एक बार चंद्रसेन भगवान शिव की आराधना कर रहे थे तभी वहां से एक गोप बालक अपनी मां के साथ गुजरा
कुछ गोप बालक का नाम था श्रीकर
जब श्री करने चंद्रसेन को भगवान शिव की भक्ति में लीन देखा तो उसके मन में भी भगवान शिव की आराधना करने की इच्छा हुई लेकिन उसके पास पूजा की कोई सामग्री नहीं थी तो उसने रास्ते से एक पत्थर उठाया और भगवान का स्वरूप मानकर वह उस पत्थर की पूजा करने लगा
उसने पत्थर पर रास्ते में पड़े हुए पुष्प अर्पित की और चंद्रसेन की तरह पूजा में लीन हो गया श्रीकर की मां ने अपने पुत्र को कई बार आवाज लगाई लेकिन वह भक्ति में इतना लीन था कि उसको कुछ सुनाई नहीं दिया यह देखकर सीकर की माता अत्यंत क्रोधित हुई और वह पत्थर उठा कर के फेंक दिया यह देख कर के और बालक के बाल मन पर बहुत ठेस पहुंची और वह रोने लगा और महादेव का नाम लेकर रोते-रोते बेहोश हो गया
उस बालक का रूदन देखकर भगवान भोलेनाथ भी पसीज गए और श्रीकर की भक्ति से प्रसन्न हो गए उस नन्हें बालक को जब होश आया तो उसके सामने स्वर्ण मंदिर खड़ा था उसके अंदर तेजो में ज्योतिर्लिंग स्थापित था
यह देख बालक प्रसन्न हुआ और शिव भक्ति में लीन हो गया जैसे ही यह खबर राजा चंद्रसेन को पहुंची और शिव भक्त बालक से मिलने बिना नहीं रह सके और उस हम बालक से मिलने पहुंच गए तभी से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग अवंती नगरी में विराजमान है यहां पर हमेशा भक्तों का ताता लगा रहता है
महाकालेश्वर मंदिर के अंदर ज्योतिर्लिंग की आभा इस बात का घोतक है उज्जैनी का राजा एक ही है वह कालों के काल महाकाल महाकाल की आराधना सुबह में भस्म आरती से प्रारंभ हो जाती है कहते हैं या महादेव के जागने की प्रक्रिया है
कहते हैं महाकाल पर चढ़े प्रसाद को जो भी ग्रहण करता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं