हिंदी साहित्य के प्रिय रसिको,
20 मई, 1900 को कौसानी, अल्मोड़ा में जन्मे सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं - ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि। 'शब्दनगरी' से आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं पंत जी की अनेकानेक रचनाओं में से एक अत्यंत सुन्दर रचना 'चींटी'...
चींटी को देखा ?
वह सरल, विरल काली रेखा
तम के तागे सी जो हिल-डुल
चलती लघुपद पल-पल मिल-जुल
वह है पिपीलिका पाँति !
देखो ना, किस भाँति
काम करती वह संतत !
कन कन कनके चुनती अविरत !
गाय चराती,
धूप खिलाती,
बच्चों की निगरानी करती,
लड़ती, आरी से तनिक न डरती,
दल के दल सेना संवारती,
घर आँगन, जनपथ बुहारती I
चींटी है प्राणी सामाजिक,
वह श्रमजीवी, वह सुनागरिक I
देखा चींटी को ?
उसके जी को ?
भूरे बालों की सी कतरन,
छिपा नहीं उसका छोटापन,
वह समस्त पृथ्वी पर निर्भय
विचरण करती श्रम में तन्मय,
वह जीवन की चिनगी अक्षय I
वह भी क्या देही, तिल सी ?
प्राणों की रिलमिल झिलमिल-सी !
दिन भर में वह मीलों चलती,
अथक, कार्य से कभी न टलती II
-सुमित्रानंदन पन्त