सर ! मैं छला गया हूँ वह भी बहुत बुरी तरह से । उन्होंने मेरे सूधे पन का अनुचित फायदा उठाया है । सर ! उन्होंने मुझे दिखाया किसी और को तथा पल्ले बाँध दिया किसी दूसरी को ! जो ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के जमाने की कोई फैन या हीरोइन लगती है ?
सर ! वह हर बात को रबर की तरह खींचती है । खींचती है, ढील देती है, दोबारा खींचती है और आखिर में मेरे पाले में ही डाल देती है कि मैं चाहे जो करुं ।
और उसकी बातें ? हे भगवान ! लगता है हम या तो किसी नाटक कंपनी में भर्ती हो चुके हैं या फिर किसी पौराणिक कालीन आत्मा ने मेरी बीबी की आत्मा पर कब्जा कर रखा है ? कमबख़्त ! किसी सवाल का जवाब कभी सीधे-सीधे नहीं देती ! बोलती है तो लगता है, नौटंकी हो रही है,तथा कोई स्त्री पात्र अपने संवाद की अदायगी कर रही है :-
‘जी हाँ !’
‘अभी लीजिए मेरे देवता !’
‘जैसी आपकी इच्छा हो !’
‘’हाँ ! हाँ !! क्यों नहीं !!!’’
‘जैसे आपकी आज्ञा हो !’
इसके सिवाय वह कुछ और कहती ही नहीं !
ना किसी चीज की फरमाईश !
ना कहीं घूमने-फिरने की जिद, !
ना ही सिनेमा-सर्कस की फरमाइश !!
और ?
और ! सबसे बड़ी बात यह कि वह मुझे कतई प्यार नहीं करती ! करती भी होगी तो उसने कभी जताया नहीं है । उससे प्यार के दो बोल सुनने को मेरे कान तरस गये हैं । मैं कुछ कहता हूँ, तब वह अपने कानों को बंद कर लेती है । उसके सान्निध्य में मुझे ऐसा लगता है मानों मैं अपनी पत्नी नहीं किसी रोबोट के साथ हूँ ।
सर ! वह पक्की देहाती औरत है । कभी जिद्द करके घुमाने ले जाता हूँ, तो घर से बिना घूँघट किये निकलती ही नहीं । घूंघट करने से मना करो, तब कहती है कि—’मैं कोई बाजारु औरत हूँ, जो अपने जिस्म की नुमाइश करती फिरुँ ? मैं सम्मानित घराने की बहू हूँ ।‘
सब मुझे और मेरी बीबी को ही देखते हैं और मुझसे शर्म के मारे चार कदम भी नहीं चला जाता ! हाय ! क्या सोचा था ? और कैसी मिली ? हे भगवान !!
और ?- वृद्ध ने प्रश्न किया ?
अभी भी और ? इतने कम हैं क्या ? तो सुनिए –
सर ! वह पक्की पुजारिन है । सांस लिए बगैर रह सकती है, मगर बिना व्रत-उपवास के एक हफ्ता भी नहीं रह सकती ! कभी संकष्टी, कभी करवा चौथ, कभी हरितालिका तीज, तो कभी वट सावित्री, ! कभी यह तो कभी वह ! हे भगवान !
तो ?
‘तो क्या ? मैं करुं तो क्या करुं ! डाँटता हूँ तो रोने लगती है वह कोई जवाब ही नहीं देती । गूँगी-बहरी जैसी व्यवहार करने लगती है । आखिर में मुझे ही आत्मग्लानि होती है कि मैंने इसे डाँटा ही क्यों ।‘
मि. नाथ ! तो आप चाहते क्या हैं ?
छुटकारा ! ऐसी परम देहाती, पिछड़ी हुई औरत से छुटकारा पाना चाहता हूँ । जो मेरे साथ छलपूर्वक बाँध दी गई है, और जो मुझसे ज्यादा व्रत-उपवास को प्यार करती है । उसने मुझे आज तक एक बार भी ‘’आई लव यू’’ नहीं कहा है । इसलिए उससे छुटकारा चाहता हूँ । ताकि मेरी नर्क बनती जा रही जिंदगी में कुछ बहार आये ।
आपकी जिंदगी में बहार तो अभी है मि. एस़.नाथ ! नर्क तो तब होगी,जब आप ऐसी भली औरत से दूर होंगे ।
भली औरत ? मि.नाथ ने वृद्ध को हैरत से देखा ।
बेशक ! आपके सोच से भी ज्यादे भली औरत ! आपको खुश होना चाहिए कि आपको इतनी अच्छी पत्नी मिली है । जो आपकी इच्छानुसार चलती है, और आपकी सलामती के लिए मंदिर-मंदिर भटकती है, तथा नाना प्रकार के व्रत-उपवास करती है । लोगबाग ऐसी पत्नी पाने को तरसते हैं और आप हैं कि छुटकारा पाना चाहते हैं ? हद है !
अच्छा ??? उसने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा ।
और नहीं तो क्या ? आपकी पत्नी कोई अभिनेत्री है,या नौटंकी वाली बाई है जो आपको घड़ी-घड़ी ‘’आई लव यू’’ कहती फिरे ! वह हिन्दुस्तानी नारी है, । प्यार तथा समर्पण हिन्दोस्तानी नारी के आचरण तथा व्यवहार में होता है, जुबान में नहीं ।
‘’मिस्टर एस.नाथ ! आप जैसे नव शिक्षितों की दिमागी हालत देखकर बड़ा दुख होता है । आपको अपना धर्म और अपनी संस्कृति इतनी बुरी लगने लगी है कि अपनी धर्मभीरु तथा, भोली-भाली बीबी बोझ समझ रहे है ? आय एम सारी मि. नाथ ! मैं आपका केस नहीं ले सकता । ‘’
एडवोकेट मिस्टर सिन्हा का चेहरा आवेश से लाल हो चुका था । वे अपने सामने बैठे हुए सूट-बूट तथा टाई कोट धारी नौजवान को बुरी तरह से घूरने लगे ।
अच्छा ?
साथ ही आपको मेरी सलाह है मि.नाथ ! जिसका मैंनें आपसे फीस ले रखा है कि आप ठंडे-ठंडे घर जायें और भगवान को धन्यवाद दें कि आपको इतनी अच्छी पत्नी मिली है । अपने धर्म तथा संस्कृति के अनुसार जीवनयापन करना पिछड़ापन नहीं है, इन्हें त्यागना आधुनिकता नहीं है ! यह याद रखें कि –कोई भी धर्म या संस्कृति हो, वह अपने स्त्री वर्ग के द्वारा ही साकार तथा जीवंत होता है ।
फिलहाल यह बता पाना मुश्किल है कि एडवोकेट मिस्टर सिन्हा के उपदेश से मिं एस.नाथ का कितना समाधान हुआ ? वे उठ खड़े हुए । तथा मि.सिन्हा को पहले हाथ जोड़कर नमस्ते किया तथा पीछे आदत के अनुसार उनसे हाथ भी मिलाया ।
मि.सिन्हा ठठाकर हँस पड़े और बोले -मि.नाथ मैं एडवोकेट हूँ । फीस के बदले अपने मुवक्किल का मुकदमा लड़ता हूँ । साथ ही मैं पक्का हिन्दुस्तानी भी हूँ । जिसे अपने धर्म तथा संस्कृति से अगाध प्रेम है धर्म तथा संस्कृति की रक्षा के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ । तब मैं अपने मुवक्किल से फीस लेना भूल जाता हूँ । इसलिए आप यह याद रखें कि यदि भविष्य में जरुरत पड़ी तो मैं आपकी पत्नी का मुकदमा बिना फीस लिए लडूंगा ! ओ.के.. !
ओ. के. एंड थैंक्यू सर ! आपकी बेहतरीन सलाह के लिए ! मैं आपसे फिर मिलूंगा ।‘
यू आर मोस्ट वेलकम मि.नाथ ! हाँ संभव हो तो किसी संडे को चाय पर अपनी धर्म पत्नी को भी लेकर आईये । घोर कलिकाल में ऐसी देवी सदृश्य भारतीय नारी का दर्शन करने का सौभाग्य हमें भी मिलना चाहिए । है ना मि. नाथ !
ओ.के. सर ।
मि. नाथ के विदा होने के बाद भी मि. सिन्हा उस कुर्सी घूरते रहे जिस पर वे बैठे थे ।
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आर.के.श्रीवास्तव
रतनपुर (छ.ग.)