। देखा जाएँ तो, ज्यादातर लोगों की ऐसी बातों से चिंतित हैं जिनका वर्तमान में कोई अस्तित्व ही नहीं हैं।
हमें व्यर्थ की बातों से चिंतित होकर अपनी ऊर्जा को क्षीर्ण न करके उसे सार्थक अवसर में बदल दे तो वहीँ, चिंता चिंतन में परिवर्तित हो जायेगी। कई बार, हमारे जीवन में मुश्किल हालत आ जाते हैं की उनका सामना करने के बजाय उनका सामना करके हम परेशान रहने लगते हैं। जीवन में जीतते वही है जो कठिन संघर्षो का सामना करते हुए जीवन में आगे बढ़ते हैं । चिंता करना एकदम निरर्थक हैं, चिंता करने की बजाय यदि हम चिंतन करते हुए अपना पूरा ध्यान अपने काम में केंद्रित कर ले तो हमारा भविष्य बदल सकता हैं।