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बोधिकथाएं

3 नवम्बर 2024

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                             झेन फ़कीर रिंझाई 


 झेन फ़कीर हुआ, रिंझाई। किसी ने पूछा कि मैं जरा जल्दी में हूँ, एक शब्द में बता दो -- क्या करने योग्य है? तो वह चुप बैठा रहा । उस आदमी ने कहा: जल्दी करो, चुप क्यों बैठे हो?

          उसने कहा: कह दिया जो कहना था। क्योंकि जो कहना था, वह चुप्पी है। बोलने से खराब हो जाएगी। समझ गए तो समझ गए। नही समझे तो और कहीं समझ लेना।

         उस आदमी ने कहा कि लुभाते हो तुम। तुम्हें देखकर रुकने का मन होता है, पर मैं जल्दी में हूँ। और इतनी सी बात और अटकाएगी। मैं और चिंतित रहूंगा कि पता नहीं, क्या मतलब था! तुम संक्षिप्त में एक शब्द तो बोल दो। 

        तो रिंझाई ने कहा: ध्यान।

        उस आदमी ने कहा: चलो कुछ तो तुम बोले ; लेकिन इतने से कुछ बहुत साफ नहीं होता। ध्यान यानी क्या?
     
         रिंझाई ने कहा: ध्यान यानी ध्यान।

         उस आदमी ने कहा: अब और पहेलियां मत बूझो। मुझे जाना है, जल्दी में हूँ और तुम उलझाए चले जा रहे हो? ध्यान यानी ध्यान -- इसका क्या मतलब?

         रिंझाई ने कहा: अब तुम इतना ही पूछो, ध्यान यानी ध्यान और ध्यान यानी ध्यान -- ऐसे ही मैं दोहराता चला जाऊंगा; क्योंकि ध्यान यानी ध्यान, और कुछ है नहीं। अब करो और जानो।

                                      *****




                               

                                  कड़ी मेहनत 


मार्शल आर्ट का एक विद्यार्थी अपने गुरु के पास गया। उसने अपने गुरु से विनम्रतापूर्वक पूछा - " मैं आपसे मार्शल आर्ट सीखने के लिए प्रतिबद्ध हूँ। मुझे इसमें पूरी तरह पारंगत होने में कितना समय लगेगा?"


           गुरु ने बहुत साधारण उत्तर दिया - " १० वर्ष।"
          
           विद्यार्थी ने अधीर होकर फिर पूछा - " लेकिन मैं इससे भी पहले इसमें निपुण होना चाहता हूं। मैं कठोर परिश्रम करूंगा। मैं प्रतिदिन अभ्यास करूंगा भले ही मुझे १० घंटे या इससे भी अधिक समय लग जाए। तब मुझे कितना समय लगेगा?
            गुरु ने कुछ क्षण सोचा, फिर बोले - "२० वर्ष।"


                                    *****



 

                                 सच्चा चमत्कार 


बेनकेई नामक एक प्रसिद्ध ज़ेन गुरु रयूमों के मंदिर में ज़ेन की शिक्षा दिया करते थे।
शिन्शू मत को मानने वाला एक पंडित बेनकेई के अनुयायियों की बड़ी संख्या होने के कारण उनसे जलता था और शास्रार्थ करके उन्हें नीचा दिखाना चाहता था। शिन्शू मत को मानने वाले पंडित बौद्धमंत्रों का तेज उच्चारण किया करते थे।

           एक दिन बेनकेई अपने शिष्यों को पढ़ा रहा था जब अचानक शिन्शु यहां आ गया। उसने आते हीं इतने ऊंचे स्वर में मंत्रपाठ शुरू कर दिया कि बेनकेई को अपना कार्य बीच में रोकना पड़ा। बेनकेई ने उससे पूछा वह क्या चाहता है?

          शिन्शु पंडित ने कहा - "हमारे गुरु इतने दिव्यशक्तिसंपन्न
थे कि वह नदी के एक तट पर अपने हांथ में ब्रश लेकर खड़े हो जाते थे, दूसरे किनारे पर उनका शिष्य कागज़ लेकर खड़ा हो जाता था, जब वह हवा में ब्रश से चित्र बनाते थे तो चित्र दूसरे किनारे पर कागज़ में अपने - आप बन जाता था। आप क्या कर सकते हैं?"

            बेनकेई ने धीरे से जवाब दिया -" आपके मठ मठ की बिल्लियां भी शायद यह कर सकती हो पर यह शुद्ध ज़ेन का आचरण नहीं है। मेरा चमत्कार यह है कि जब मुझे भूख लगती है तब मैं खाना खा लेता हूं, जब प्यास लगती है तब पानी पी लेता हूं।"


                                       *****




                                     साइकिल 


एक ज़ेन गुरु ने देखा कि उसके पांच शिष्य बाजार से अपनी- अपनी साइकिल पर लौट रहे हैं। जब वे साइकिलों से उतर गए तब गुरु ने उनसे पूछा - "तुम सब साइकिलें क्यों चलाते हो?"

               पहले शिष्य ने उत्तर दिया - " मेरी साइकिल पर आलुओं का बोरा बंधा है। इससे मुझे उसे अपने पीठ पर नहीं ढोना पड़ता"।
  
               गुरु ने उससे कहा - " तुम बहुत होशियार हो। जब तुम बूढ़े हो जाओगे तो तुम्हें मेरी तरह झुककर नहीं चलना पड़ेगा "।

                दूसरे शिष्य ने उत्तर दिया - "मुझे साइकिल चलाते समय पेड़ों और खेतों को देखना अच्छा लगता है "।

                गुरु ने उससे कहा - "तुम हमेशा अपनी आंखें खुली रखते हो और दुनियां को देखते हो "।

                तीसरे शिष्य ने कहा - "जब मैं साइकिल चलाता हूं तब मन्त्रों का जप करता रहता हूं"।

                 गुरु ने उसकी प्रशंसा की -" तुम्हारा मन किसी नए कसे हुए पहिए की तरह रमा रहेगा "।

                 चौथे शिष्य ने उत्तर दिया - " साइकिल चलाने मैं सभी जीवों से एकात्मकता अनुभव करता हूं "। 

                 गुरु ने प्रसन्न होकर कहा - " तुम अहिंसा के स्वर्णिम पथ पर अग्रसर हो " ।

                पांचवें शिष्य ने उत्तर दिया मैं साइकिल चलाने के लिए साइकिल चलाता हूं"। 
                
                 गुरु उठकर पांचवें शिष्य के चरणों के पास बैठ गए और बोले - "मैं आपका शिष्य हूँ"।

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                         झेन फकीरों की कहावत 


झेन फकीरों में यह कहावत है कि बुद्ध कभी नहीं बोले। बुद्ध चालीस साल बोले, निरंतर बोले और झेन फकीरों में कहावत है कि बुद्ध कभी नहीं बोले। रिंझाई से किसी ने पूछा कि यह बात बड़ी अजीब है। ये शास्त्र रखे हैं इसी मन्दिर में बुद्ध के वचनों के -- इतना बोले -- और यहीं इन्हीं शास्त्रों को पढ़ते हैं आप, इन्हीं शास्त्रों को नमस्कार भी करते हैं और रोज सुबह आप यह भी कहते हैं कि बुद्ध कभी नहीं बोले। और रिंझाई ने कहा कि दोनों बातें सच है। बोले भी और नहीं भी बोले। जहां तक हमारा संबंध है, बोले; जहां तक उनका संबंध है नहीं बोले। हमने तो सुना, इसलिए हमने शास्त्र इकट्ठा कर किये। इसीलिए तो बौद्धपुरुषों ने कुछ लिखा नहीं। फूल सुगंध के संबंध में कुछ लिखते थोड़े ही हैं, सुगंध झड़ती है, तो झड़ती है। बुद्ध पुरुष बोले। तुम्हारी मौजूदगी में कुछ उनसे झरा। तुम्हारी प्यास ने कुछ उनके भीतर से खींच लिया। तुम्हारी आतुरता ने कुछ उनसे बुलवा लिया। बोले ऐसा नहीं, बुलवा लिया। सहजस्फूर्त हुआ । अपनी तरफ से तो कुछ बोले हीं नहीं।


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                                   बट्रेंड रसल 


बट्रेंड रसल ने लिखा है कि अक्सर ऐसा हो जाता है कि जब कोई आदमी किसी बात की बहुत निंदा करता हो, तो जरा उस आदमी को गौर से देखना। समझो कि यहां किसी की जेब कट जाए, और एक आदमी जोर से चिल्लाने लगे, पकड़ो, मारो, कौन है चोर, ठिकाने लगा देंगे! उस आदमी को पहले पकड़ लेना। बहुत संभावना तो यह है कि यह आदमी चोर है, इसी ने जेब काटी है। चोर बहुत जोर से चिल्लाता है। जोर से चिल्लाने के कारण दूसरों को भरोसा आ जाता है कि कम- से- कम यह तो चोर नहीं हो सकता। चोर होता तो यह चिल्लाता ! चोर होता तो यह चोरी के इतने खिलाफ कैसे होता! इसलिए जो होशियार चोर है, वह चोरी के खिलाफ चिल्लाता है, शोरगुल मचाता है, और इसी तरह बच जाता है। कोई सीधा- सा आदमी डर के मारे अगर चुपचाप सिकुड़ा खड़ा रह जाए कि कहीं ऐसा न हो कि कोई हम पर शक कर ले , वह पकड़ लिया जाएगा। जो शोरगुल कर रहा है, उसे तो कौन पकड़ेगा ! 

बर्ट्रेंड रसल ने लिखा है कि जो आदमी जिस बात की जितनी निंदा करे, समझना कि भीतर गहरे में उसका कोई न्यस्त स्वार्थ है। या तो वह पाता है कि मैं ऐसा हूँ, या तो वह डरा हुआ है कि कहीं जाहिर न हो जाए....


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                              मैक्यावेली: द प्रिंस 


मैक्यावेली ने अपनी किताब ' द प्रिंस ' में कहा है, राजाओं के लिए सलाह दी है, उसमें एक सलाह यह भी है कि अपने दोस्तों से भी तुम वह बात मत कहना जो तुम अपने दुश्मनों से भी नहीं कहना चाहते। क्योंकि जो आज दोस्त है, कल दुश्मन हो सकता है। और यह भी सलाह दी है कि अपने दुश्मन के खिलाफ भी ऐसी बात मत कहना कि कल अगर उससे दोस्ती हो जाए तो फिर तुम्हें अड़चन हो लौटाने में, वह बात लौटाने में अड़चन हो। क्योंकि जो आज दुश्मन हैं, वह कल दोस्त हो सकता है। यह बात सच है। जिससे द्वेष है उससे राग हो सकता है। जिससे राग है उससे द्वेष हो सकता है।


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                            सूफ़ी फकीर बायजीद 


सूफ़ी फकीर बायजीद ने लिखा है कि एक आदमी की कुल्हाड़ी चोरी चली गयी। वह लकड़ियां काट रहा था और फिर घर के भीतर गया, कुल्हाड़ी बाहर हीं छोड़ गया। कुल्हाड़ी चोरी चली गयी। जब वह बाहर आया, कुल्हाड़ी नदारत थी। उसने एक लड़के को जाते देखा, पड़ोसी के लड़के को। उसने कहा हो न हो यही शैतान चुरा ले गया। मगर अब कह भी नहीं सकता था, क्योंकि देखा तो था नहीं। उस दिन से वह उस लड़के को गौर से देखने लगा, उसमें सब तरह की शैतानियां उसे दिखायी पड़ने लगी। चालाक मालूम पड़े, उसकी आंख में बदमाशी मालूम पड़े। और तीसरे दिन उसको कुल्हाड़ी अपनी लकड़ियों में ही मिल गयी। लकड़ियों में दब गयी थी। जिस दिन उसको कुल्हाड़ी मिली, वह लड़का फिर बाहर से निकला, आज उसे उसमें कोई शरारत दिखायी न पड़ी, न कोई शैतानी दिखायी पड़ी। आज वह लड़का बड़ा प्यारा मालूम होने लगा -- भला, सज्जन। और उसे पश्चाताप होने लगा कि इस सज्जन लड़के के प्रति मैंने कैसे बुरे ख्याल बना लिये !


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                             मछलियों की सुगंध 


एक मछलियां बेचनेवाली औरत शहर मछलियां बेचने आती थी । एक दिन अचानक गांव लौटते वक्त शहर के बड़े रास्ते पर किसी पुरानी परिचित महिला से मुलाकात हो गयी -- दोनों बचपन में साथ पढ़ी थी। उस महिला ने कहा आज रात हमारे घर रुक जाओ। वह मालिन थी। उसके पास बड़ा सुंदर बगीचा था। और जब रात वह मछुआरिन उसके घर सोयी , तो उसने बहुत से बेलें के फूल लाकर उसके पास रख दिये। वह मछुआरिन करवटें बदले, उसको नींद न आए। तो मालिन ने पूछा बात क्या है बहन, तू सोती नहीं, नींद नहीं आ रही, कुछ अड़चन है, कुछ चिंता है? उसने कहा और कुछ नहीं, ये फूल यहां से हटा दे। मुझे तो मेरी टोकरी दे दे जिसमें मैं मछलियां बेचने लायी थी। उस में थोड़ा पानी सींच दे और मेरे पास रख दे। क्योंकि मछलियों की सुगंध जब तक मुझे न आए मुझे नींद न आ सकेगी। मछलियों की सुगंध! आदत हो जाए तो मछलियों की सुगंध के बिना भी नींद न आएगी। फूल भी बेचैन कर सकते हैं अगर आदत न हो। गंदगी  कीड़े गंदगी को गंदगी नहीं जानते। जानते तो छोड़ हीं देते न! कौन रोकता था?


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                                 मौन का मन्दिर 


निर्वाण को उपलब्ध हो चुका शोइची नामक ज़ेन गुरु अपने शिष्यों को तोकुफू के मन्दिर में पढ़ाया करता था।

         दिन हो या रात, संपूर्ण मन्दिर परिसर में मौन बिखरा रहता था। कहीं से किसी भी तरह की आवाज़ नहीं आती थी।
       
         शोइची ने मंत्रों का जप और ग्रंथों का अध्ययन भी बंद करवा दिया था। उसके शिष्य के केवल मौन की साधना ही करते थे।

         शोइची के निधन हो जाने पर पड़ोस में रहने वाली एक स्त्री ने मन्दिर में घंटियों की और मंत्रपाठ की आवाज सुनी। वह जान गयी कि गुरु चल बसे थे।


                                        *****




                                  ऐसा है क्या?


ज़ेन मास्टर हाकुइन जिस गाँव में रहता था वहां के लोग उसके महान गणों के कारण उसको देवता की तरह पूजते थे।

        उसकी कुटिया के पास एक परिवार रहता था जिसमें एक सुंदर युवा लड़की भी थी। एक दिन उस लड़की के माता - पिता को इस बात का पता चला कि उनकी अविवाहित पुत्री गर्भवती थी।
        लड़की के माता - पिता बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने होनेवाले बच्चे के पिता का नाम पूछा। लड़की अपने प्रेमी का नाम नहीं बताना चाहती थी पर बहुत दबाव में आने पर उसने हाकूइन का नाम बता दिया।

         लड़की के माता - पिता आगबबूला होकर हाकुइन के पास गए और उसे गालियां बकते हुए सारा किस्सा सुनाया। सबकुछ सुनकर हाकुइन ने बस इतना ही कहा - "ऐसा है क्या?"

         पूरे गाँव में हाकुइन की थू - थू होने लगी। बच्चे के जन्म के बाद लोग उसे हाकुइन की कुटिया के सामने छोड़ गए। हाकुइन ने लोगों की बातों की कुछ परवाह न की और वह बच्चे की बहुत अच्छे से देखभाल करने लगा। यह अपने खाने की चिंता नहीं करता था पर बच्चे के लिए कहीं न कहीं से दूध जुटा लेता था।

          लड़की यह सब देखती रहती थी। साल बीत गया। एक दिन बच्चे का रोना सुनकर मां का दिल भर आया। उसने गांव वालों और अपने माता - पिता को सबकुछ सच सच बता दिया। लड़की के पिता के खेत में काम करने वाला एक मजदूर वास्तव में बच्चे का पिता था।

          लड़की के माता - पिता और दूसरे लोग लज्जित होकर हाकुइन के पास गए और उससे अपने बुरे बर्ताव के लिए क्षमा मांगी। लड़की ने हाकुइन से अपना बच्चा वापस मांगा।

         हाकुइन ने मुस्कुराते हुए बस इतना कहा -"ऐसा है क्या?"



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                                       सवाल 


एक ज़ेन गुरु और एक मनोचिकित्सक किसी जगह पर मिले। मनोचिकित्सक कई दिनों से ज़ेन गुरु से एक प्रश्न पूछना चाहता था। उसने पूछा - " आप वास्तव में लोगों की सहायता कैसे करते हैं?"

       मैं उन्हें वहां ले जाता हूं जहां ये कोई भी सवाल नहीं पूछ सकते"- गुरु ने उत्तर दिया।


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                                       जानना 


एक दिन च्वांग - त्सो और उसका एक मित्र एक तालाब के किनारे बैठे हुए थे। च्वांग - त्सो ने अपने मित्र से कहा - "उन मछलियों को तैरते हुए देखो। ये कितनी आनंदित है।"

  तुम स्वयं तो मछली नहीं हो" - उसके मित्र ने कहा,- " फिर तुम ये कैसे जानते हो कि ये आनंदित है?"

 " तुम मैं तो नहीं हो " - च्वांग - त्सो ने कहा,-"फिर तुम यह कैसे    जानते हो कि मैं यह नहीं जानता कि मछलियां आनंदित हैं?"


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                                        स्वर्ग 


एक बार दो यात्री मरुस्थल में खो गए। भूख और प्यास के मारे उनकी जान निकली जा रही थी। एक स्थान पर उनको एक ऊंची दीवार दिखी। दीवार के पीछे उन्हें पानी के बहने और चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी। दीवार के ऊपर पेड़ों की डालियां झूल रही थी।
डालियों पर पके मीठे फल लगे थे।

           उनमें से एक किसी तरह दीवार के ऊपर चढ़ गया और दूसरी तरफ कूदकर गायब हो गया। दूसरा यात्री मरुस्थल की ओर लौट चला ताकि दूसरे भटके हुए यात्रियों को उस जगह तक ला सके।


                                      *****





                                 अंतिम घोषणा 


तन्जेन नामक ज़ेन गुरु ने अपने जीवन के अंतिम दिन ६० पोस्ट - कार्ड लिखे और अपने एक शिष्य को उन्हें डाक में डालने को कहा। इसके कुछ क्षणों के भीतर उन्होंने शरीर त्याग दिया।

          कार्ड में लिखा था -- 
          इस संसार से विदा ले रहा हूं।
          यह मेरी अंतिम घोषणा है।

           तन्जेन,

           २७ जुलाई १८९२




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                       बुद्ध - प्रतिमा को बंदी बनाना 


एक व्यापारी कपड़े के ५० थान लेकर दूसरे नगर में बेचने जा रहा था। मार्ग में एक स्थान पर वह सुस्ताने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठ गया। यहीं पेड़ की छांव में भगवान बुद्ध की एक प्रतिमा भी लगी हुई थी। व्यापारी को बैठे - बैठे नींद लग गयी। कुछ समय बाद जागने पर उसने पाया कि उसके थान चोरी हो गए थे। उसने फ़ौरन पुलिस में जाकर रिपोर्ट लिखवाई।

         मामला ओ - ओका नामक न्यायाधीश की अदालत में गया। ओ - ओका ने निष्कर्ष निकाला - " पेड़ की छाँव में लगी बुद्ध की प्रतिमा ने हीं चोरी की है। उसका कार्य वहां पर लोगों का ध्यान रखना है, लेकिन उसने अपने कर्तव्य पालन में लापरवाही की है। प्रतिमा को बंदी बना लिया जाए।"

         पुलिस ने बुद्ध की प्रतिमा को बंदी बना लिया और उसे अदालत में ले आए। पीछे पीछे उत्सुक लोगों की भीड़ भी अदालत में आ पहुंची। सभी जानना चाहते थे कि न्यायाधीश कैसा निर्णय सुनाएंगे ।

          जब ओ - ओका अपनी कुर्सी पर आकर बैठे तब अदालत परिसर में कोलाहल हो रहा था।। ओ - ओका नाराज़ हो गए और बोले - इस प्रकार अदालत में हंसना और शोरगुल करना अदालत का अनादर है। सभी को इसके लिए दंड दिया जाएगा।" 

          लोग माफी मांगने लगे। ओ - ओका ने कहा -" मैं आप सभी पर जुर्माना लगाता हूं, लेकिन यह जुर्माना वापस कर दिया जाएगा यदि यहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति कल अपने घर से कपड़े का एक थान लेकर आए। जो व्यक्ति कपड़े का थान लेकर नहीं आएगा उसे जेल भेज दिया जाएगा।" 

          अगले दिन सभी लोग कपड़े का एक एक थान ले आए। उनमें से एक थान व्यापारी ने पहचान लिया और इस प्रकार चोर पकड़ा गया। लोगों को उनके थान लौटा दिए गए और बुद्ध की प्रतिमा को रिहा कर दिया गया।


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                                   नदी के पार 


एक दिन एक युवा बौद्ध सन्यासी लम्बी यात्रा की समाप्ति पर अपने घर वापस जा रहा था। मार्ग में उसे एक बहुत बड़ी नदी मिली। बहुत समय तक वह सोचता रहा कि नदी के पार कैसे जाएं। थक - हार कर निराश होकर वह दूसरे रास्ते की खोज में वापस जाने के लिए मुड़ा ही था कि उसने नदी के दूसरे तट पर एक महात्मा को देखा।

          युवा सन्यासी ने उनसे चिल्लाकर पूछा - " हे महात्मा, मैं नदी के दूसरी ओर कैसे आऊं?" 

           महात्मा ने कुछ क्षणों के लिए नदी को गौर से देखा और चिल्लाकर कहा - " पुत्र, तुम नदी के दूसरी ओर ही हो।"


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                                 चाय के प्याले 


जापानी ज़ेन गुरु सुजुकी रोशी के एक शिष्य ने उनसे एक दिन पूछा - " जापानी लोग चाय के प्याले इतने पतले और कमज़ोर क्यों बनाते हैं कि ये आसानी से टूट जाते हैं?"

           सुजुकी रोशी ने उत्तर दिया -" चाय के प्याले कमज़ोर नहीं होते बल्कि तुम्हे उन्हें भली भांति सहेजना नहीं आता। स्वयं को अपने परिवेश में ढालना सीखो, परिवेश को अपने लिए बदलने का प्रयास मत करो।"


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                              क्रोध पर नियंत्रण 


एक ज़ेन शिष्य ने अपने गुरु से पूछा - " मैं बहुत जल्दी क्रोधित हो जाता हूं। कृपया मुझे इससे छुटकारा दिलाएं।"

           गुरु ने कहा - " यह तो बहुत विचित्र बात है। मुझे क्रोधित होकर दिखाओ।" 

           शिष्य बोला -"अभी तो मैं यह नहीं कर सकता। "

         " क्यों?"- गुरु बोले।
 
           शिष्य ने उत्तर दिया - " यह अचानक होता है।"

         " ऐसा है तो यह तुम्हारी प्रकृति नहीं है। यदि यह तुम्हारा स्वभाव का अंग होता तो तुम मुझे यह किसी भी समय दिखा सकते थे। तुम किसी ऐसी चीज़ को स्वयं पर हावी क्यों होने देते हो जो तुम्हारी हैं ही नहीं?" गुरु ने कहा।

            इस वार्तालाप के बाद शिष्य को जब कभी क्रोध आने लगता तो वह गुरु के शब्द याद करता। इस प्रकार उसने शांत और संयमित व्यवहार को अपना लिया।


                                      *****



        
      
                         महापरिनिर्वाण की कथा


बुद्ध को भुल से एक आदमी ने ऐसी सब्जी खिला दी जो विषाक्त थी। गरीब आदमी था। बुद्ध गांव में आए, उसने निमंत्रण कर लिया। अब वह निमंत्रण दे गया तो बुद्ध उसके घर भोजन करने गये। वह इतना गरीब था कि उसके पास सब्जियां भी नहीं थी।

          तो बिहार में लोग कुकुरमुत्ते को इकट्ठा कर लेते हैं वर्षा के दिनों में, सुखाकर रख लेते हैं, फिर उसको साल भर खाते रहते हैं। कुकुरमुत्ता कभी- कभी जहरीला होता है। वह जो कुकुरमुत्ता उसने बनाया था, वह बिल्कुल निपट जहर था। कड़वा था।

          उसने जब बुद्ध को परोसा और जब बुद्ध उसे खाने लगे, तो बुद्ध को लगा तो कि यह जहर है। लेकिन बुद्ध ने इतना भी न कहा उससे कि पागल, यह तूने क्या बना लिया! क्योंकि वह इतने भावविभोर होकर सामने बैठा पंखा कर रहा था, उसकी आंख से आंसू बह रहे थे -- उसने कभी भरोसा न किया था कि बुद्ध उसके घर भोजन करेंगे! यह संभव भी नहीं मालुम होता था। बुद्ध उसके द्वार आयेंगे यह भी कभी भरोसा नहीं था। वे स्वीकार कर लिये, आ भी गये, उसे आंखों पर भरोसा नहीं आ रहा था। उसकी आँखें आंसुओं से भरी थी, गीली, वह पंखा कर रहा था। उसके घर में कुछ था भी नहीं। रूखी- सुखी रोटियां थी और कुकुरमुत्ते की सब्जी थी। वह रो रहा है, वह बड़ा गदगद है।

           अब बुद्ध को यह भी कहने का मन न हुआ कि ये जहरीले हैं। इसके मन को चोट पहुंचेगी, यह बेचारा सदा के लिए पछताता रहेगा। इस पर ऐसा आघात पड़ेगा कि उसको  यह झेल भी न पाए -- कि बुद्ध को घर लाया और जहरीले कुकुरमुत्ते खिलाए।

           तो वे और मांग लिये, जितने थे सब ले लिये, सब खा गये! कि कहीं वह बाद में चखे और पाए कि कड़वे हैं, तो पछताए। तो उन्होंने कहा कि इतने अच्छे हैं कि तू और ले आ! सब्जियां मैंने जीवन में बहुत खायी , बहुत सम्राटों के घर मेहमान हुआ, लेकिन तेरी सब्जी की बात हीं और है। तो वह बड़ा प्रसन्न हुआ, उसने सब कुकुरमुत्ते दे दिये।

           वह खाकर जब घर आए, तो नशा शरीर में फैलने लगा -- जहर।तो उन्होंने अपने चिकित्सक जीवक को कहा कि मुझे लगता है कि अब मेरे दिन करीब आ गये हैं, यह जहर से मैं बच न सकूंगा । तो जीवक ने कहा, आप कैसे पागल हैं, आपने कहा क्यों नहीं, रोका क्यों नहीं, यह क्या पागलपन है! बुद्ध ने कहा, मौत तो होने हीं वाली है, जो होने हीं वाली है, उससे क्या फर्क पड़ता है। यह मैं रोक सकता था होने से कि वह आदमी दुखी न हो। यह मेरे हाथ में था। मौत तो मेरे हाथ में नहीं, वह तो होगी। आज रोक लूंगा, कल होगी; कल नहीं तो परसों होगी, क्या फर्क पड़ता है।

            मरते वक्त बुद्ध ने अपने शिष्यों को कहा कि सुनो, गांव भर में खबर कर दो कि जिस आदमी के हाथ से बुद्ध अंतिम भोजन ग्रहण करते हैं, वह बहुत धन्यभागी हैं! दो व्यक्ति धन्यभागी हैं। एक वह मां, जो बुद्ध को पहली दफा स्तनपान कराती है, जन्म के समय। और एक वह व्यक्ति जो उन्हें अंतिम भोजन कराता है। और लोग कहने लगे यह आप क्या कह रहे हैं, किसलिए यह कह रहे हैं? उन्होंने कहा, इसलिए मैं कहता हूं, अन्यथा मेरे मरने के बाद उस गरीब को लोग मार डालेंगे। वह बच न सकेगा। जाकर गांव में घोषणा कर दो कि दो व्यक्ति अत्यंत धन्यभागी होते हैं।


                                       *****



   

                                  जलता घर 


बहुत समय पुरानी बात है। किसी नगर में एक बहुत धनी व्यक्ति रहता था। उसका घर बहुत बड़ा था लेकिन घर से बाहर निकलने का दरवाजा सिर्फ एक था। एक दिन घर के किसी कोने में आग लग गई और तेजी से घर को अपनी चपेट मे लेने लगी। धनी के बहुत सारे बच्चे थे - शायद १० से भी ज्यादा । वे सभी एक कमरे में खेल रहे थे। उन्हें पता नहीं था कि घर में आग लग चुकी थी।
आदमी अपने बच्चों को बचाने के लिए उस कमरे की तरफ भागा जहां बच्चे खेल रहे थे। उसने उन्हें आग लगने के बारे में बताया और जल्दी से घर से बाहर निकलने को कहा।लेकिन बच्चे अपने खेल में इतने डूबे हुए थे कि उन्होंने उसकी बात नहीं सुनी। आदमी ने चिल्ला- चिल्ला कर कहा कि अगर वे घर से बाहर नहीं निकले तो आग की चपेट में आ जायेंगे।

           बच्चों ने यह सुना तो मगर वे स्थिति की गंभीरता नहीं समझ सकें और वैसे ही खेलते रहे। 

           फिर उनके पिता ने उनसे कहा -- " जल्दी बाहर जाकर देखो, मैं तुम सब के लिए गाड़ी भर के खिलौने लेकर आया हूं।अगर तुम सब अभी बाहर नहीं जाओगे तो दूसरे बच्चे तुम्हारे खिलौने चुरा लेंगे ।

          इतना  सुनते ही बच्चे सरपट भाग लिए और घर के बाहर आ गए। उन सबकी जान बच गयी।
          इस कहानी में पिता बोधिप्राप्त गुरु है और बच्चे साधारण मानवमात्र।

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                              पिता और पुत्र  


बहुत समय पहले एक नगर में एक बहुत धनी सेठ रहता था। उसके पास कई मकान और सैकड़ों खेत थे। सेठ का इकलौता पुत्र किशोरावस्था में ही घर छोड़कड़ भाग गया और किसी दूसरे नगर में जाकर छोटा मोटा काम करके जीवन गुजारने लगा। वह बेहद गरीब हो गया था। दूसरी ओर, उसका पिता उसको सब ओर ढूंढता रहा पर उसका कोई पता नहीं चल पाया।

           कई साल बीत गए और उसका पुत्र अपने पिता के बारे में भुल गया। एक नगर से दूसरे नगर मजदूरी करते और भटकते हुए एक दिन यह अनायास सेठ के घर आ गया और उसने उनसे कुछ काम मांगा। सेठ ने अपने पुत्र को देखते ही
 पहचान लिया पर वह यह जनता था कि सच्चाई बता देने पर उसका बेटा लज्जित हो जाएगा और शायद फिर से घर छोड़ कर चला जाए। सेठ ने अपने नौकर से कहकर अपने पुत्र को शौचालय साफ करने के काम में लगा दिया।
  
           सेठ के लड़के ने शौचालय साफ करने का काम शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद सेठ भी मजदूर का भेश धरकर अपने पुत्र के साथ सफाई का काम शुरू कर दिया। लड़का सेठ को पहचान नहीं पाया और धीरे धीरे उनमें मित्रता हो गई। ये लोग कई महीनों तक काम करते रहे और फिर एक दिन सेठ ने अपने पुत्र को सब कुछ बता दिया। वे दोनों रोते रोते एक दूसरे के गले लग गए। अपने अतीत को वे भुलाकर वे सुखपूर्वक रहने लगे।

           पिता ने अपने पुत्र को अपनी जमीन जायदाद का रख- रखाव और नौकरों की देखभाल करना सिखाया। कुछ समय बाद पिता की मृत्यु हो गई और पुत्र उसकी गद्दी पर बैठकर अपने पिता की भांति काम करने लगा।

इस कहानी में पिता एक ज्ञानप्राप्त पुरुष गुरु है , पुत्र उसका उत्तराधिकारी है, और नौकर वे आदमी और औरत हैं जिनका मार्गदर्शन वे करते हैं।

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                         मछली पकड़ने की कला  


लाओ - त्सू ने एक बार मछली पकड़ना सीखने का निश्चय किया। उसने मछली पकड़ने की एक छड़ी बनाई, उसमें डोरी और हुक लगाया। फिर वह उसमें चारा बांधकर नदी किनारे मछली पकड़ने के लिए बैठ गया। कुछ समय बाद एक बड़ी मछली हुक में फंस गई। लाओ - त्सू इतने उत्साह में था कि उसने छड़ी को पूरी ताकत लगाकर खींचा। मछली ने भी भागने के लिए पूरी ताकत लगाई। फ़लतः छड़ी टूट गई और। मछली भाग गई।

            लाओ - त्सू ने दूसरी छड़ी बनाई और दुबारा  मछली पकड़ने के लिए नदी किनारे गया। कुछ समय बाद एक दूसरी बड़ी मछली हुक में फंस गई। लाओ - त्सू ने इस बार इतनी धीरे - धीरे  छड़ी खींची कि वह मछली लाओत्सू के हांथ से छड़ी छुड़ाकर भाग गई।

            लाओ त्सू ने तीसरी बार छड़ी बनाई और नदी किनारे आ गया। तीसरी मछली ने चारे में मुंह मारा। इस बार लाओत्सू ने उतनी ही ताकत से छड़ी को ऊपर खींचा जितनी ताकत से मछली छड़ी को नीचे खींच रही थी। इस बार न छड़ी टूटी न मछली हांथ से गई। मछली जब छड़ी को खींचते खींचते थक गई तब लाओत्सू ने आसानी से उसे पानी के बाहर खींच लिया।

            उस दिन शाम को लाओत्सू ने अपने शिष्यों से कहा - "आज मैंने संसार के साथ व्यवहार करने के सिद्धांत के बारे में पता लगा लिया है। यह समान बलप्रयोग करने का सिद्धांत है।जब यह संसार तुम्हें किसी ओर खींच रहा हो तब तुम समान बलप्रयोग करते हुए दूसरी ओर जाओ। यदि तुम प्रचंड बल का प्रयोग करोगे तो तुम नष्ट हो जाओगे, और यदि तुम क्षीण बल का प्रयोग करोगे तो यह संसार तुम्हें नष्ट कर देगा।"




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                     अनुपयोगी वृक्ष की कहानी    


एक दिन एक व्यक्ति ने च्वांग - त्सु से कहा - " मेरे घर के आंगन में एक बहुत बड़ा वृक्ष है जो बिल्कुल ही बेकार है। इसका तना इतना कठोर और ऐंठा हुआ है कि कोई भी लकड़हारा या बढ़ई उसे काट नहीं सकता । उसकी शाखाएं इतनी मुड़ी हुई है कि उनसे औजारों के लिए हत्थे नहीं बनाए जा सकते। ऐसे वृक्ष के होने से क्या लाभ?
       
            च्वांग- त्सु ने कहा - " क्या तुमने नदी में उछलने वाली मछलियां देखी है? वे बहुत छोटी और चंचल होती है। जल पर उड़ते कीड़ों और टिड्डों को देखते ही वे लपककर उन्हेंअपना शिकार बना लेती हैं। लेकिन ऐसी मछलियां ज्यादा समय तक जीवित नहीं रहती। या तो वे जाल में फंस जाती हैं या दूसरी मछलियों द्वारा मारी जाती हैं। वहीं याक कितना बड़ा और बेढब जानवर है। वह न तो खेत में काम करता है और न ही कोई और काम अच्छे से कर पाता है। लेकिन याक बहुत लंबा जीते हैं। तुम्हारा वृक्ष इतना अनुपयोगी होने के कारण ही इतने लम्बे समय से खड़ा है। उसकी शाखाओं के नीचे बैठ कर उसका ध्यान करो।"



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                                 मन में पत्थर  


फा - येन नामक चीनी ज़ेन गुरु ने अपने दो शिष्यों को वस्तुनिष्ठता और विषयनिष्ठता पर तर्क वितर्क करते सुना। वे इस विवाद में शामिल हो गए और उन्होंने शिष्यों से पूछा - " यहां एक बड़ा - सा पत्थर है। तुमलोगों के विचार में यह पत्थर तुम्हारे मन के बाहर है या भीतर है?
       
            उनमें से एक शिष्य ने उत्तर दिया - बौद्ध दर्शन की दृष्टी से सभी वस्तुएं मानस का वस्तुनिष्ठीकरण है। अन्ततः मैं यह कहूंगा कि पत्थर मेरे मन के भीतर है।" 

"फिर तो तुम्हारा सर बहुत भारी होना चाहिए " - फा - येन ने उत्तर दिया।




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हम सभी अपना जीवन एक झूठी असुरक्षा के आवरण में जीते हैं और उसके कारण अपने मन में बहुत सारी जटिलताएं खड़ी करते हैं। मन की वो जटिलताएं हीं हमारे जीवन का दुख बनती है। ज्ञानियों की सीधी सरल बातें जो हमें समझ नहीं आती, क्योंकि हम उन सरल बातों को भी जटिल बना देते हैं और अपने लिए मुक्ति के दरवाजे बंद कर लेते हैं। इसलिए कोई ज्ञानी करुणावश अपनी बात को समझाने के लिए कहानियों का सहारा लेता है, क्योंकि कहानियां हमारी मन की जटिलताओं को पार कर बात को हृदय तक पहुंचाने में सफल हो जाती है। कहानियां ऐसे परिदृश्य को प्रस्तुत है जो वास्तविक जीवन की स्थितियों के समानांतर होती है । कहानियां पाठक की संलग्नता को बढ़ाती है और इसी वजह से कहानी में छुपा संदेश अंतर्रतम को स्पर्श कर जाता है। इस पुस्तक में आर. के. चंद्रवंशी ने बोध व मुक्ति के उच्चतम सूत्रों, ऋषियों के आर्ष वचनों, नैतिक कथाओं, प्रेरक प्रसंगों, आत्मज्ञानियों की कथाओं, दार्शनिकों के विचारों, बुद्धपुरुषों के वचनों व लेखों एवं संग्रहों को अत्यंत मनोहर कहानियों के माध्यम से आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। आशा है यह बोधिकथाएं आपको पसंद आएगी और आपके जीवन को सार्थक रूप से रूपांतरण करने में सहायक सिद्ध होगी। "सबका मंगल हो"।
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