“लैंगिक भेदभाव” इस शब्द को सुनते या पढ़ते, पिछले कुछ महिनों तक जो बात सबसे पहले मेरे जेहन में आती थी, वह थी समाज में औरतों द्वारा झेला जाने वाला लैंगिक भेदभाव और मुझे पूरा यकीन है कि हम में से भी ज्यादातर का यही मानना है! इसने मुझे पितृसत्तात्मक समाज की पहली रूढ़ि को तोड़ने के लिए मजबूर किया। लैंगिक भेदभाव न सिर्फ औरतों के बारे में है, बल्कि इस शब्द का एक बड़ा मतलब है, जो वाकई में औरतों के बारे में तो नहीं है।
इंटरनैट वैब के मुताबिक “लैंगिक भेदभाव का मतलब गैर बराबरी का सलूक या लिंग के आधार पर लोगों की खुद की सोच से है। इसकी वजहें, सामाजिक तौर पर लिंगों के तय कामों के बीच मतभेदों समेत, जैविक तौर पर गुणसूत्रों, दिमागी बनावट, व हार्मोनल मतभेद भी हैं।”
हमारे यहां ऐसे बहुत से नारीवादी हैं जो औरतों की भलाई के लिए और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ काम करते हैं, मगर मर्दों की भलाई व उनके हकों के लिए कौन काम कर रहा है? जब नारीवादी सड़कों पर, पूरे सोशल मीडिया पर, और लगभग हर जगह, बराबर के हकों की मांग करते हैं व औरतों की भलाई के लिए लड़ते हैं तो मर्द “मर्दाना भेदभाव” के खिलाफ लड़ने के लिए सड़कों पर क्यों नहीं आते?
मर्दाना भेदभाव क्या है?
यह सब उस भेदभाव के बारे में है जो मर्द समाज में झेलते हैं, जिसमें मर्दों के मुकाबले औरतों से अच्छा सलूक किया जाता है।
नारीवाद क्या है?
नारीवाद आंदोलनों व विचारधाराओं की एक कड़ी है जिसका एकमात्र मकसद है: औरतों के लिए बराबर के राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, वैयक्तिक, व सामाजिक हकों को तय करना, बनाना, व हासिल करना।
नारीवाद बनाम मर्दाना भेदभाव
तो नारीवादी क्या चाहते हैं?
ज्यादातर नारीवादी फोरम व ब्लॉग आदि पढ़ने के बाद, इस बात का जवाब कि नारीवादी क्या चाहते हैं, यह है कि हरेक मामले में मर्दों व औरतों के लिए बराबर के हक हों।
तथाकथित नारीवादी क्या कर रहे हैं?
एक नारीवादी असल में बराबरी के हक चाहता है मगर हकीकत में जो हो रहा है वह कहीं से भी बराबरी के आसपास नहीं है। औरतों के लिए खास व आरक्षित हकों की मांग करना नारीवाद कतई नहीं है!!
3.क्या यह मर्दाना भेदभाव को बढ़ाता है?
हां, हम मानते हैं कि समाज में किसी भी लिंग को सताया न जाए! और कोई भी औरतों या मर्दों के लिए खास हकों की मांग नहीं कर सकता!
4.यह मर्दाना भेदभाव को कैसे बढ़ाता है?
हमारा पाखंडपूर्ण “आज़ाद” समाज और उसकी सोच, मर्दों को नीचा दिखाकर, औरतों की भलाई तक ही सीमित है, और मर्दाना भेदभाव के लिए यही बात जिम्मेवार है!
कुछ रोजमर्रा के वाक्या इस बात का बखान करेंगे
a) पहली मुलाकात- मर्द ने भुगतान किया। क्यों?
b) क्लबों में औरतों के लिए मुफ्त प्रवेश – क्यों?
c) मर्द भद्रजन नहीं है, वह औरत के लिए दरवाजा नहीं खोलता या अपनी सीट नहीं छोड़ता ताकि वह बैठ सके! भद्रजनता का औरतों संग खास अंदाज में पेश आने से कोई लेनादेना नहीं था!
हमें यह बात समझने की जरूरत है कि मर्द को अपनी सीट नहीं छोड़नी चाहिए, दिन ढलने तक वह भी उतना ही थका होता है जितना कि आप।
मर्दाना भेदभाव बंद करो!!
श्रीमतियों, यह आपकी भी पहली मुलाकात है! भुगतान मिल बांटकर करें?
आपको खरीदारी हमेशा मर्द ही क्यों करवाए? क्या आप भी उसके लिए भुगतान नहीं कर सकती?
उससे ये उम्मीद न करें कि वह आपके लिए कार का दरवाजा खोले, जब आप उसके लिए ऐसा नहीं कर सकती!
मुझे यकीन है कि वे सब ऐसी औरत का इंतजार कर रहे हैं, जो वाकई में एक बार, उनके खाने का भी भुगतान करे!
बराबरी का मतलब है, औरतों व मर्दों को हर मामले में बराबरी के हक देना, अगर मर्द खास सलूक के हकदार नहीं हैं तो औरतें भी इसकी हकदार नहीं हैं!
तो चलिए वाकई में नारीवाद पर अमल करें, न कि मर्दाना भेदभाव पर।
चलिए हमें कुछ वाक्या बताइए जहां आपने मर्दाना भेदभाव किया हो या कोई ऐसा वाक्या जहां आपने मर्दाना भेदभाव झेला हो और अगली बार इसे टालने के लिए आप क्या करेंगे।