रजनीकांत हाँ यही नाम था उस खुरापाती बच्चे का जो तब कक्षा तीन में पढ़ता था । वह विद्यालय का सबसे ज्यादा खुराफाती छात्र था । उसे लेकर विद्यालय का पूरा स्टाफ सतर्क रहता था, कि न जाने वह कब और कैसा गुल खिला दे ।
मेरे स्कूल ज्वाईन करते ही मुझे एच.एम. सर ने चेताया था कि ‘रजनीकांत से सावधान रहना और उस पर नजर रखना ।‘ इस चेतावनी से मैं अचरज से भर गया । सात बरस के बच्चे से स्टाफ का इस तरह भयभीत रहना मेरी समझ से बाहर था । फिर भी मेरी खुशी तब दोगुनी हो गयी थी जब मुझे पढ़ाने के लिए कक्षा दूसरी मिली । कक्षा तीन को मिसेज मंजू लता शर्मा पढ़ाती थीं ।
सर ! ये है हमारा रजनीकांत और रजनीकांत ये नये सर हैं, बहुत कड़क और बेहद अनुशासन प्रिय --मिसेज शर्मा ने हमारा परिचय कराया ।
नमस्ते सर -उसने बड़ी मासूमियत से कहा -
नमस्ते जी- मैंने उसे ध्यान से देखते हुए कहा । वह मुझे आम बच्चों के जैसा ही लगा । चंचल, हँसमुख और बेहद मासूम । वह मुझे कहीं से भी खुरापाती नहीं लगा ।
अभी आपने उसे देखा ही कहाँ है सर -मिसेज शर्मा बोली- जल्दी ही आपको पता चलेगा कि यह कितना शैतान बच्चा है । इसने तो मेरे नाक में दम करके रखा है !! ‘’
जवाब में मैं मुस्करा दिया । मुझे मिसेज शर्मा की बातों पर विश्वास नहीं हुआ ।
आपको विश्वास नहीं तो चलिए हम आपस में कक्षाएँ बदल लेंते हैं आप तीसरी कक्षा पढ़ायें और मैं दूसरी पढ़ाती हूँ !—मिसेज शर्मा ने मुझे चैलेंज किया - चार दिन में ही आप कक्षा बदलने के तलबगार होंगे ।
मैंने रजनीकांत के विषय में जितना जाना था, उसके आधार पर कक्षाएँ बदलने का प्रस्ताव ‘आ बैल मुझे मार’ जैसे होती । अतः मैं कक्षाएँ बदलने को राजी नहीं हुआ ।
श्रीमती शर्मा पहली बार सितंबर में चार दिनों की छुट्टी पर गयी । इस कारण उनके क्लास की अतिरिक्त जिम्मेदारी मुझे मिली ।
मैं रजनीकांत के प्रति सावधान था । पहला दिन आम दिनों की तरह बीता । रजनीकांत ने दूसरे दिन जो किया वह अविश्वसनीय था, वह खुराफात की अदभुत मिसाल थी । मुझे श्रीमती शर्मा की बातों पर विश्वास करना ही पड़ा ।
उस दिन सुबह से ही रुक रुक कर बारिश हो रही थी । स्कूल में सामान्य दिनों की अपेक्षा विद्यार्थियों की उपस्थिति नगण्य थी ।
मैने तीसरी क्लास में सुलेख लेखने का काम दे रखा था । विद्यार्थियों में, सिर्फ रजनीकांत ही अकेला था जो लिखने के बजाए अपने छाता से खेल रहा था । खेल-खेल में छाते की कड़ियों को जोड़कर रखने वाला तार अपनी जगह से निकल गया । जिससे कड़ियाँ बिखर गयी । इसके बाद उसने कडिय़ों को पूर्ववत करने का बहुत प्रयास किया जो सफल नहीं हुआ । उस समय मैने उसे चिंतित तथा थोडा सा भयभीत देखा ।
ठीक बारह बजे लघु अवकाश की घंटी बजी । बच्चों को लघुशंका जाने की फिक्र हुई । प्रसाधन कक्ष बड़े से आँगन के परली ओर था ।
रजनीकांत अपने सहपाठी से कहने लगा –‘’ ‘’ जितेंद्र ! भीगना मत ! सर डाटेंगे ?
तो क्या करूँ ? मेरे पास छाता नहीं है, और यह जोर से आई हुई है –जितेंद्र ने जवाब दिया ।
तू मेरा छाता ले जा – उसने दरियादिली दिखाते हुए कहा – पहले तू हो आ ! फिर मैं जाऊँगा !!
जितेंद्र खुश हो गया । उसने छाता लिया और उसे खोला, ! जरा सा दबाव पड़ते ही छाते की सारी कड़ियाँ बाहर को झूल गयीं ।
जितेंद्र कुछ कह पाता उससे पहले ही रजनीकांत बुक्का फाडकर रोने लगा फिर उससे कहा – तुमने मेरा छाता तोड़ दिया ?
वह पहले से टूटा था यार ! मैने कुछ किया ही नहीं – जितेंद्र बोला ।
नहीं ! तुम्ही ने मेरा छाता तोड़ा है । मैं बड़े सर को बताऊंगा, नहीं तो इसे ठीक करो ।
मै कैसे ठीक करुं ! मेरी कोई गलती नहीं है —जितेंद्र रुआंसा हो गया, —तुम्हारा छाता पहले से ही टूटा हुआ था ।।
नहीं तुमने तोड़ा है,- मैं तुम्हारा शिकायत करुँगा -उसने कहा और किया भी । यदि मैंने उसे न देखा होता तब जितेंद्र ही कसूरवार ठहराया जाता ।
मिसेज शर्मा ठीक कहती थी कि वह बड़ा ही चालबाज और ऊधमी बच्चा है, उसने जितेंद्र को पूरा प्लान बनाकर फंसाया था । मैने सोचा ।
उसकी होशियारी ने हम शिक्षकों का अच्छा मनोरंजन किया । हमने उसके पिताजी को भी उसकी चालबाजियों से अवगत कराया । उन्होंने अपना माथा ठोठ लिया ।
बोले – आप लोग ही इसे सुधारें सर !! मैं परेशान हो गया हूँ इसकी शैतानियों से !!’
कुछ महीने चैन से बीते । दिसंबर की एक सुबह रजनीकांत एक मेज से दूसरे मेज पर कूदने का खतरनाक स्टंट कर रहा था । उसकी देखादेखी उसके कुछ सहपाठी भी वैसा ही कर रहे थे ।
कक्षा से धम धम की आवाजें स्टाफरूम तक सुनाई दे रही थी, किसी बच्चे ने मिसेज शर्मा से शिकायत करते हुए कहा – ‘मैम ! रजनीकांत हनुमान बना है और डेस्क पर कूद रहा है ।‘
श्रीमती शर्मा बड़बड़ाई -- ‘इस रजनीकांत के बच्चे ने नाक में दम करके रखा है, ठहर बच्चू ! अभी मजा चखाती हूँ’!
थोड़ी ही देर में बच्चों का शोर थम गया । श्रीमती शर्मा लौटी ही थी कि एकाएक पहले से भी ज्यादा शोर हुआ ।
एक बच्चा दौड़ते हुए आया बोला – सर ! सर ! वो रजनीकांत मर गया !!
क्या ? हम सब चौक उठे !
हाँ सर ! वो मर गया !- उसने दोहराया और भाग खड़ा हुआ ।
अब दौड़ने की बारी हमारी थी । लंच छोड़ कर सभी तीसरी क्लास पहुँचे । कक्षा के बाहर पूरा स्कूल इकठ्ठा था । सभी एड़ियाँ उचकाकर भीतर देखने की कोशिश में थे । हम रास्ता बनाते हुए भीतर गये ।
वह बेंच पर चित्त लेटा पड़ा था, उसके दोनों हाथ नीचे लटक रहे थे । उसकी जीभ बाहर को निकली थी, और आँखें बंद थी ।
अब रोने की बारी मिसेज शर्मा की थी ! वे बिना पूछे कहने लगीं –सर मैंने कुछ नहीं किया !! कसम से सर !! मैने इसे सिर्फ डांटा ही था फिर ये क्या हो गया ! हे भगवान ! हाय मैं क्या करुं!
प्रधानाध्यापक जी ने उनसे कहा – मैडम ! आप थोड़ी देर शांत रहें, । देखते हैं क्या हुआ है ।।‘
लेकिन ये रजनीकांत ---?
आप चिंता न करें – उन्होंने कहा और उसके एक हाथ को छुआ और उसके नाड़ी की जांच की ।
फिर चपरासी से बोले – मायाराम ! एक बाल्टी ठंडा पानी और आफिस से दोनों ‘सुधार सिंह’ (छड़ी) को लेकर आ ! जल्दी !!’’
मायाराम तुरंत आफिस की ओर भागा ।
इधर मोहनलाल चौहान ने शर्मा मैडम को डराते हुए कहा :-- मैम ! अगर ये लड़का जिंदा नहीं हुआ, तब मार तो हम सभी को पड़ेगी ! लेकिन फांसी की सजा अकेले आपको मिलेगी !’
फाँसी ..! हाय सर तब तो मैं मर ही जाऊँगी सर ! मिसेज शर्मा का बदन पत्ते की तरह कांपने लगा।
हाँ मैम ! फाँसी की सजा इसीलिए दी जाती है -चौहान सर गमगीन दिखाई देते हुए बोले – फाँसी लगने पर जीभ एक बीता बाहर लटक जाता है---
मैडम दोबारा रोना शुरु करतीं, उससे पहले ही मायाराम दोनों सामान ले आया ।
प्रधानाध्यापक जी ने पूछा – मायाराम ! पानी कितना ठंडा है ?
बहुत ! बहुत ज्यादा ठंडा है सर ! बरफ जितना -उसने उत्तर दिया !
वेरी गुड ! मायाराम अब तुम रजनीकांत के सिर में पानी डालना शुरु करो !उससे पहले एक छड़ी मुझे दो,और दूसरा चौहान को ! प्रधानाध्यापक जी ने कहा ।
यस सर ! –उस ने कहा और बाल्टी उठाई ।
पानी की पहली बूंद गिरने से पहले ही रजनीकांत उठ बैठा और प्रधानाध्यापक से बोला – सर ! मुझे माफ कर दीजिए !! सर । मैं आज के बाद कभी नहीं मरुँगा !!
उसकी आखिरी बात से हम सबकी हंसी छूट गई
मैंने पूछा – सच कहते हो ?
जी सर ! अब मैं कभी नहीं मरुँगा !
उसे सही सलामत देख कर मिसेज शर्मा का डर तुरंत गुस्से मे बदला – रह तो जा नालायक ! पाजी !! शैतान !!- वह उसकी ओर लपकी ।
हमने उसे रोका -अभी नहीं मैम ! बाद में आपको इसके लिए बहुत मौके मिलेंगे ।
रजनीकांत को जिंदा देखकर बच्चों की भीड़ छंट गयी ।
इस घटना हुए बरसों बीत गये ।
अभी हाल ही में मेरी मुलाकात रजनीकांत हुई । उसने मुझे पहचाना और प्रणाम किया । अब वह शादीशुदा और बाल-बच्चेदार था । साथ में उसकी पत्नी और दो प्यारे-प्यारे बच्चे थे । मैंनें उससे पूछना चाहा – क्यों रजनीकांत ! दोबारा थोड़े मरेगा ?
उसने सवाल को पूरा सुनने से पहले ही जवाब दे दिया – नहीं सर ! मैं चाहूँ भी तो ये मुझे नहीं मरने देंगें ।-- उसने अपने पत्नी और बच्चों की ओर इशारा करते हुए कहा ।
अब वह पहले वाला ऊधमी और शरारती रजनीकांत नहीं बल्कि एक धीर गंभीर तथा जिम्मेदार गृहस्थ था।
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