(बोधिकथाएं )
लेखक : आर. के. चंद्रवंशी
हम सभी अपना जीवन एक झूठी असुरक्षा के आवरण में जीते हैं और उसके कारण अपने मन में बहुत सारी जटिलताएं खड़ी करते हैं। मन की वो जटिलताएं हीं हमारे जीवन का दुख बनती है।
ज्ञानियों की सीधी सरल बातें जो हमें समझ नहीं आती, क्योंकि हम उन सरल बातों को भी जटिल बना देते हैं और अपने लिए मुक्ति के दरवाजे बंद कर लेते हैं।
इसलिए कोई ज्ञानी करुणावश अपनी बात को समझाने के लिए कहानियों का सहारा लेता है, क्योंकि कहानियां हमारी मन की जटिलताओं को पार कर बात को हृदय तक पहुंचाने में सफल हो जाती है। कहानियां ऐसे परिदृश्य को प्रस्तुत है जो वास्तविक जीवन की स्थितियों के समानांतर होती है । कहानियां पाठक की संलग्नता को बढ़ाती है और इसी वजह से कहानी में छुपा संदेश अंतर्रतम को स्पर्श कर जाता है।
इस पुस्तक में आर. के. चंद्रवंशी ने बोध व मुक्ति के उच्चतम सूत्रों, ऋषियों के आर्ष वचनों, नैतिक कथाओं, प्रेरक प्रसंगों, आत्मज्ञानियों की कथाओं, दार्शनिकों के विचारों, बुद्धपुरुषों के वचनों व लेखों एवं संग्रहों को अत्यंत मनोहर कहानियों के माध्यम से आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। आशा है यह बोधिकथाएं आपको पसंद आएगी और आपके जीवन को सार्थक रूप से रूपांतरण करने में सहायक सिद्ध होगी।
"सबका मंगल हो"।
प्राक्कथन
बुद्धपुरूषों की कथाएं मैने अक्टूबर 2024 में लिखना प्रारंभ किया था। हिंदी में लेख संभव और सरल है, इसका पता मुझे देर से चला अभी भी हिंदी लेख अपने शैशव काल में है और इसमें अपार संभावनाएं हैं ।
संभवतः बुद्धपुरूषों की कथाएं जैसा दूसरा कोई हिंदी लेख हो परंतु यह लेख अद्वितीय है। इस लेख की समस्त सामग्री विभिन्न स्रोतों से लेकर तैयार की गई है।
पाठकों को यह स्वतंत्रता है कि वे इस लेख का आदर करते हुए इसकी सामग्री का जैसा चाहे वैसा उपयोग करें, इसके लिए मेरा आभार व्यक्त करने की बाध्यता नहीं है। अपने लेख पर मैं सर्वाधिकार पहले ही समर्पित कर चुका हूं।
आशा है आपको मेरा यह प्रयास पसंद आयेगा।
" सबका मंगल हो।"
यह पुस्तक मेरे पूज्यनीय मां,पिताजी को सादर समर्पित है
सामग्री के संबंध में
इस लेख की सामग्री किसी भी प्रकार से व्यवस्थित नही है। इसे किसी भी पृष्ठ से पढ़ा जा सकता है। इसके अलावा यहां विषय भी दी जा रही है।
अनुक्रमणिका
जीवन की खोज हीं धर्म है। झेन फ़कीर रिंझाई
जलाल रूमी की कविता कड़ी मेहनत
दो अलग दुनिया। सच्चा चमत्कार
दोजख़ की आग साइकिल
सच्चा साधु झेन फकीरों की कहावत
जीसस की कथा। बर्ट्रेड रसल
नान-इन की कथा। मैक्यावली: द प्रिंस
उपवास की परीक्षा। सूफ़ी फ़कीर बायजीद
एक ताओ कहानी। मछलियों की सुगंध
रामतीर्थ की कथा मौन का मन्दिर
एक फकीर और सुकरात। ऐसा है क्या ?
आस्तिक और नास्तिक सवाल
भागीरथ की कथा। जानना
मां के घर से बुलावा स्वर्ग
कबीर की कथा। अंतिम घोषणा
क्वानइन बुद्ध प्रतिमा को बंदी
कैसे याद करें परमात्मा को? नदी के पार
लाओत्सु की कहावत। चाय के प्याले
मुक्ति। क्रोध पर नियंत्रण
चार ईसाई फकीर। महापरिनिर्वाण
जीसस का वचन। जलता घर
झेन फकीर की कथा। पिता और पुत्र
तु किस लिए आता है? मछली पकड़ने की कला
सैमुएल बेकेट की कहानी अनुपयोगी वृक्ष
नमक के दो पुतले मन में पत्थर
लकड़ी का बक्सा सातवां घड़ा
गर्वीले गुबरीले और हाथी अपयश
गुरु से प्रेम बाजार में सुकरात
द्वार पर सत्य एक टुकड़ा सत्य
घर और पहाड़ प्रार्थना
सद्गुणों में संतुलन शेर और लोमड़ी
फूल और पत्थर। दो फ़रिश्ते
सागर की लहरें। सपना
शेर और लोमड़ी। चम्मचों की कहानी
रेगिस्तान में दो मित्र सड़क के पार
स्वर्ग और नर्क हजयात्रा
मजाक कैसा ? पत्थर की तीन मूर्तियां
धनिक का निमंत्रण ताबुत
मुखौटे। कंजूस का सोना
चाय का कप। नागार्जुन और चोर
घमंडी धनुर्धर दक्षिणा की मोती
नाई की दुकान। क्रोधी बालक
महल या सराय पत्थर, कंकड़ और रेत
व्यावहारिकता। वासना की उम्र
एक ग्लास दूध। दो आलसी
ईश्वर की खोज बूढ़ा और बेटा
अंधी लड़की की कहानी मैं ही क्यों
दस लाख डॉलर मुसा के पदचिन्हों पर
राह की बाधा जिराफ़ की सीख
उपहार अवसर
अनोखी दवा मनहूस पेड़
भाग्यशाली बच्चा पेंसिल का संदेश
रिसर्च बुद्धिमान बालक
सलाह गुम हुई कुल्हाड़ी
जिम्मेदारी राबिया की कहानी
मछली की टोकड़ी अंधा बढ़ई
तीन संत मछली फेंकनेवाला
खेत का पत्थर राजा और धर्मात्मा नानक की रोटियां तूफ़ान में मछुआरे
हिलेरी का संकल्प काली नाक वालेबुद्ध
संघर्ष आनंद के चार कारण
आगंतुक अमरता का रहस्य
जॉर्ज कार्लिन का संदेश सुकरात की पत्नी
प्रेम का मूल्य जेनसूत्रों की पुस्तकें
सामानुभूति बंधी मुट्ठी - खुली मुट्ठी
चार पत्नियां दो घड़े
हमारी कीमत स्वर्ग का आनंद
हाजिरजवाबी पूर्वज की अस्थियां
कभी हार नहीं मानो ईर्ष्या का कारण
त्रासदी का आशीर्वाद राजा की अंगूठी
वेदांत का मर्म असंतोष का उपचार
बूढ़ा आदमी और सुनार तलवारबाज
रहने के लिए घर डायोजिनीज व सिकन्दर
विलिस्टिन फिश की वसीयत इंसानियत का सबक
बेजोड़ कप आचार्य द्विवेदी
निराला का दान अभागा वृक्ष
दानी कौन ममता
कीचड़ में पत्थर न मारो कलाकार की करुणा
बड़े गुलाम अली खां साहब अन्याय के आगे न झुकना
मदद जेफर्सन की सादगी
लम्बी उम्र का राज। सिग्मंड फ्रायड
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ की कमाई नीत्शे
चैतन्य की मित्रता लल्लाह (स्त्री)
सेवा का महत्व रमण महर्षि और ऑस्बोर्न
किताबी ज्ञान शेख फरीद
तैमूरलंग कि कीमत अकबर और बीरबल
मोह किससे जैन मुनि और रुक्मिणी
राम मोहन रॉय की सहनशीलता जीसस और पुरोहित
आइंस्टीन के उपकरण राम बादशाह के छः हुक्मनामे
स्वाभिमानी बालक कृष्ण और अर्जुन
सिकंदर का अहंकार बुद्ध चुप रह गए
जिज्ञासु बालक राम कृष्ण और एक आदमी
लम्बे सफर में ईमानदारी दस मूढ़ व्यक्ति
लिंकन की सहृदयता जीसस और शिष्य
रॉयटर्स का प्रारम्भ स्वान्त सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
कार्ल मार्क्स की पत्नी बुद्ध और राजा
जिम्मेदारी सेठ और भीखमंगा
माइकल फेयराडे की कहानी बुद्धम शरणं गच्छामि
आइंस्टीन के प्रसंग और संस्मरण भट्टो जी दीक्षित
यह है जीनियस अवसर चूक गया
जर्मन विचारक हेरिगेल नानक: मक्का मदीना
प्लेटो की उटोपिया माइकलएंजलो
सौंदर्य और कुरूपता की देवी तुर्गनेव
इमैनुएल कांट। रामतीर्थ
तीसरा घोड़ा संत अगस्तीन
सदगुरु मार्ग दिखाते हैं अकबर और बीरबल
सम्राट सोलोमन की कथा कार्ल मार्क्स का नया दर्शन
एक झेन फकीर। सबे सयाने एक मत
यहूदी फकीर बालसेन महात्मा बुद्ध और देवदत्त
श्री अरविंदो घोष। मनोवैज्ञानिक फ्रायड
बाऊलो की कथा रवींद्रनाथ टैगोर
रामकृष्ण की चेतना एक यूनानी हाकिम
बाऊल फकीर का गीत यहूदी फकीर मजीद
एंड्रू कारनेगी बुद्ध और सम्राट
लुई पाश्चर स्वामी राम
रोज़ा लगज़मबर्ग जापान में दूसरा युद्ध
जर्मनी का चर्च। हिटलर की जीवनी
एक युवक और संत दुनिया का नक्शा
ययाति की प्रसिद्ध कथा च्वांगत्सु
खजुराहो, कोणार्क व पूरी बौद्ध भिक्षु और वैश्या
बुद्ध को उसी रात ज्ञान हुआ इब्राहिम और फकीर
एक तिब्बती कहावत महावीर का प्रसिद्द वचन
फरीद और कबीर नेपोलियन का प्रेम
बोधि धर्म और सम्राट वू आइंस्टीन का सिद्धांत
एंड्रू कारनेगी दो फकीर और झोला
जीसस की कथा मुसलमान सम्राट और सूफ़ी फकीर
एडिंगटन अकबर और तानसेन
आइंस्टीन के अंतिम वचन मुझे दुखी क्यों बनाया
सुकरात खलील जिब्रान
इंग्लैंड की लार्ड सभा का अध्यक्ष चीन की दिवाल
सूफियों की एक किताब परमात्मा की खोज
फ्रांस की कहावत बुद्ध और सम्राट का चढ़ावा
वेटिंग फॉर गोडोट। बूंद और सागर
सूत्ता और असूत्ता सिरहान
फकीर बायजीद दुश्मन को भी प्रेम करो
जीसस का वचन सम्राट और वज़ीर
राबिया और फकीर हसन बोधिधर्म और सम्राट वू
नरक और स्वर्ग सन्यासी या चक्रवर्ती सम्राट
गलत सौदा जो खोएगा वही पाएगा
मैं बुद्ध हूं इंग्लैंड की महारानी
बुद्ध और सारथी मीरा
यक्ष और युधिष्ठिर रामतीर्थ और सरदार पूर्णसिंह
जीवन की पूरी कथा दुख है शून्य हो जाओ
रोम का प्रसिद्ध लोहार रामकृष्ण की पूजा
ऑस्कर वाइल्ड अनंतानंत
परमात्मा का पुत्र राबिया और सूफ़ी फकीर हसन
तीन पैसे का दान स्वीडन का वैज्ञानिक
मंसूर को सूली जीसस का वचन
करुणा का फल नौकर की आवश्यकता
अकबर का नगर बुद्ध का त्याग
भविष्य में कभी बुद्ध होगा दो विचारक
आर. डी. लैंग चर्च में नीग्रो
जीसस और एक पणिहारिन दो युवा सन्यासी और गुरु
सुरती कुआं और हौज
सब तेरा देवताओं के वस्त्र
उपहास एडॉल्फ हिटलर
एक फकीर महात्मा भगवानदीन अभय
आखिरी दावत मंदबुद्धि का कसूर
प्रसिद्ध सितारवादक जैनों का मंदिर
बुद्ध समाधिस्थ हुए । खूंटी का ऊंट
दो व्यक्तियों का झगड़ा ईश्वर है क्या
सम्राट अकबर और फकीर सूरज और अंधेरा
जॉर्ज माइक्स और ज्योतिषी चौंतीस आँखें
गुर्जिएफ। अंधा आदमी
पुनरागमन अप्प दीपो भवः
दुख: निरोध मैं दूसरा मनुष्य होकर आया हूं
ग्यारह प्रश्न पावलोवना
राजदूत और औरंगजेब वहां तीन थे
दो गधे पैसों का हिसाब
फ्रायड का सिद्धांत मुहम्मद हजरत
दर्पण। आदमी की कमजोरी
सिर्फ जीवन है अहंकार
छप्पर पर ऊंट तुम कौन हो?
धर्म की शिक्षा महाकवि और सम्राट
सुकरात का महाअज्ञान महात्मा कौन
सिकंदर नीत्शे
अहंकार से मुक्ति वह मैं नहीं था
बोधिधर्म और सम्राट वू। मिलारेपा
दान जापान का युवा फकीर
माओत्से तुंग मन का भ्रम
जीवन की वीणा। मुसलमान फकीर नसरुद्दीन
राबिया। सोने की ईंट
इजिप्त का सम्राट छींक
शांति धोखा है। विश्वास
खतरे में जिओ बुद्ध और अंधा आदमी
एक ही दरवाजा। दो सैनिक
आनंद विवेकानंद
समुराई गांधी का ब्रह्मचर्य
केनेथ वाकर अकबर और दो राजपूत युवक
पावलक प्रसिद्ध लामा
रवींद्रनाथ मुसलमान फकीर और शत्रु
अब्राहम लिंकन क्रोध की बीमारी
कनफ्यूशियस दिल्ली कितनी दूर है
बीस्टन चर्चिल दो फकीरों का नज़रिया
गामा मेग्दलीन का बगीचा
सैंडो फरीद और अकबर
सिमोन वेल ( फ्रेंच विचारिका)। कुशल अभिनेता
अंधा फकीर एलिस और परी
स्वीकार चक्रवर्ती सम्राट का हस्ताक्षर
मां और बेटी एक भिखारी
एक फकीर होतेई मसि कागद छूयो नहीं
एक अद्भुत गुरु सोईची। प्रेम यानी पड़ोस
अरब का अद्भुत व्यापारी यूनान का फकीरडायोजिनीज
कर्ण और अर्जुन की लड़ाई एक सुलझा हुआ समीक्षक
एकनाथ की कथा पर्दे के पीछे कौन है?
आले में सर्प सूफ़ी फकीर उमर खय्याम
विटगिंस्टीन मीरा और पुजारी
बगदाद का एक नाई राह देखना!
न्यूमैन भगवान आदमी को खोजता है
तेरी मर्ज़ी पूरी हो सुकरात और डेल्फी का देवता
सूली ऊपर सेज पिया की नारद और भगवान विष्णु
अनुगृहित बुद्ध की तपस्चर्या
नेपोलियन का दूत और पुरोहित। न्यूटन
व्हाइट फील्ड रिंझाई: वॉक- ऑन
झेन फकीर हिकी बुद्ध और देवतागण
मानसिकता सिग्मंड फ्रायड
चर्च का उपदेश अल्टीमेटम
फुल्टन शीन अहंकार महाशंख है
संत पीटर और तीन मित्र ग्रंथि और निर्ग्रंथ
डा. जॉन. ए. हटन ज्ञान उधार है
कबीर की वाणी नसरुद्दीन कौन?
इंजील दूसरे महायुद्ध की घटना
गुरु बनने की चाह मेरा और तेरा। आधुनिक रामलीला
अनात्मा जीसस का वचन
जो घर बारै आपना डिट्टो
मिस्री कहावत महाकवि व्हिटमैन
पांच अंधे और हाथी एडॉल्फ हिटलर
दर्शन शास्त्र का विद्यार्थी ईसाई पादरी का सिद्धांत
सुकरात का ज्ञान माफ़ी कितनी बार ?
ऊपर जाने का रास्ता राजा का रथ और गरीब
धर्मगुरु और नसरुद्दीन रवींद्रनाथ का धन्यवाद
इन्वॉल्वमेंट और इंस्टॉलमेंट कौन सी बाधा?
अड़ंगा बुद्ध और महाकाश्यप
स्वामी राम की बादशाहत बुद्ध के वचन
रुमाल की गांठें रिंझाई
कबीर के वचन इक्का
तुलसीदास चीन का ताओवादी संत
भगवान गुर्जिएफ: सपना
लाओत्से वेदांती सन्यासी
नंबर १००१। शंकराचार्य और सन्यासी
वेद मोल - भाव
परमात्मा का वरदान अठन्नी
बर्नार्ड शॉ की किताब इमर्सन का प्रसिद्ध वचन
सिकंदर और डायोजिनीज दस शब्द
डायोजिनीज की मालकियत सिकंदर की अर्थी
मुल्ला और दर्पण काश्यप
अनातोले फ्रांस का प्रसिद्ध वचन बादरायन
बुद्ध का विरोध यहूदी विचारक मार्टिन बुबर
शब्दकोश और बाइबिल। गजनी का मुहम्मद
परमात्मा का आनंद यह चांटा किस बात का?
मुल्ला नसरुद्दीन और चंदूलाल
दो बार निराशा
फिर दोनों की शादी हो गई
पागलखाना
मजनू और लैला
जीवन की खोज ही धर्म है।
१.एक दिन बुद्ध और उनके सारथी चन्ना किसी युवा महोत्सव में भाग लेने नगर से बाहर जा रहे थे।
अचानक बुद्ध ने एक मरे हुए आदमी को देखा , पूछा अपने
सारथी को : क्या हो गया है इसे ?
सारथी ने कहा : सभी को हो जाता है - अंत में सभी मर जाते
हैं।
बुद्ध ने कहा : वापस लौटा ले।
सारथी ने कहा : लेकिन हम युवा महोत्सव में भाग लेने जा रहे थे। वे आपकी प्रतीक्षा करते होंगे , क्योंकि राजकुमार गौतम हीं युवक महोत्सव का उद्घाटन करने को था।
गौतम बुद्ध ने कहा : अब मैं युवक न रहा। जब मौत आती है, और मौत आ रही है - कैसा यौवन ? कैसा उत्सव ? वापस लौटा ले मैं मर गया। इस आदमी को मरा हुआ देखकर मैं जिसे अब तक जीवन समझता था , वह मिट गया ; अब मुझे किसी और जीवन की तलाश में जाना है।
उस जीवन की खोज हीं धर्म है।
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प्रेम गली अति सांकरी तामें दो न समाए
(जलालुद्दीन रूमी की प्रसिद्ध कविता )
२.प्रेमी ने द्वार पर दस्तक दी प्रेयसी के और पीछे से पुछा गया : कौन आया है ? कौन है?
और प्रेमी ने कहा : मैं हूं तेरा प्रेमी और भीतर सन्नाटा छा गया। प्रेमी ने दुबारा दस्तक दी और कहा : क्या मुझे पहचाना नहीं? मेरी आवाज , मेरे पदचाप पहचाने नहीं? मैं हूं तेरा प्रेमी !
प्रेयसी ने कहा : सब पहचान गई , लेकिन यह घर बहुत छोटा है। प्रेम का घर बड़ा छोटा है..... इसमें दो न समा , सकेंगे ; इसमें एक हीं समा सकता है।
और प्रेमी चला गया। उसने वर्षों मेहनत की। चांद आये - गये। सूरज उगे - डूबे ! उसने सब फिक्र छोड़ दी। उसने अपने मैं को बिल्कुल मिटा डाला। फिर आया वर्षों के बाद ; द्वार पर दस्तक दी। वही प्रश्न : कौन है ? इस बार उसने कहा : तु हीं, है, और कोई नहीं। और द्वार खुल गए।
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दो अलग दुनियां
३.बुद्ध पर एक आदमी थूक गया और दूसरे दिन क्षमा मांगने आया।
बुद्ध ने कहा : नासमझी मत कर। तु कर तो कर , मुझसे मत करवा। जिस दिन तु थूक गया था वह आदमी अब कहां !
और जो थूक गया था वह आदमी अब कहां ! वह बात गई - गुजरी हो गई। भुल ! जाग ! मैं वह नहीं हूं। चौबीस घंटे में गंगा का कितना पानी बह गया ! तु वही नहीं है। मेरी तो फिकर छोड़ ; लेकिन तेरी तो बात साफ है : कल तु थूक गया था ; आज तु क्षमा मांगने आया है ! तु वही कैसे हो सकता है ? थुकनेवाला और क्षमा मांगनेवाला दो अलग दुनिया है !
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दोजख़ की आग
(अरबी रबायत)
४.एक सदगुरु ने अपने शिष्य को चिलम सुलगाने के लिए आग लाने को कहा। शिष्य ने प्रयास किया, लेकिन कहीं भी आग न पा सका। उसने गुरु को आकर कहा, आग नहीं मिलती। तो सदगुरु ने झल्लाने का अभिनय करते हुए कहा: जहन्नुम में मिल जायेगी। वहां तो मिलेगी न, वहां से ले आ !
और कथा कहती है कि वह शिष्य जहन्नुम पहुंच गया - दोजख़ की आग लाने । द्वारपाल ने उससे कहा : भीतर जाओ और ले लो, जितनी चाहिए उतनी ले लो । शिष्य जब अंदर गया तो बड़ा हैरान हुआ, वहां। भी खाली हांथ लौटना पड़ा ! लौटकर उसने द्वारपाल से कहा : हमने तो सुना था वहां आग हीं आग है, और यहां तो आग का कोई पता नहीं! यहां भी आग नहीं मिली तो अब क्या होगा ?
अब आग कहां खोजेंगे?
द्वारपाल ने कहा : यहां आनेवाला हर इंसान अपनी आग अपने साथ लाता है !
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सच्चा साधु
५. भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को दीक्षा देने के उपरांत उन्हें धर्मचक्र - प्रवर्तन के लिए अन्य नगरों और गांवों में जाने की आज्ञा दी। बुद्ध ने सभी शिष्यों से पूछा - " तुम सभी जहां कहीं भी जाओगे वहां तुम्हें अच्छे और बुरे - दोनों प्रकार के लोग मिलेंगे। अच्छे लोग तुम्हारी बातों को सुनेंगे और तुम्हारी सहायता करेंगे। बुरे लोग तुम्हारी निंदा करेंगे और गालियां देंगे । तुम्हें इससे कैसा लगेगा?"
हर शिष्य ने अपनी समझ से बुद्ध के प्रश्न का उत्तर दिया।
एक गुणी शिष्य ने बुद्ध से कहा - " मैं किसी को बुरा नहीं समझता। यदि कोई मेरी निंदा करेगा या मुझे गालियां देगा तो मैं समझूंगा कि वह भला व्यक्ति है क्योंकि उसने मुझे सिर्फ गालियां हीं दी , मुझ पर धूल तो नही फेंकी।
बुद्ध ने कहा - और यदि कोई तुमपर धूल फेंक दे तो ?
मैं उन्हें भला हीं कहूंगा क्योंकि उसने सिर्फ धूल हो तो फेंकी, मुझे थप्पड़ तो नहीं मारा।"
और यदि कोई थप्पड़ मार दे तो क्या करोगे?
मैं उन्हें बुरा नहीं कहूंगा क्योंकि उन्होंने मुझे थप्पड़ हीं तो मारा, डंडा तो नहीं मारा।
"यदि कोई डंडा मार दे तो ?"
मैं उसे धन्यवाद दूंगा क्योंकि उसने मुझे केवल डंडे से हीं मारा, हथियार से तो नहीं मारा।"
लेकिन मार्ग में तुम्हे डाकु भी मिल सकते हैं जो तुमपर घातक हथियार से प्रहार कर सकते हैं।"
तो क्या? मैं तो उन्हें दयालु हीं समझूंगा, क्योंकि वे केवल मारते हीं है, मार नहीं डालते।"
"और यदि वे तुम्हें मार हीं दल।
शिष्य बोला - इस जीवन और संसार में केवल दुख हीं है। जितना अधिक जीवित रहूंगा उतना अधिक दुख देखना पड़ेगा।
जीवन से मुक्ति के लिए आत्महत्या करना तो महापाप है।यदि कोई जीवन से ऐसे हीं छुटकारा दिला दे तो उसका भी उपकार मानूंगा।"
शिष्य के यह वचन सुनकर बुद्ध को अपार संतोष हुआ। वे बोले - तुम धन्य हो । केवल तुम ही सच्चे साधु हो। सच्चा साधु किसी भी दशा में दूसरे को बुरा नहीं समझता । जो दूसरों में बुराई नहीं देखते वही सच्चा परिव्राजक होने के योग्य है। तुम सदैव धर्म के मार्ग पर चलोगे।"
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जीसस की कथा
६.जीसस ने कहा है अपने शिष्यों को कि एक धनपति तीर्थयात्रा को गया। उसने अपने नौकरों को कहा कि ध्यान रखना, चौबीस घंटे दरवाजे पर रहना , क्योंकि मेरा कुछ पक्का नहीं है मैं किस समय वापिस लौट आऊ। दरवाजा बंद न मिले ।
तो चौबीस घंटे चाकरों को, नौकरों को दरवाजा खोल कर रखना पड़ता और वहां बैठे रहना पड़ता। दो - चार दिन, पांच दिन, सात दिन बीते, उन्होंने कहा : अब यह हद हो गई , अभी तक तो आना नहीं हुआ ! उन्होंने कहा, छोड़ो भी, अब मजे से दरवाजा बंद करके सो जाओ जब आयेगा तब देख लेंगे।
जिस रात वे दरवाजा बंद करके सोए, वह आ गया । जीसस कहते थे : ऐसी हीं भूल तुम मत कर लेना। तुम दरवाजा खोलकर बैठे रहना। जब भी आए, जब उसकी मर्जी हो - आए। जब तैयारी होगी तभी आयेगा।
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नान - इन की कथा
७. मेईज़ी युग ( १८६८- १९१२) के नान - इन नामक एक ज़ेन गुरु के पास किसी विश्वविधालय का एक प्रोफेसर ज़ेन के विषय में ज्ञान प्राप्त करने के लिए आया।
नान - इन ने उसके लिए चाय बनाई । उसने प्रोफेसर के कप में चाय भरना प्रारंभ किया और भरता गया । चाय कप में लबालब भरकर कप के बाहर गिरने लगी।
प्रोफेसर पहले तो यह सब विस्मित होकर देखता गया लेकिन फिर उससे रहा न गया और वह बोल उठा । " कप पुरा भर चुका है । अब इसमें और चाय नहीं आयेगी।
" इस कप की भांति", - नान - इन ने कहा - "तुम भी अपने विचारों और मतों से पुरी तरह भरे हुए हो। मैं तुम्हे ज़ेन के बारे में कैसे बता सकता हूं जब तक तुम अपने कप को खाली नहीं कर दो।
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उपवास कि परीक्षा
८.एक सूफ़ी फकीर यात्रा पर जा रहा था - तीर्थ यात्रा पर । उसने कसम खायी थी कि एक महीने का उपवास रखेंगे, यह पूरी यात्रा उपवासी - अवस्था में करेंगे । तीन - चार दिन बीते , एक गांव में आया तो आते हीं खबर मिली कि तुम्हारा एक भक्त है, अदभुत भक्त है। गरीब आदमी है। उसने अपना झोपड़ा जमीन सब बेच दी और तुम्हारे स्वागत में भोज का आयोजन किया है। और सारे गांव को निमंत्रित किया है। फकीर के शिष्यों ने कहा: यह कभी नहीं हो सकता। हमने कसम खायी है, एक महीने उपवास रहेगा। हम अपने व्रत से कभी डांवाडोल नहीं हो सकते।
लेकिन जब उन्होंने आकर फकीर को कहा, फकीर ने कहा, फिर ठीक है। कसम का क्या, कोई हर्जा नहीं।
शिष्य तो बड़े हैरान हुए कि जिस पर इतना भरोसा किया..... यह तो पाखंडी मालूम होता है। कसम खायी और चार दिन में बदल गया। भोजन के प्रति इसकी लोलुप दृष्टि मालूम होती है । मगर अब सबके सामने कुछ कह भी न सके। लेकिन जब गुरु ही भोजन कर रहा था तो उन्होंने कहा, अब हम भी क्यों छोड़े।
जब यही सज्जन भ्रष्ट हो गये तो हम तो इन्हीं के पीछे चल रहे थे, अब हमें क्या मतलब !
सब ने भोजन किया। रात जब लोग विदा हो गये तो शिष्यों ने गुरु को पकड़ लिया और कहा कि क्षमा करें , आप यह बताएं , यह क्या मामला है? यह तो बात ठीक नहीं।
गुरु ने कहा : क्या बात ठीक नहीं ?
' कि हमने एक महीने की कसम, खायी थी और आपने चार दिन में तोड़ दी।
गुरु ने कहा: कौन तुम्हें रोक रहा है। चार दिन छोड़ो, आगे का एक महीना उपवास कर लेंगे । एक महीने की कसम खायी थी न, जिंदगी पड़ी है, घबड़ाते क्यों हो ? मगर इस गरीब को तो देखो ! अब इससे यह कहना कि हमने एक महीने की कसम खायी है ......इसने जमीन बेच दी , मकान बेच दिया। इसके पास कुछ भी नहीं । इसने सारे गांव को निमंत्रित किया...... इसका गुरु गांव में आता है। इसको तो पता नहीं हमारी कसम का अब कसम की बात उठानी जरा हिंसात्मक हो जायेगी। इस गरीब के प्रेम को भी तो देखो। हमारी कसम का क्या है? एक महीना अभी आगे कर लेंगे । तुम घबड़ाते क्यों हो?
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एक ताओ कहानी
९.किसी गांव में एक किसान रहता था। उसके पास एक घोड़ा था। एक दिन वह घोड़ा अपनी खूंट तुड़ाकर भाग गया।
यह खबर सुनकर किसान के पड़ोसी उसके घर आए। इस घटना पर उसके सभी पड़ोसियों ने अफसोस जाहिर किया। सभी बोले - " यह बहुत बुरा हुआ " ।
किसान ने जवाब दिया - " हां......शायद"।
अगले ही दिन किसान का घोड़ा वापस आ गया और अपने साथ तीन जंगली घोड़ों को भी ले आया।
किसान के पड़ोसी उसके घर आए और सभी ने बड़ी खुशी जाहिर की। उनकी बात सुनकर किसान ने कहा - " हां .... शायद"।
दूसरे दिन किसान का इकलौता बेटा एक जंगली घोड़े की सवारी करने के प्रयास में घोड़े से गिर गया और अपनी टांग तूड़ा बैठा।
किसान के पड़ोसी उसके घर सहानुभूति प्रकट करने के लिए आये। किसान ने उनकी बातों के जवाब में कहा - "हां......शायद"।
अगली सुबह सेना के अधिकारी गांव में आए और गांव के सभी जवान लड़कों को जबरदस्ती सेना में भरती करने के लिए ले गए । किसान के बेटे का पैर टूटा होने की वजह से वह जाने से बच गया।
पड़ोसियों ने किसान को इस बात के लिए बधाई दी। किसान बस इतना ही कहा - "हां......शायद" ।
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रामतीर्थ की कथा
१०. रामतीर्थ ने कहा है कि एक युवक परदेस गया। उसकी प्रेयसी उसकी बहुत दिन तक राह देखती रही। पत्र उसके आते रहे। वह कहता , अब आऊंगा, तब आऊंगा, लेकिन आता - करता नहीं। आखिर प्रेयसी थक गयी। और वह पहुंच गयी परदेस। वह पहुंच गयी उसके द्वार पर । वह कुछ लिख रहा था
। तो वह बैठ गयी देहली पर, वह लिखना पुरा कर ले। वह बड़ी तल्लीनता से लिख रहा है । उसके आंसु बह रहे हैं । वह बड़े भाव में निमग्न है। उसको पता ही नहीं चला कि यह आकर बैठी है। आधी रात होने लगी। तब उस प्रेयसी ने कहा कि अब रुको भी कब तक लिखते रहोगे? मैं कब तक बैठी रहूं ? वह तो घबड़ा कर उसने आंख खोली । उसको तो भरोसा न आया। उसने तो समझा कोई भुत - प्रेत है, कि मर गयी मेरी प्रेयसी, या क्या हुआ ! तु यहां कैसे? वह तो एकदम थरथराने लगा।
उसने कहा: अरे घबराओ मत, मैं यहां बड़ी देर से बैठी हूं।
तो उसने कहा: तूने पहले क्यों नहीं कहा ?
तो उसने कहा: मैने सोचा कि आप कुछ लिख रहे हैं।
उसने कहा: क्या खाक लिख रहा हूं, पत्र लिख रहा हूं तुझी को। तु पहले ही कह दी होती।
तो रामतीर्थ ने कहा है - कुछ लोग ऐसे है: जो बहियां रखें बैठे हैं। परमात्मा का नाम लिख रहे है। अगर परमात्मा भी आकर खड़े हो जाएं, वे कहेंगे ठहरो, हमारी बही पूरी होने दो।
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एक फकीर और सुकरात
११.एक फकीर सुकरात को मिलने आया। वह बड़ा दीन फ़कीर था उसके कपड़े फटे थे। और सुकरात से जब वह बात करने लगा तो सुकरात थोड़ा हैरान हुआ, क्योंकि आदमी के कपड़े तो फटे थे, लेकिन अहंकार बिल्कुल ताजा था, साबित था।
कपड़ों में तो छेद थे, जरा जीर्ण थे, ऊपर से तो गरीबी थी; लेकिन भीतर बड़े अहंकार का भाव था। सुकरात ने उससे कहा: महानुभाव कपड़े, फाड़ने से कुछ भी न होगा। तुम्हारे कपड़ों के छेदों से तुम्हारा अहंकार ही झलक रहा है, और कुछ भी नहीं।
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आस्तिक और नास्तिक
१२.मैंने सुना है, एक ऋषि किसी पर नाराज़ हो गया, तो उसने अभिशाप दे दिया कि तुझे तीन जन्म तक संसार में भटकना पड़ेगा। जिस पर नाराज़ हो गया था उसने बड़ी ऋषि कि सेवा की, तो वह प्रसन्न हो गया; लेकिन अभिशाप को काटा नहीं जा सकता , दे दिया, दे दिया। छूट गए तीर शब्द के , उन्हें वापस कैसे लौटाओगे? जो शब्द छूट गया, छूट गया , अब उसे लौटाया नहीं जा सकता। जो हो चुका , हो चुका।
तो ऋषि बहुत प्रसन्न हो गया। उसने कहा: मजबूरी है। अब तो वापस नहीं लौट सकता, जो हो गया। शाप तो दे दिया। तीन जन्म तु भटकेगा। अब तू कोई वरदान चाहता है तो वह मैं दे सकता हूं। तु वरदान मांग ले।
तो उसने कहा कि तीन जन्म भटकुंगा , आप मुझे एक ही वरदान दे दें कि मैं परमात्मा को कभी भुलु न।
उस ऋषि ने बहुत सोचा। उसने कहा: अच्छा जा , तु नास्तिक हो जा। वह आदमी बहुत घबराया। उसने कहा: यह कैसा वरदान? यह तो अभिशाप हो गया। पहले से भी बुरा हो गया। तीन जन्म के बाद तो वापस लौटना हो जाता ; अब ये तीन जन्म अगर नास्तिक रहें, तो फिर लौटना कैसे होगा? यह तो हद हो गई। अब आप कहोगे ये शब्द भी निकल गए, वापस नहीं लौट सकते।
ऋषि ने कहा: मैं तुझे सोच कर अनुभव से कहता हूं। आस्तिक तो कभी - कभी भुल जाता है; नास्तिक कभी नहीं भूलता। वह कहता हीं रहता है, ईश्वर नहीं है। चौबीस घंटे लड़ने को तत्पर है कि ईश्वर नहीं है। विवाद करने को हजार काम छोड़ कर तैयार है। आस्तिक भी कहता है कि भई अभी तो फुरसत नहीं, दुकान में लगे हैं। नास्तिक लड़ने को तैयार। उसकी भी चेष्टा ईश्वर की याद की है, वह भुलाने की कोशिश कर रहा है, भुला नहीं पाता। वह चाहता है , ईश्वर न हो लेकिन चाहने से क्या होता है? वह सिद्ध करता है कि नहीं है, लेकिन उसी को सिद्ध करने में लग जाता है।
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भगीरथ की कथा
१३. भगीरथ की एक कथा है कि गंगा को भगीरथ पृथ्वी पर ले आए। बड़ा मुश्किल था ले आना । गंगा का विराट रूप था । डर था कि पृथ्वी डुब न जाए । लाना भी जरूरी था, क्योंकि गंगा के बिना पृथ्वी भी क्या पृथ्वी होती? गंगा के बिना सब सुना होता । स्वर्ग में बहती थी गंगा। स्वर्ग की गंगा चाहिए ही पृथ्वी पर; नहीं तो पृथ्वी निष्प्राण हो जाएगी, एक बड़ा मरघट हो जायेगी।
भगीरथ ने बड़ी साधना की। गंगा को रिझाया, राजी किया गंगा तो राजी हो गई, लेकिन उसने कहा कि मेरे आघात को न झेल पाओगे। पवित्रता का आघात भी तो बड़ा है। जैसे पांच कैंडल के बल्ब में और हजार कैंडल की बिजली दौड़ जाए तो फ्यूज उड़ जाए, बल्ब टूट जाए, खतरा हो।
गंगा ने कहा: मैं स्वर्ग में बहती हूं, इतनी बड़ी पवित्रता, इतना स्वर्गीय पुण्य पृथ्वी पर न झेल सकेगी। मुश्किल हो जायेगी। तुम जाओ किसी को राजी करो जो मुझे झेलने को राजी हो।
भगीरथ ने गंगा को आने को राजी कर लिया, लेकिन अब झेलेगा कौन? उन्होंने शिव की बड़ी प्रार्थना की ,पूजा की कि तुम इसे रोक लो। कथा बड़ी मधुर है। शिव राजी हो गए। और कहते हैं गंगा उतरी तो उनकी जटाओं में कई जन्मों तक भटकती रही। जटाओं में उतार लिया उसे। भटकती रही वहां। रास्ता हीं मिलना मुश्किल हो गया उसे। मिटाने की तो बात दूर पृथ्वी को डुबाने की तो बात दूर - उसे शिव की जटाओं से बाहर आने का रास्ता न मिले। तब तक उसका जो तूफानी रूप था, अंधड़ जो उसके प्राणों में था वह शांत हो गया।
शिव ने उसे कोमल बना दिया। शिव ने उसे नम्र बना दिया। अकड़ चली गई।
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मां की घर से आवाज आ गई
( बुद्ध की कथा)
१४. बुद्ध गुजर रहे थे एक गांव से। नदी के तट पर उन्होंने कुछ बच्चों को रेत के घर बनाते देखा। वे खड़े हो गए। उनकी ऐसी आदत थी। भिक्षु चुपचाप, उनके साथ थे, वे खड़े हो गए। बच्चे खेल रहे हैं, रेत के घर बना रहे हैं नदी के तट पर। किसी का पैर किसी के घर में लग जाता है। रेत का घर बिखर जाता है! झगड़ा हो जाता है। मार - पीट भी होती है, गाली - गलौज भी होती है कि तूने मेरा घर मिटा दिया। वह उसके घर पर कुद पड़ता है। वह उसका घर मिटा देता है। फिर अपना घर बनाने में लग जाते हैं। बड़े तल्लीन हैं! उनको पता नहीं है कि बुद्ध आकर चुपचाप खड़े हो गए हैं। वे घाट पर चुपचाप खड़े देख रहे हैं। वे बच्चे इतने व्यस्त हैं कि उन्हें कुछ भी पता नहीं है। घर बनाना ऐसी व्यस्तता की बात भी है। और फिर दूसरे दुश्मन हैं, उनसे ज्यादा अच्छा बनाना है, प्रतियोगिता है, जलन है, ईर्ष्या है, सब अपने - अपने घर को बड़ा करने में लगे हैं। और जितना बड़ा घर होता है उतनी ही जल्दी गिर जाने का डर भी होता है। उसकी रक्षा भी करनी है। यह सब हो रहा है। और तभी अचानक एक स्त्री ने आकर घाट पर आवाज दी की सांझ हो गई, मां घरों में याद करती है, घर चलो। बच्चों ने चौंक कर देखा दिन बीत गया सूरज डुब गया, अंधेरा उतर रहा है। वे उछले - कूदे अपने हीं घरों पर, सब मटियामेट कर डाला। अब कोई झगड़ा भी नहीं किसी दूसरे से कि तू मेरे घर पर कुद रहा है कि मैं तेरे घर पर।
अपने हीं घर पर कूदे। अब कोई लड़ा भी नहीं।
कोई ईर्ष्या भी न उठी, कोई जलन भी। खेल ही खत्म हो गया!
मां की घर से आवाज आ गई: वे सब भागे दौड़ते अपने घर की तरफ चले गए।
दिन भर का सारा झगड़ा, व्यवसाय, मकान, अपना - पराया -- सब भुल गया। घर से आवाज आ गई:
बुद्ध ने अपने भिक्षुओं से कहा: ऐसी ही एक दिन जब घर से आवाज आ जाती है तब तुम्हारे बाजार, तुम्हारी राजधानियां ऐसी हीं पड़ी रह जाती है: रेत के घर! जब तक खेलना हो खेल लो। खेल रहे हो तब भी घर भुल थोड़े ही गए हो। अगर भुल ही गए होते घर तो जब द्वार पर आकर कोई आवाज देता है, या घाट पर आवाज देता है कि मां घर याद करती है, चलो, तब तुम कैसे पहचानते: कौन मां, कैसा घर?
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कबीर की कथा
१५. एक घटना है कबीर के जीवन में एक बाजार से गुजरते हैं। एक बच्चा अपनी मां के साथ बाजार आया है। मां तो शाक सब्जी खरीदने में लग गई और बच्चा एक बिल्ली के साथ खेलने में लग गया है। वह बिल्ली के साथ खेलने में इतना तल्लीन हो गया है कि भुल हीं गया कि बाजार में है, भुल हीं गया कि मां का साथ छूट गया है; भुल हीं गया कि मां कहां गई।
कबीर बैठे उसे देख रहे हैं। वे भी बाजार आए हैं, अपना जो कुछ कपड़ा वगैरह बुनते हैं, बेचने। वे देख रहे हैं। उन्होंने देख लिया है कि मां भी साथ थी और वे जानते हैं कि थोड़ी देर में उपद्रव होगा, क्योंकि मां तो बाजार में कहीं चली गई और बच्चा बिल्ली के साथ तल्लीन हो गया है। अचानक बिल्ली ने छलांग लगाई। वह एक घर में भाग गई। बच्चे को होश आया। उसने चारों तरफ देखा और जोर से आवाज दी मां को। चीख निकल गई।
दो घंटे तक खेलता रहा, तब मां की बिल्कुल याद न थी.... क्या तुम कहोगे?
कबीर अपने भक्तों से कहते: ऐसी हीं प्रार्थना है, जब तुम्हें याद आती है और एक चीख निकल जाती है। कितने दिन खेलते रहे संसार में, इससे क्या फर्क पड़ता है? जब चीख निकल जाती है, तो प्रार्थना का जन्म हो जाता है ।
तब कबीर ने उस बच्चे का हांथ पकड़ा, उसकी मां को खोजने निकले।
तब कोई सदगुरु मिल हीं जाता है जब तुम्हारी चीख निकल जाती है।
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क्वाइनन प्रतिमा बुद्ध की
१६. चीन में एक प्रतिमा पूजी जाती है: क्वाइनन।
क्वाइनन बुद्ध की हीं एक प्रतिमा है..... लेकिन बड़ी अनूठी प्रतिमा है! प्रतिमा स्त्री की है। मामला क्या हुआ? यह बुद्ध की प्रतिमा स्त्री की कैसे हो गई? जब पहली दफा बुद्ध की खबर चीन में पहुंची तो चीन के मूर्तिकारों को वहां के सम्राट ने कहा कि प्रतिमा बनाओ बुद्ध की। तो उन्होंने बुद्ध का जीवन जानना चाहा। उनका आचरण जानना चाहा, उनके गुण जानने चाहे.. क्योंकि प्रतिमा कैसे बनेगी? जब उन्होंने सारे गुण और सारे आचरण की खोजबीन कर ली, तो उन्होंने कहा: यह आदमी पुरुष तो हो ही नहीं सकता। भला पुरुष शरीर में रहा हो, लेकिन यह आदमी पुरुष नहीं हो सकता। इसमें ऐसी करुणा है, ऐसी ममता है, ऐसा प्रेम है.... स्त्री ही होगा। तो उन्होंने जो प्रतिमा बनायी वह क्वानइन के नाम से अब भी हैं, मौजूद हैं।
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कैसे याद करें परमात्मा को?
१८. कबीर से किसी ने पूछा है कि कैसे करें याद? तो कबीर ने कहा है: ऐसी करो याद जैसे कि कोई पनघट से पानी भर कर पनिहारिन घर की तरफ चलती है, सिर पर घड़े रख लेती है। हांथ भी छोड़कर गपशप करती है अपनी सहेलियों के साथ, बातचीत करती, राह पर चलती है, राह को भी देखती है; लेकिन फिर भी गहरे में घड़े को संभाले रखती है। वे घड़े गिरते नहीं। बात करती है, राह चलती है, सब चलता है; लेकिन भीतर घड़े सभाले रहती है।
ऐसे हीं भक्त सब करता है। अब भगवान को बैठ कर अलग से याद भी नहीं करता, लेकिन भीतर गहरे में याद बनी रहती है। सतत उसकी धार हो जाती है।
तो कबीर कहते हैं, दो तरह की धार होती है। पानी की धार जो बीच - बीच में टूट जाती है। दूसरा तेल की धार जो सतत होती है टूटती नहीं। ऐसा कहो कि याद सतत हो जाती है, श्वास- श्वास में पिरो जाता है, धड़कन - धड़कन में बस जाती है ।
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लाओत्सू की कहावत
१८. पुरानी लाओत्सू की कहावत है: जिओ ऐसे जैसे यह आखिरी दिन हो, और जिओ ऐसे भी जैसे सदा रहना हो। बड़ा कठिन है ! जिओ ऐसे जैसे यह आखिरी दिन हो। कल पर मत टालों। जो भी करना है आज कर लो, अभी कर लो। यही क्षण एकमात्र क्षण है। हांथ में बस यही है। कल की सोच कर मत टालों। जिओ ऐसे जैसे आज आखिरी दिन हो; यह सूरज ढलेगा और तुम भी ढलोगे।
और लाओत्सू उसी के साथ यह भी कहता है। जिओ ऐसे भी जैसे सदा यहां रहना हो। तो जल्दी भी मत करो। करने में तो अभी कर लो , लेकिन प्रतीक्षा अनंत की रखो। बीज तो अभी बो दो, लेकिन फल जब आयेंगे तभी ठीक है। कोई जल्दी नहीं है; जैसे अनंत तक यहां रहना हो; जैसे कभी यहां से जाना न हो।
परमात्मा के मिलन के लिए भी तैयारी तो ऐसी करो जैसे अब आया, अब आया ; द्वार पर दस्तक तो पड़ती हीं है, उसके चरण चिन्ह सुनाई पड़ने लगे, चरण की आवाज आने लगी, पद चिन्ह पड़ने लगे द्वार पर; पग ध्वनि आ गई; अभी आ ही रहा है -- तैयार तो ऐसे रहो। और प्रतीक्षा इतनी रखो कि अनंत काल में भी आयेगा तो भी तुम्हारे भीतर शिकायत न होगी।
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मुक्ति
१९. एक बहुत पुरानी कहानी है। नारद जाते हैं स्वर्ग की तरफ । एक बूढ़ा फकीर , बड़ा पुराना तपस्वी , वृक्ष के नीचे अपनी तपस्चर्या कर रहा है नारद उसके पास से गुजरते हैं अपनी वीणा बजाते , तो वह कहता है : कहा जाते हैं? परमात्मा की तरफ जाते हैं? अगर जाते हों, तो पूछ लेना मेरे संबंध में कि अब और कितनी देर है ? तीन जन्म हो गए मुझे तपस्चर्या करते । किसी चीज की सीमा होती है , हद होती है । अब यह बात बेहद हुई जा रही है । धैर्य का गुण ठीक है , लेकिन कब तक? जरा पूछ लेना: और कितनी देर है ?
नारद ने कहा: जरूर पूछ लूंगा। हँसी तो नारद को बहुत आई कि यह बात भी कोई प्रार्थना से भरे चित की बात है! प्रार्थना से भरे चित की कभी कोई धैर्य की सीमा आती है? यह भी कोई प्रेमी का लक्षण है? लेकिन अब ठीक है पूछ लेंगे।
एक दूसरे वृक्ष के नीचे एक युवक सन्यासी नाच रहा था, अपना इकतारा लिए , उससे उन्होंने मजाक में ही पूछा कि भई, तुझे भी तो नहीं पूछना कि कितनी देर है? तेरी भी पूछ लेंगे इन्हीं के साथ।
लेकिन उसने कोई जवाब न दिया , वह नाचता ही रहा। थोड़ा नारद को भी हैरानी हुई। कहा: सुनते नहीं बहरे हो? जा रहा हूं परमात्मा की तरफ, तुम्हारी भी पूछ लूंगा।
लेकिन उस युवक ने फिर भी कोई ध्यान न दिया, वह नाचता ही रहा।
कुछ दिन बाद नारद वापस लौटे। उस बूढ़े आदमी से कहा .... वह बैठा था तैयार; माला का मनका भी हांथ में घूमता रुक गया था। उसने पूछा: पूछा? क्या बोले?
नारद ने कहा कि क्षमा करें, उन्होंने कहा, तीन जन्म और लग जाएंगे। उसने माला वहीं फेंकी। लात मार कर मूर्ति हटा दी। पूजा के फूल बिखरा दिए और कहा : बस हो गया बहुत! यह तो अंधेर है। तीन जन्म से धक्के खा रहे हैं। और तीन जन्म! नहीं, अब नहीं सहा जाता।
नारद उस युवक फकीर पास गए जो अभी भी नाच रहा था तंबूरा लिए। कहा कि भाई, डर लगता है तुझसे कहें कि न कहें, क्योंकि तीन जन्म की बात से ही वह बूढ़ा सन्यासी इतना नाराज हो गया कि डर था कहीं हमला न कर दे हम पर, जैसे हमारा कोई कसूर हो! लेकिन जब पूछ ही लिया है तो कह देना उचित है। तुम्हारे संबंध में भी पूछा था । नाराज़ मत होना।
परमात्मा ने कहा कि जितने उस वृक्ष में पत्ते हैं जहां वह नाच रहा है युवक सन्यासी, उतने जन्म लगेंगे।
वह सन्यासी और जोर से नाचने लगा। उसने कहा तब तो पा ही लिया! इतने से पत्ते! संसार में कितने पत्ते हैं! सिर्फ इतने ही पत्ते जीतने वृक्ष में हैं! जीत लिया ,मामला हल हो गया! धन्यवाद!
और कहते हैं, यह कहते हीं वह सन्यासी मुक्त हो गया। क्योंकि जिसकी इतनी प्रतीक्षा हो; जो कह सके इतने से पत्ते इस वृक्ष में । पृथ्वी तो अनंत पत्तों से भरी है, इतने में हीं पा लूंगा, तो तो यह किनारा पास ही है। मिल हीं गया, अब इसमें कुछ देर क्या रही!
जो इस भाव से भरा हो उसे क्षण भर को देर न लगेगी।
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चार ईसाई फ़कीर
२०. एक पुरानी कहानी है, चार ईसाई फ़कीर एक चौराहे पर मिले। उन चारों के चार बड़े आश्रम थे जंगल में। चारों लौटते थे शहर से उपदेश करके, राह में मिलना हो गया। विश्राम करते थे वृक्ष के नीचे बैठ कर। पहले ईसाई फ़कीर ने कहा कि तुम्हें पता होना चाहिए कि हमारी जो मोनेस्ट्री है, हमारा जो आश्रम है, उसने आज तक जितने बड़े दार्शनिक दुनियां को दिए, उतने तुम्हारे किसी आश्रम ने नहीं दिए।
दूसरे ने कहा: यह बात बिल्कुल ठीक है, जितने बड़े दार्शनिक तुम्हारे आश्रम में पैदा हुए, किसी आश्रम से पैदा नहीं हुए। लेकिन जितने बड़े त्यागी हमने पैदा किए हैं हमारे आश्रम से, उतने बड़े त्यागी तुम्हारे आश्रम या किसी भी आश्रम से कभी पैदा नहीं हुए।
तीसरे ने कहा: यह बात भी सच है; लेकिन पांडित्य में तो तुम हमारा कोई मुकाबला न कर सकोगे। जैसे शास्त्र के जानकार और जैसी बाल की खाल निकालने वाले कुशल चिंतक हमने पैदा किए, किसी ने पैदा नहीं किए।
तीनों ने चौथे की तरफ देखा, जो चुपचाप बैठा था। उसे चुप देखकर उन्होंने कहा: तुम कुछ बोलते नहीं?
उसने कहा कि जहां तक हमारे आश्रम का संबंध है, जैसे दिन, ना कुछ, विनम्र व्यक्ति हमने पैदा किए हैं, उसका कोई मुकाबला नहीं। वी आर दी टॉप इन ह्यूमिलिटी।
टॉप इन ह्यूमिलिटी! शिखर पर है विनम्रता के! मगर विनम्रता का कोई शिखर होता है? शिखर ही के कारण तो विनम्रता नहीं होती। जहां विनम्रता हैं वहां विनम्रता का भाव भी नहीं हो सकता।
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जीसस का वचन
२१.जीसस का एक बड़ा प्रसिद्ध वचन है। एक आदमी निकोडेमस जीसस के पास आया और उसने कहा कि मुझे आशीर्वाद दो कि मेरे धन में बढ़ती हो, मेरी समृद्धि बढ़े, मेरे सौभाग्य में हज़ार गुना गति हो।
जीसस ने कहा: सीक यी फर्स्ट दि किंगडम ऑफ गॉड,
दैन ऑल एल्स शैल बी एडेड अनटु यूं। तू सिर्फ परमात्मा को खोज, परमात्मा के राज्य को खोज; शेष सब अपने आप पीछे चला आयेगा।
और इससे उल्टी बात भी ध्यान रखना, जिसने शेष को खोजा, उसने कभी कुछ न पाया; शेष तो खोया ही परमात्मा को भी खोया। जिसने परमात्मा को खोजा उसने परमात्मा को तो पाया ही, शेष सब भी पा लिया; क्योंकि उसके बाहर और क्या है।
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झेन फ़कीर की कथा
२२.एक झेन फ़कीर रात सोने के ही करीब था कि चोर उसके घर में आ गया। गांव से दूर था घर। फ़कीर को बड़ी बेचैनी हुई की बेचारा चोर! इतनी रात अमावस की, अंधेरी रात में, इतने दूर चल कर आया और झोपड़े में कुछ है ही नहीं। सिर्फ एक कंबल है जो वह खुद ही ओढ़े हुए है। तो वह चुपचाप कंबल को एक कोने में रख कर सरक गया अंधेरे में, कि यह कुछ तो ले जाए; अन्यथा इतनी दूर आया और खाली हांथ जाए! ऐसा हमारा सौभाग्य कहां कि यहां चोर आएं। चोर तो धनियों के घर जाते हैं। पहली दफ़े तो यह भाग्य आया कि चोर ने हमें यह सम्मान दिया, और इसको भी हम अधूरा हाथ, खाली हाथ भेज दे! तो सरका कर अपने कंबल को एक कोने में हट गया। चोर कुछ डरा कि मामला क्या है! वह अंधेरे में खड़ा देख रहा है।और जब यह कंबल को छोड़कर हट गया तो उसे और भी भय लगा कि यह फसाने की तरकीब तो नहीं है, क्या मामला है? घर में कुछ है भी नहीं, आदमी भी अजीब है! कुछ भी नहीं है घर में; बस यह कंबल ही एकमात्र दिखता है, खुद नंगा मालुम होता है। तो वह निकल कर भागना चाहा।और उसने सोचा कि इसका कम्बल भी किस मतलब का होगा; हजार छेद होंगे, सड़ा- गला होगा! जिसके पास कुछ भी नहीं, उसके कंबल का भी क्या भरोसा!
भागने को था कि उस फ़कीर ने आकर दरवाजे पर रोक लिया और कहा कि ऐसी ज्यादती मत करो, वह कंबल ले जाओ; नहीं तो मन में सदा के लिए पीड़ा रह जाएगी कि तुम आए भी, और खाली हाथ गए। कौन आता है अंधेरी रात में?
और हम फकीरों के घर तो कभी कोई आता ही नहीं। तुमने तो हमें धनी होने का सम्मान दिया। अब तुम ऐसा न करो, जल्दी न करो ले जाओ कंबल, अन्यथा हमें बड़ी पीड़ा रह जाएगी। और दुबारा आओ तो जरा खबर कर देना, हम इंतजाम पहले से कर देंगे। कुछ मिलेगा जरूर। पता ही न हो तो हम भी क्या कर सकते हैं? ऐसे अतिथि की तरह मत आना, एक चिट्ठी डाल देना।
वह आदमी तो घबरा गया था। घबराहट में उसे कुछ सुझा नहीं, उसने सोचा, लो कंबल और निकल जाओ; यह आदमी तो कुछ आदमी जैसा नहीं मालुम पड़ता; या तो पागल है या फिर किसी और लोक का है। जब वह कंबल लेकर भागने लगा तो उस फ़कीर ने कहा कि देख भाई, दरवाजा अटका दे; और ध्यान रखना, कभी भी किसी के घर जाए, दरवाजा जब खोलते हो तो अटका कर जाना चाहिए।
वह चोर भी सोचा कि कहां के आदमी से पाला पड़ गया। और जब वह दरवाजा अटकाने लगा तो उस फकीर ने कहा कि देख धन्यवाद दे दे, पिछे काम पड़ेगा। हमने तुझे कंबल दिया, नाहक चोर क्यों बन रहा है? धन्यवाद दे दे, बात खत्म हो गई।
तो उसने धन्यवाद दिया और भागा। वह पकड़ा गया बाद में। और चोरियां पकड़ी, यह कंबल भी पकड़ा गया। मजिस्ट्रेट ने इस फकीर को बुलाया; क्योंकि अगर यह फकीर कह दे कि हां, यह चोरी करने घर में आया था तो बस काफी है। इसके वचन का तो भरोसा था मुल्क में। फिर कोई और खोजबीन की जरूरत नहीं, यह निष्णात चोर है। लेकिन उस फकीर ने कहा कि नहीं, इसने चोरी नहीं की, मैंने भेंट दिया था; और इसने भेंट के बाद धन्यवाद भी दिया था, इसलिए बात खत्म हो गई थी।
फकीर तो अदालत से बाहर निकल आया,चोर भी छोड़ दिया गया।वह आकर फकीर के पैर पकड़ लिया, उसने कहा कि मुझे भी साथ ले चलो।अब जब तक तुम जैसा न हो जाऊं तब तक चैन न मिलेगी। तुम भी आदमी गजब के हो। तुमने मेरी इतनी फिकर की उस रात, कंबल भी दिया और भविष्य की भी चिंता ली कि धन्यवाद भी मुझसे दिलवा लिया कि मैं चोर न रह जाऊं।
उस फकीर ने कहा: जब से हम साधू हुए तब से हमारे लिए कोई चोर न रहा।
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तू किसलिए आता है?
२३. एक पुरानी कथा है, एक बिल्कुल बहरा और अंधा आदमी रोज चर्च जाता था -- एक बच्चे का सहारा लेकर। किसी ने उससे एक दिन पूछा कि तू किसलिए आता है? न तो तुझे कुछ दिखाई पड़ता। चर्च में पादरी क्या समझाता है, वह तुझे सुनाई नहीं पड़ता। कौन सी प्रार्थनाएं होती है, गीत गाए जाते हैं, वे तुझे सुनाई नहीं पड़ते। तू क्यों रोज इतना परेशान होता है?
उसने कहा: यह सवाल नहीं है। यह सवाल नहीं है सुनने और देखने का। क्या तुम सोचते हो, जिनको दिखाई पड़ता है, वे देखने आते हैं; और जिनको सुनाई पड़ते हैं वे सुनने आते हैं? कोई इसलिए नहीं देखने और सुनने। लोग दिखाने आते हैं कि देखो मैं चर्च आया हूं। मैं धार्मिक हूँ! मैं भी दिखाने हीं आता हूं। देखना किसको है? आंख का क्या प्रयोजन है? सुनना किसको है? सुन ही लिया होता तो फिर आने कि जरूरत क्या रहती? नहीं मैं तो यह दिखाना चाहता हूं ताकि लोग जान ले कि मैं भी धार्मिक हूँ, और ताकि परमात्मा भी देख ले कि हर रविवार को मौजूद रहा हूं; कभी एक रविवार चुका नहीं, यद्यपि अंधा था, बहरा था। आना मुश्किल था, कठिनाई थी; लेकिन बराबर आया हूं।
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सैमुअल बेकेट की कहानी
२४. सैमुअल बेकेट, एक पश्चिम का एक बहुत बड़ा विचारक और नाटककार पेरिस की एक गली से गुजर रहा था। सांझ हो गई थी। एक बिखर जैसा दिखने वाला आदमी उसके पास आया - ऐसे हाव भाव से जैसे भीख मांगा चाहता हो । लेकिन इससे पहले कि बेकेट उसे कोई उत्तर दे उसने जेब से छू निकाला और बेकेट की छाती में भोंक दिया । बेकेट बेहोश होकर गिर गया और वह आदमी पकड़ लिया गया । पंद्रह दिन बाद बेकेट जब अस्पताल से बाहर निकला, चोट घातक थी। लेकिन पंद्रह दिन अस्पताल में यही सोचता रहा कि इस आदमी ने चोट क्योंकि? न कोई दुश्मनी; दुश्मनी तो दूर , कोई जान पहचान भी नहीं। इस आदमी को इसके पहले कभी देखा ही न था। एक ही जिज्ञासा उसके मन में चलती रही, अस्पताल से छुटु तो सोचा सीधा जेलखाने जाऊंगा । कोई शिकायत नहीं थी मन में ; सिर्फ यह जानने की जिज्ञासा थी कि हमला इसने किया क्यों ? अकारण मालुम होता है। आदमी पागल है? पागल भी नहीं दिखाई पड़ता था।
अस्पताल से मुक्त होते ही वह जेलखाने गया। आज्ञा लेकर अधिकारियों से वह उस कैदी के पास पहुंचा और कहा कि मुझे कोई शिकायत नहीं है। न तुम्हारे अपराध की निंदा करने आया हूं। न तुमसे यह कहने आया हूं कि तुम ऐसा न करते । ये सब सवाल नहीं है। एक हीं मेरे मन में सवाल है कि तुमने मुझे छुरा मारा क्यों? कारण क्या है ?
उस आदमी ने बेकेट की तरफ गौर से देखा और कहा : कारण तो मुझे भी पता नहीं। तुम ही परेशान हो । ऐसा मत सोचो; मैं भी पंद्रह दिन से यही सोच रहा हूं कि मैने छुरा मारा क्यों? न कोई जान , न कोई पहचान , न कोई दुश्मनी । तुमने हां ना भी न कहा था। मैं भी अपने से यही पूछ रहा हूं । तुम तो मेरे पास पूछने आ गए , मैं किसके पास पूछने जाऊं कि मैने छुरा मारा क्यों?
बेकेट का सारा जीवन बदल गया उस घटना से । आदमी मूर्छित है। एक अचेतन , एक मूर्छित दशा है; जैसे कोई स्वप्न में चलता हो, या नशे में चलता हो।
बेकेट विद्यार्थी था दर्शनशास्त्र का , लेकिन उस घटना के बाद दर्शन से उसकी आस्था उठ गई।
नमक के दो पुतले
२५. रामकृष्ण कहते थे: मेला भरा था समुद्र के तट पर। बाद विवाद चल रहा था कि समुद्र अथाह है या नहीं। भीड़ इकट्ठी हो गई थी। बड़े पंडित शास्त्र खोल कर बैठे थे। बड़ी उत्तेजना फैल गई थी कि कौन जीतता, कौन हारता ! बैठे सब किनारे पर थे। सागर में कोई उतर न रहा था । बैठ कर ही चर्चा हो रही थी। शब्दों की मार चल रही थी। बाल की खाल खींची जा रही थी। कोई कहता था , अथाह है, क्योंकि अब तक किसी ने भी नहीं कहा कि कितनी थाह है। अगर थाह होती तो कोई नाप लेता । दूसरे कह रहे थे: चूंकि अब तक नापा नहीं गया, तुम कैसे कह सकते हो कि अथाह है? नाप हो जाए, और पता चले कि नाप नहीं हो पाता , तो ही अथाह कहना।
अब इसमें बड़ी जटिलता थी। नाप अब तक हुआ नहीं है, तो थाह तो कह हीं नहीं सकते, अथाह भी नहीं कह सकते। पर किसी को यह खयाल नहीं आ रहा था कि उतरें ओर कूद जाएं। कहते हैं, नमक के दो पुतले भी उस भीड़ में खड़े थे । उनको जोश आ गया । उन्होंने कहा : रुको जी । विवाद से क्या होगा? हम पता लगा कर आते हैं।
वे दोनों कूद गए। वे जैसे - जैसे नीचे जाने लगे , वैसे वैसे बड़े हैरान हुए कि सागर की गहराई का तो अंत नहीं होता , खुद पिघलते जा रहे हैं! नमक के पुतले थे। कहते हैं, वे भी पहुंच गए बड़ी गहराई में ; लेकिन जब लौटने का खयाल आया तो वे थे नहीं; वे तो जा चुके थे । नमक नमक में घुल चुका था, सागर का हिस्सा हो चुका था।
ऐसा कई दिनों तक लोग घाट पर प्रतीक्षा करते रहे और उन्होंने कहा कि फिजूल है मेहनत अब और रुके रहना। शास्त्र का अर्थ फिर से शुरू किया जाए, यह बेकार मेहनत गई। यह समय ऐसे ही गया। इस बीच तो हम शास्त्र से ही निर्णय कर लेते।
फिर से विवाद शुरू हो गया। और वे जो डूब गए गहराई में; वे कभी लौटे नहीं कहने , थाह है या नहीं।
कहानी अभी भी वहीं उलझी है -- थाह है या नहीं है? विवाद घाट पर अब भी चल रहा है। पंडित अब भी अपनी अपनी बातें कर रहे हैं।
ये जो दो नमक के पुतले हैं, ये संतो के प्रतीक है, ये संतत्व के प्रतीक हैं। जैसे सागर में नमक का पुतला घुल जाता है, ऐसे ही हम परमात्मा में घुल जाते हैं, उसके प्रेम में घुल जाते हैं। दो क्यों चुने प्रतीक? क्योंकि जब तक हम घुले नहीं तब तक दो मालुम होते हैं। घुल गए तो दो भी नहीं रह जाते, एक भी नहीं रह जाता; अद्वैत हो जाता है। फिर लौट कर कहे कौन? बताए कौन ? थोड़ी देर घाट पर बैठे हुए पंडित प्रतीक्षा करते हैं; फिर वे कहते हैं, ये भी गए, कोई लौट कर बताता नहीं; हम अपना शास्त्रार्थ फिर शुरू करें। वे फिर विचार में लीन हो जाते हैं।
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