एक बार रावण भगवान शंकर की कैलाश पर बहुत तपस्या करता है हो इतना ज्यादा तपस्या करता है कि वह 10000 सालों तक तपस्या करता रहता है लेकिन फिर भी भगवान शंकर प्रसन्न नहीं होते भगवान सोचते हैं कि एक तो पहले से ही अत्याचारी है और कुछ वरदान मांग लेगा और अत्याचारी हो जाएगा फिर रावण जब सोचता है कि भगवान शंकर लगता है प्रसन्न नहीं है तो वह अपना एक-एक सिर काट कर के भगवान शंकर को चढ़ने लगता है
फिर रावण अपना 9 सिर भगवान शंकर को काटकर अर्पण कर देता है लेकिन फिर भी भगवान शंकर प्रसन्न नहीं होते हैं फिर रावण अपना 10वां सिर काटने के लिए जाता है तभी भगवान शंकर प्रकट हो जाते हैं फिर भगवान शंकर है रावण से बोलते हैं तुमको जो वरदान मांगना हो मांग लूं मैं तुम्हारे पर और तुम्हारी तपस्या से बहुत प्रसन्न हूं
फिर रावण बोलता है यदि आप हमारे पर इतना पसंद है तो हमारे साथ लंका में चलिए फिर भगवान शंकर बोलते हैं मैं तुम्हारे साथ लंका मे नहीं चल सकता हू लेकिन तुम या हमारा शिवलिंग लेकर जाओ वह समझो कि मैं ही लंका में तुम्हारे साथ चल रहा हू
फिर रावण शिवलिंग लेकर के चल देता है लेकिन भगवान शंकर उसको बोलते हैं कि अगर तुम यह शिवलिंग कहीं पर भी रख दोगे तो मैं वहीं पर स्थापित हो जाऊंगा इसके लिए यह कहीं पर तुम रखना नहीं
रावण देव शिवलिंग लेकर के लंका के लिए चल देता है सभी देवता सोचने लगते हैं कि यह तो पहले से ही इतना अत्याचार है अगर या भगवान शंकर को स्थापित कर दिया तो और अत्याचारी हो जाएगा
लेकिन जब रावण शिवलिंग लेकर के चलने लगता है तो भगवान शंकर ऐसी माया कर देते हैं कि उसको जोर से लघु संका आती है
तभी रावण चारों तरफ देखता है तो कोई उसे नजर नहीं आता है और वह सीलिंग रख भी नहीं सकता था वह जानता था अगर शिवलिंग नीचे रख दिया तो फिर यहां से यह उठेगा नहीं तभी वहां एक ग्वाला आता है तो रावण उस ग्वाले को बुलाता है और बोलता है थोड़ी देर तक यह पकड़ के रखो रावण ग्वाले के हाथ में शिवलिंग दे करके वह लघुशंका के लिए चला जाता है लेकिन तभी शिवलिंग वह बहुत भारी हो जाता है वह ग्वाला उसका भार सह नहीं पाता है और वह शिवलिंग नहीं नीचे रख कर के चला जाता है तभी रावण आता है देखता है कि शिवलिंग नीचे पड़ा है वह उसको उठाने की कोशिश करने लगता है लेकिन वह शिवलिंग वहां से हिलता नहीं है क्योंकि भगवान शंकर ने पहले ही बोला था कि अगर शिवलिंग जहां पर भी रख दोगे मैं भी स्थापित हो जाऊंगा फिर आऊंगा सोच कर के शिवलिंग वहीं पर छोड़ कर के चला जाता है
जब रावण ने शिवलिंग छोड़ कर के चला जाता है फिर सब देवता वहां पर पहुंच कर के और शिवलिंग की पूजा आराधना करते हैं उसके बाद सब देवता अपने अपने स्थान को चले जाते हैं
फिर कुछ काल के बाद वहां पर घास जंगल हो जाता है बैजू नाम के एक ग्वाला थे जो हमेशा वहीं पर गाय चराने के लिए जाते थे तो बैजू देखते थे कि वह पत्थर पर सब गाय जाकर के दूध गिराने लगती थी फिर बैजू के मन में बड़ा आश्चर्य होता था कि पत्थर पर गाय दूध क्यों गिराती हैं
फिर बैजू ने वह पत्थर को रोज डंडे से मारना शुरू किया जब भी गाय चराने जाते थे तो पत्थर को डंडे से मारते जरूर थे उनका रोज का नियम बन गया जब भी बिना पत्थर को मारे घर पर कभी आते नहीं थी एक दिन वह पत्थर को मारना भूल गए जब वह खाना खाने के लिए बैठे तो उनको याद आया आज तो पत्थर को मारा ही नहीं उसके बाद उन्होंने खाना नहीं खाया और पत्थर को मारने के लिए चले गए लेकिन उस दिन ज्यो ही डंडे से पत्थर को मारने जाते हैं तभी भगवान शंकर प्रकट हो जाते हैं
और बोले बैजू मैं तुम्हारी भक्ति पर बहुत प्रसन्न हूं तुमको जो वरदान मांगना हो मांग ले फिर बैजू बोले भगवान मैं तो निरंकारी था मुझे तो पता ही नहीं था कि आप स्वयं विराजमान है फिर बैजू बोले भगवान मुझे बस यही वरदान दे दो कि पहले मेरा नाम आए उसके बाद आपका नाम आए तभी से वह शिवलिंग का नाम बैजनाथ धाम पड़ गया
बैजनाथ का शिवलिंग ऐसा है कि वहां पर सिर्फ दर्शन करने मात्र से मनुष्य की इच्छा पूरी हो जाती है झारखंड के देवघर में पड़ता है वहां पर 110 किलोमीटर कांवर लेकर के भक्त जाते हैं जिसकी इच्छा पूरी हो गई रहती है वह लेटते लेटते 110 किलोमीटर जाते हैं वैसे पूरी दुनिया में कहीं भी 110 किलोमीटर का मेला नहीं लगता है बैजनाथ धाम भगवान शंकर का ऐसा शिवलिंग है कि भक्तों की इच्छा अपने आप ही पूरी हो जाती हैं सिर्फ दर्शन करने मात्र से और मैं आगे आपको बताऊंगा कि भगवान शंकर इतनी जल्दी क्यों प्रसन्न हो जाते हैं