चाँदी की अँगूठी !
वह विमल सिंह की जानी-पहचानी चाँदी की अँगूठी थी । उसमें नग के स्थान पर अंग्रेजी का बड़ा सा V अक्षर खुदा था, उसके नीचे छोटा सा R तथा R के आजू-बाजू पान की दो आकृतियां खुदी थी । अक्षरों के अलावा उसके ऊपरी चौकोर भाग में हरे तथा लाल रंग की मीनाकारी थी ।
उसने बरसों पहले ऐसी ही एक अँगूठी रंगीता को भेंट किया था । यदि यह वही है,तो उसका महिपाल सिंह की उंगली में होना साधारण बात नहीं थी । ऐसी स्थिति में वह रंगीता की बेवफाई का जीता-जागता सबूत थी ।
रंगीता उसकी पत्नी, उसके दो बच्चों की माँ थी । उसे सहसा विश्वास न हुआ कि रंगीता इश्क में इतनी पतित हो चुकी है कि उसकी दी हुई अंगूठी अपने यार को भेंट कर देगी !
महिपाल सिंह की उंगली में पड़ी वह अंगूठी दोनों की अवैध संबंध का जीता-जागता प्रमाण था । वह समझ गया कि रंगीता की प्रणय संबंधी अनिच्छा, रुखे व्यवहार तथा थकावट होने के बहानों आदि का असली कारण यह महिपाल सिंह ही है । जो रिश्ते में उसका भाई है,परन्तु काम बैरी-दुश्मन का कर रहा है ।
देवर-भाभी तथा जीजा-साली के बीच हँसी-ठिठोली होना आम बात है । महिपाल तथा रंगीता इसके अपवाद नहीं थे । दोनों परस्पर खूब हँसी ठिठोली करते थे, उसकी मौजूदगी में भी । उसने कभी सोचा न था,कि उनकी निर्दोष सी प्रतीत होने वाली हंसी-मजाक की परिणिति ऐसी होगी ?
एक ने पति, तो दूसरे ने भाई के विश्वास पर घात किया था । यह कोई साधारण या हजम कर लेने वाली बात नहीं है ।
विमलसिंह का अंग-अंग क्रोध से भर गया । पत्नी हो ! भाई हो या कोई और हो !उसे विश्वासघात की सजा मिलनी ही चाहिए ! वह कायर नहीं है और ना ही इतना कमजोर कि इसे यूँ आसानी से बर्दाश्त कर लेगा ।
उस वक्त उसने महिपालसिंह से कुछ न कहा और घर की ओर रवाना हुआ । कोई कार्यवाही करने से पहले वह यह देखना चाहता था कि वह अंगूठी रंगीता की उंगली में मौजूद है या नहीं ? होगी तो रंगीता निर्दोष ! उसका प्रेम निष्कलंक ! न हुई तो फिर वह देने वाली तथा लेने वाले दोनों को ही समझ लेगा ।
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हसदेव नदी के तट पर मनभौना नामक छोटा सा किन्तु खूबसूरत गाँव आबाद है । विमलसिंह तथा रंगीता दोनों यहीं रहते थे । उनका घर एक ही मोहल्ले में था । वे साथ-साथ खेलते- कूदते बड़े हुए थे ।
बचपन का सख्य भाव कब प्रेम में बदल गया, उन्हें पता ही नहीं चला । जब पता चला,तब तक बहुत देर हो चुकी थी । वहाँ से पीछे हटना कतई मुमकिन नहीं था ।
विपरीतलिंगीय प्रेम, एकांत मिलन का मौका ढूँढता है । प्रेमी युगलों को ‘मिलन’ के मौकों का हमेशा इंतजार होता है । रंगीता तथा विमल अपवाद नहीं थे । उन्हें मिलने का एक मौका प्रत्येक रविवार को मिलता था,जब कंचनपुर में साप्ताहिक हाट-बाजार लगता था । यह बाजार काफी विस्तृत क्षेत्र में भरता था । दैनिक तथा शादी-ब्याह जैसे विशेष अवसरों की खरीदारी के लिए मनभौना सहित आसपास के बीसों गाँव के निवासी कंचनपुर बाजार पर आश्रित थे । इसी से वहाँ जबरदस्त भीड़भाड़ होती थी ।
कंचनपुर के हाट में विमलसिंह को वह अँगूठी रंगीता के लिए उपयुक्त लगी थी, जिसका जिक्र ऊपर हुआ है ।
विमल ने रंगीता को बीच बाजार में ही अँगूठी पहनाने का प्रयास किया था । हालांकि वह इसमें सफल नहीं हुआ था, फिर भी रंगीता उसकी दिलेरी पर मर मिटी थी । इसी घटना के बाद उनका प्यार परवान चढ़ा था ।
विमल सिंह तथा रंगीता दोनों खेत-खलिहान, जंगल, नदी किनारे मिलते और घंटों साथ रहते । बचपन की बात अलग थी ,और युवावस्था की अलग । देखने-सुनने वालों की भौंहें सिकुड़ने लगी।
कहा भी गया है कि –
खैर,खून,खाँसी,खुशी,बैर,प्रीत,मदपान ।
रहिमन दाबे न दबे,जानत सकल जहाँन ।।
रंगीता तथा विमल का प्रेम भी कोई अपवाद नहीं था । उनके प्रेम के बारे में पूरा मनभौना जान गया । उनके प्यार के किस्से चटखारे ले लेकर सुने -सुनाये जाने लगे ।
दोनों के परिजनों को जब उनकी प्रेमकहानी की जानकारी हुई तो पहले उन्हें डाँटा, समझाया, आखिर में अपने मान-सम्मान की दुहाई दी । इन बात़ों का उनके ऊपर कोई प्रभाव न हुआ, तब हार मानते हुए उनकी शादी कर दी गयी । इस तरह रंगीता और विमलसिंह के प्यार को जीत मिली ।
धीरे-धीरे आठ वर्ष का समय गुजर गया । इस बीच रंगीता दो बच्चों की माँ बन गयी । वह घर गृहस्थी में पूरी तरह से रम गयी । उसे यह भी याद न रहा कि वह और विमल कभी अमराई में,तो कभी खलिहान में तथा कंचनपुर के साप्ताहिक हाट में कितनी आतुरता से एक दूसरे की प्रतीक्षा करते थे । तब ‘मिलने’ का सुख इतना अधिक आनंदित करता था कि उसके आगे कुबेर के खजाने से मिलने वाला सुख भी फीका प्रतीत हो !
प्रेयसी तथा पत्नी में काफी फर्क होता है । जो बातें प्रेयसी में होती है,वह पत्नी में कहाँ ? इसीलिये ऐसे पुरुषों को प्रायः निराशा ही हाथ लगती है जो पत्नी में प्रेयसी ढूँढने का प्रयास करते हैं । भले ही उनकी पत्नी विवाह पूर्व उनकी प्रेयसी क्यों न रही हो ?
प्रेयसी से मिलने वाला प्रेम उन्मुक्त होता है जबकि पत्नी का प्रेम घर गृहस्थी की जिम्मेदारियों से युक्त होता है । यही वह कारण है कि जिसकी वजह से विवाह के बाद कतिपय पुरुष स्वयं को ठगा हुआ महसूस करते हैं।
रंगीता को एकसाथ पति-बच्चों, गृहस्थी, खेतीबाड़ी, तीज-त्यौहारों, रिश्तेदारियों में सामंजस्य रखना होता था । इन्हीं कारणों से वह विमल का वैसा ख्याल नहीं रख पाती थी,जैसा विमल चाहता था ।
विवाह के छ:-सात बरस बीतते-बीतते विमलसिंह को रंगीता के व्यवहार में फर्क महसूस हुआ । जब कभी उसकी जरुरतें/इच्छायें अधूरी रह जाती, तब वह यह विचार करता कि रंगीता उसे पहले की भाँति प्रेम क्यों नहीं करती ? क्या उसका हृदय प्रेम से पूरी तरह से रीता हो चुका है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि वह किसी और को दिल दे बैठी हो ? ? यदि ऐसा है तो वह कौन है? जिसकी वजह से रंगीता उसकी उपेक्षा करने लगी है?
इन सवालों ने जैसे विमल सिंह का सारा सुख चैन ही छीन लिया ।
मनभौना के जितने दिलफेंक तथा आवारा किस्म के युवक थे, सभी का चेहरा एक-एक कर उसकी आँखों के घूम जाता !
इनमें वह कौन है ? जिसके साथ रंगीता गुलछर्रे उड़ाती है ? उसी कमबख्त ने इसे मेरे खिलाफ भड़काया होगा । इसी कारण वह मुझसे प्रेम के बजाए रुखा व्यवहार करती है ।
उसका हम उम्र पड़ोसी महिपाल सिंह जो रिश्ते में उसका भाई था, इस नाते वह रंगीता का देवर था । वह रंगीता के साथ खूब हंसी मजाक करता था । वह भी उसकी मसखरी का जवाब देने से नहीं चूकती थी ।
पहले वह इसे सामान्य रुप में लेता था, किन्तु जब से उसके मन में यह आया कि कोई है जो रंगीता को उसके विरुद्ध भड़का रहा है । तब से दोनों की बातचीत हँसी-ठिठोली उसके हृदय में शूल की तरह चुभने लगी थी । धीरे-धीरे उसका संदेह विश्वास में तब बदलता चला गया । उस पर आखिरी मोहर तब लगी जब उसने महिपाल सिंह को रंगीता की अँगूठी पहने हुए देखा था ।
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वह अंगारों पर चलता हुआ घर लौटा । रंगीता उस वक्त दीयाबाती की तैयारी कर रही थी । उसे विमल की भाव-भंगिमा देख आश्चर्य हुआ । रुई से बत्ती बनाती हुई वह पास आकर बोली – क्या हुआ जी ! तबियत तो ठीक है ना ?
उसने देखा ! अँगूठी रंगीता की उंगली में नहीं थी । उसका दिल डूब गया । तो उसका अनुमान सही निकला । उसके साथ इतना छल ? इतना फरेब ?
मेरी तबियत को कुछ नहीं हुआ – उसने जवाब दिया -तू अपना काम कर !
नहीं ! पहले आप बताओ कि बात क्या है ? आपके चेहरे पर हवाईयां उड़ रही है । कहीं भूत-वूत तो नहीं देख आये ?
भूत तो नहीं परन्तु हाँ मैने आज एक जिन्दा-भूत को देखने का मौका अवश्य मिला है .।
अच्छा ! वह हँसी– आज ये मसखरी के मूड में हैं - तुलसी चौंरा में दीपक रखने के बाद उसने पूछा- और यह जिन्दा -भूत कैसा होता है जी ?
विमलसिंह ने कुढ़ते हुए कहा – बिल्कुल हमारी-तरह । अंतर इतना ही होता है कि वह भूत मंडली में शामिल होने से बस एक कदम दूर होता है !
ओह ! – उसके मुख से निकला । परन्तु उसे विमल के कथन का कोई सिर-पैर समझ नहीं आया ।
अरे ! रंगीता !! तुम्हारी अंगूठी कहाँ है ? -उसने विषयांतर करते हुए उससे अंगूठी के बारे में ऐसे पूछा मानों उसकी नजर तभी रंगीता की उँगली पर पड़ी हो !
रंगीता बोली- ढीली होने से वह बार-बार उतर जाती थी, इसलिए मैंने उतारकर रख दिया है !
मुझे बताया नहीं ? लाओ मुझे दो ! मै उसे अभी छोटा कर देता हूँ—
ठीक है – देती हूँ – कहकर उसने पहले सिंगार दान को देखा अंगूठी वहाँ नहीं थी,इसके बाद उसने बारी-बारी से सभी आलों, चूल्हे का पाट, तकिए के नीचे,चिल्लर पैसों वाला डिब्बा, साबुनदानी, मसालों के डिब्बों को भी देखा । परन्तु उसे निराशा ही हाथ लगी । वह रुँआसी हो गयी । उसके लिए वह मात्र अंगूठी नहीं थी वह विमल की दी पहली भेंट थी इसलिए वह उसके लिये अनमोल थी । उसने हर संभावित स्थान को , घर के हर कोने-खुदरे को देख लिया । अँगूठी को नहीं मिलना था सो नहीं मिली ।
इधर विमल को पूरा विश्वास हो गया कि रंगीता ने ही वह अँगूठी प्रेम की निशानी के तौर पर उस महिपाल को दिया है, अब भेद खुलने के डर से उसके गुमने का नाटक कर रही है ।
उसे अपनी पत्नी पर खूब गुस्सा आया । प्रेम का स्थान घृणा ने ले लिया । इस बेहया को बेहयाई की सजा वह बाद में देगा ! पहले उस महिपाल के बच्चे को मजा चखाना चाहिए !
जिसकी वजह से उसकी रंगीता बदल चुकी है, वह उसकी भोली-भाली पत्नी को बहला-फुसलाकर अपना मतलब सीधा करता है । इसका सबूत वह अँगूठी है,जिसे पहनकर वह उसका मुख चिढ़ा रहा है । वह उसी समय क्रोध मे भरकर घर से निकल गया ।
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आधी रात होने को थी, उसके दोनों बच्चे सो चुके थे । रंगीता को बर्तन माँजते समय को याद आया कि उसकी अँगूठी कपड़े धोते समय बार-बार उँगली से निकल जा रही थी, जरुर वह तालाब में ही गिरी होगी ! यदि किसी के हाथ नहीं लगी होगी तो अब भी वहीं होगी । ढूँढने पर उसे जरुर मिल जायेगी । इसके लिए उसे छलनी लेकर तालाब जाना होगा !
वह विमल के लौटने की प्रतीक्षा करने लगी । जब वह लौटा तो उसकी हालत ठीक नहीं थी वह बदहवास तथा घबराया हुआ था । उसके कपड़े जगह-जगह से नुचा और फटा हुआ था ।
क्या हुआ-रंगीता ने पूछा- किसी से झगडा हुआ क्या ?
नहीं ! हाँ ! वो ! क्या है ? –
क्या ? मैं समझ गयी -रंगीता मुस्कराई- अभी तक अँगूठी की फिक्र में हो ! मुझे याद आया – वह ढीली तो पहले से थी । साबुन लगने पर और भी ढीली हो गई थी । वह शर्तिया तालाब में गिरी है यदि किसी के हाथ नहीं लगी होगी, तो वह अब भी वहीं होगी । सुबह ढूँढेंगे ! ठीक है ?
क्या ? सच में ? तालाब में ?
हाँ तालाब में सच्ची ! मैं खुद परेशान हूँ वह मेरे लिए जान से भी ज्यादे कीमती है ।
वह भूमि पर धम से बैठ गया और अपना सिर पकड़ लिया ।
यह आज आपको क्या हो गया है ? कहीं ज्यादा तो नहीं पी गये ?- उठिये हाथ मुँह धोईये मैं खाना लगाती हूँ ।
विमल एकाएक फफककर रोने लगा । रंगीता को कुछ समझ नहीं आया । उसे रोता देख उसे काफी हैरानी हुई । उसकी हालत देख वह पहले से ही चकराई हुई थी । उसे अपने सास-ससुर को बुलाना उचित लगा । थोड़ी देर में विमल का पूरा परिवार इकठ्ठा हो गया ।
विमल सिंह ने उन्हें जो बताया उस पर सहसा किसी को विश्वास नहीं हुआ । वह महिपाल सिंह की हत्या करके घर लौटा था,और रंगीता को मारकर अपना कलेजा ठंडा करना चाहता था ।
महिपाल आखिरी साँस तक उससे यही कहता रहा कि यह अँगूठी उसे तालाब में मिली थी, इसे रंगीता भाभी ने नहीं दिया है । वह इसे दूसरे दिन लौटाने वाला था तथा गुमने के डर से उसने अपनी उँगली में पहन लिया था ।।
विमलसिंह को तब उसकी बातों पर बिल्कुल विश्वास नहीं हुआ तथा क्रोध तथा ईर्ष्या की वजह से वह बहुत बड़ा अपराध कर बैठा । उसे सच्चाई का पता लगाना चाहिए था, जल्द बाजी में वह बहुत बड़ा अनर्थ कर बैठा ।
विमल की करतूत जानकर पूरा परिवार हक्का-बक्का रह गया । रंगीता की दशा विचित्र थी । वह विमल के हाथों मरने से बाल-बाल बची थी । फिर भी खुश नहीं थी । उसका तथा उसके दोनों बच्चों का भविष्य एक झटके में अंधकारमय हो गया ।
महिपालसिंह की हत्या का भेद खुलता । उससे पहले ही विमल के पिता तथा भाईयों ने उसे रात में ही पुलिस के हवाले कर दिया ।
महिपाल सिंह ने रंगीता की अँगूठी को पहचान कर भी उसे नहीं लौटाया तथा पहनने की गलती कर बैठा । अपनी छोटी सी भूल की कीमत उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी । ईर्ष्या, गलतफहमी तथा क्रोध ने दो हँसते खेलते परिवार को तबाह कर दिया । वह अँगूठी महिपाल के लिए मनहूस अँगूठी सिद्ध हुई थी ।
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आर.के.श्रीवास्तव
रतनपुर (छ.ग.)