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हैं खड़े रोंगटे अभी तक जब याद आई गरीबीवो भी क्या दिन थे जब था न कोई करीबी घुटन में थी जिंदगी सपनों में दिन पार होतेसोचता था काश अमीरों से कोई तार होते