एक लड़की जो गांव की है उसे गर प्यार हो जाता तो क्या सोचती है उसके मन में क्या चलता है....
लोक लज्जा का भय समाज का भय....
उसी सोच को व्यक्त करने का एक प्रयाश.....
मैं चाहती थी किसी से कभी प्यार ना करूँ, किसी का भी ऐतवार ना करूँ, पर ये मैं क्या कर बैठी, खुद से खुद को जुदा कर बैठी, सच में ये बिना किये हो जाता, और फिर उसके बिना ज़िया हीं ना जाता, ऐसा क्या होता उस शख्स में, ज़िसे बिना देख रहा हीं ना जाता, जब पुछता कोई उसके बारे में कुछ कहा भी ना जाता, उसकी तस्वीर देख दिल में कंपन हो उठती, खुद से खुद की अंनबन हो उठती, दिल कहता तू चल खुद को उसके नाम कर दे, दिमाग कहता तू चाहती खुद को बदनाम कर दे,
दिल की सुनु या दिमाग की ये कैसा जोग लगा बैठी ना चाहते हूए भी खुद को ए मालिक प्रेम रोग लगा बैठी....