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चार दोस्त और लड़की ( पार्ट 1 )

15 सितम्बर 2021

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मैं और हमारे 3 दोस्त रात को बाते कर रहे थे। तभी वीर ने बोला कि आज कही बाहर चलते है , हमलोगों ने हामी भर दी कि चलो कहा चलना है।
उसने कहा नाईटऑउट नही कहीं लखनऊ से बाहर चलते है ।
हमलोग विस्मय में पड़ गए कि अचानक इसको बाहर जाने का भूत कहा से सबार हो गया।
प्रियेश ने पूछा  बाहर कहा चलोगे?
आर्या बोला कि प्रयाग चलते हैं।
उस समय हमलोगों के पैसे आये हुए थे तो सब तैयार हो गए चलने के लिये।
हमलोगों ने बैग पैक किया और चल दिये। रात बहुत हो गयी थी और हमारे फ्लैट के पास कोई ओटो नही मिलता है , उसके लिए हमलोगों को कुछ दूर पैदल चलना पड़ता था।
रात के करीब 1 बज रहे थे चौराहे पर कोई ऑटो नही था । इसलिये हमलोगों ने स्टेशन तक पैदल ही जाने का सोच लिया।
हम लोग पैदल चल रहे थे कि आर्या को सिगरेट की याद आयी उसने हर तरफ देखा कहीं कोई दुकान नहीं खुली हुई थी।
फिर हम लोग कुछ आगे बड़े तो एक गुमटी दिखाई दी। हमलोग उसके पास पहुचे और उस गुमटी में देखा तो एक बुजुर्ग महिला जो एक सफेद साड़ी पहने बैठी थी उससे आर्या ने जाकर बोला -" अम्मा! सिगरेट रखती हो।" अम्मा तो जैसे हमलोगों के ही इंतज़ार में बैठी हो , क्योंकि उस रास्ते पर कोई और दुकान नहीं दिख रही थीं।
अम्मा ने बड़े ही करुण स्वर से बोली -" बेटावा! हमार तीरे सिगरेट हई तुमका कौनो चाही " ... आर्या को मार्लबोरो बहुत पसंद थी और वो उसके बिना 2 घंटे से ज्यादा नही रह सकता था। कुछ भी हो उसको सिगरेट हर दूसरे घंटे में चाहिए ही थी। लेकिन मार्लबोरो ज्यादा इन छोटी मोटी दुकानों पर मिलती नही है तो कभी कभी बो गोल्डफ्लैक से काम चला लेता था। और उसकी बजह से अपने पूरे ग्रुप में सबको सिगरेट की आदत पड़ गयी थी।
आर्या ने अम्मा से बड़े ही मज़ाकिया ढंग से बोला -" अम्मा मार्लबोरो तो होगी नही आप छोटी गोल्ड ही देदो।"

हमलोग आर्या की बात सुनकर हँसने लगे। अम्मा को सायद हमलोगों की हँसी को उन्होंने बहुत घृणित स्वरूप में लिया ,  जो उनके बातों में साफ झलकने लगी थी। वोली -" बेटावा! हमई गरिब्बा जने हई बहुते भारी दुकनिया नाही हई  , अबै ता वेह हई जिहको नाव लियो थो तुमने ।"  आर्या को कुछ
सुकून हुआ । उसने अम्मा से छोटी गोल्ड मांगने के लिये उनकी ही बोली में बोला -" अम्मा! हमई छोटकी गोल्ड की डिबिया देह देउ।" ... हमलोग ठठ्ठा मार कर हँसने लगे। और आर्या का मज़ाक उड़ाते हुए उससे बोले अब तुम अम्मा के दामाद बन जाओ बहुत अच्छी पटेगी तुम्हरी और अम्मा की।
हमलोगों की इस बात को अम्मा ने बहुत गंभीरता से लिया।
अम्मा ने तुरंत ही प्रियेश को हाथ पकड़ कर अपने पास बैठाया और आर्या के बारे में पूछने लगी।
प्रियेश हमलोगों से बड़ा था और अम्मा को भी उनपर भरोसा था कि प्रियेश से बात करने से कुछ काम बन सकता है।
अम्मा अपनी नातिन की बात प्रियेश से करने लगी और बहुत ही धीमी धीमी आवाज में आर्या के बारे में पूछने लगी।जब उन्होंने अपनी नातिन की बात प्रियेश से की तो हमलोग आर्या का मज़ा लेने लगे .....लो बेटा तुम्हारा तो काम बन गया .... अब तुम सुट्टा भी मुफ्त में मारो और लड़की भी।
आर्या का स्वभाव बहुत व्यंग्यात्मक था तो उसको किसी बात का बुरा नही लगता था.....और हमलोगों के साथ साथ अपनी ही बुराई भी करने लगता था।
अम्मा प्रियेश को बहुत ही गंभीरता से समझा रही थी कि बेटावा हमार इकलौती नातिन है .....बहुतै खबसूरत हई.... चौका बर्तन सबु आवति है उहिका....कछु आइशो कामु नाही हई जो बा करि ना पावे।
प्रियेश मन ही मन मुस्कुरा रहा था। तभी आर्या ने अम्मा से कहा -" अम्मा ! पहले आप सिगरेट देदो फिर प्रियेश को आराम से बैठा कर बाते करना ।" 
अम्मा इसबार तो एकदम गुमटी के अंदर घुसी और गोल्ड की डिब्बी बाहर निकाल कर दे दी।
आर्या को तो मानो सबकुछ मिल गया हो, उसने तुरंत डिब्बी से एक सिगरेट निकली और जलाने के लिये लाइटर को खोजने लगा ... वैसे उसके पास हरवक्त लाइटर रहता है परंतु आज वो फ्लैट पर ही छोड़ आया था।
उसने अम्मा से सिगरेट जलाने के लिये माचिस मांगी।
अम्मा ने बोला -" बेटवा! दियासलाई त नाही हुईए हमार तीर... आइशो करव " ... अम्मा ने गुमटी के पीछे इशारा करते हुए बोली - " होने चले जाओ होन तुमका हमार मनइ मिल जइ उहिके तीर दियासलाई हुई।" हमलोगों को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि अम्मा सिगरेट रखती है लेकिन माचिस नहीं।
वैसे हमलोगों को कोई बहस करने का मन भी नही था तो हमलोग उनके बताए हुए जगह की तरफ चलने लगे।
आगे बहुत अंधेरा था और कुछ दिख भी नही रहा था।
लगभग 300 मीटर ही चले होंगे सामने एक पुरानी सरकारी बिल्डिंग दिखाई दी जो पिले रंग से सायद बहुत पहले ही पुती हुई होगी।
आर्या , वीर और मैं तीनों लोग उस बिल्डिंग के पास पहुँचे । उही पास में एक बुजुर्ग जो एक लकड़ी जी कुर्सी पर टेक लगाए बीड़ी सुलगा रहे थे। आर्या उनके पास जाकर बोला -" चचा ! माचिस देना , सिगरेट जलानी है।"
सायद चचा हमलोगों के ही इंतज़ार में बैठे थे। उन्होंने तुरंत कहा - "बेटवा अभी तनिक रुको यहीं हम अवई लेआउत ।"
चचा इतना कह कर उहाँ से चले गए । उस पुरानी बिल्डिंग का मुख्य द्वार खुला था और अंदर से किसी की सिसकने की आवाजें आ रही थी। अंदर अंधेरा था कोई भी किसी प्रकार की रोशनी नही दिख रही थी।
वीर बहुत ही उतावला रहता था हर काम के लिये उसने बोला चलो अंदर चल कर देखते है, कौन है?
मेरी और आर्या की हिम्मत न हो रही थी अंदर जाने की क्योंकि अंदर बहुत ही अंधेरा था और बिल्डिंग भी बहुत बड़ी थी।
वीर अपनी जिद्द पर अड़ा रहा ....उसने अब अकेले जाने का फैसला किया और अंदर चला गया । मैं उसी लकड़ी के कुर्सी पर बैठ गया जहाँ पर अभी तक चचा बैठे हुए थे और आर्या मेरे बगल में खड़ा था।
और प्रियेश अभी तक अम्मा के पास गुमटी पर ही बैठे हुए थे।

मैं और आर्या उही पर कुछ देर तक इंतजार करते रहे चचा का,  परन्तु कोई दिख ही नही रह था। वीर को भी अंदर गए हुए 20-25 मिनट हो चुके थे। सिसकियों की आवाजें और तेज़ होने लगी थी। मैंने आर्या को बोला यार वीर को आवाज़ देते है।
आर्या वीर को पुकारने लगा। करीब 2 मिनट तक चिल्लाया परन्तु हमलोगों को कोई भी प्रतिउत्तर नही मिला।
हमलोग बहुत ही घबरा गए थे। कुछ समझ मे नही आ रहा था। और न ही अंदर जाने की हिम्मत हो रही थी। और चचा का भी कोई अतापता नही था।
आर्या बोला पहले प्रियेश को बुला कर लाते है फिर अंदर चलते है।
क्योंकि हमलोग बैग और अपना सामान प्रियेश के पास गुमटी पर ही छोड़ कर आये हुए थे।
हमलोग भागकर गुमटी के पास आये.....परन्तु ये क्या था?
उहाँ कोई न ही गुमटी दिख रही थी और न ही प्रियेश और
न अम्मा।
हमलोगों को कुछ समझ मे नही आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। हमलोग बहुत ही डर गए थे।
आर्या तो चिल्लाने लगा और प्रियेश को आवाजें देने लगा , लेकिन उहाँ हमलोगों की आवाजों का कोई भी प्रतिउत्तर देने वाला नही था।
हमलोग बहुत ही घबरा गए थे । अब हमलोग वापस उस बिल्डिंग के पास गये।
....आर्या ने कहा पहले चचा को ढूंढते है उही कुछ बता पाए , हमलोग उस बिल्डिंग के चारों तरफ घूम आये लेकिन उहा हर तरफ घोर अंधेरा था और चारों तरफ झाड़िया थीं।
हमलोग बहुत डर गए थे, अंत  मे बिल्डिंग में जाने का सोचा जोकि मेरे पास उही विकल्प बचा था।
अचानक आर्या गिर पड़ा। मैंने उसको उठाया और अपना कंधे के बल खड़ा किया। पूछा क्या हो गया तुझे।
.....आर्या की घेघी बंध गयी थी कुछ बोल ही नही रह था।
मैंने उसको पकड़ कर हिलाया और बोला क्या हुआ तुझे।
थोड़ा संभल कर बोला भाई हुसैन यार बहुत तेज़ प्यास लग रही हैं।
हमलोगों के पास न ही बैग था न ही पानी का आसपास कोई प्रबंध था,...... करता भी क्या अब।
मैंने सोचा अगर इसको पानी नहीं मिला तो ये और भी घबरा जाएगा।
मैंने उसे  पड़ी हुई लकड़ी की कुर्सी (जिस पर चचा बैठे हुए थे।) पर उसको बिठाया और भरोसा दिलाया भाई मैं पानी खोज कर लाता हूँ।
आर्या ने मेरा हाथ पकड़ लिया बोला , हुसैन तू मत जा यार मुझे बहुत डर लग रहा हैं।
डर तो मुझे भी बहुत लग रहा था लेकिन आर्या की हालत देख कर पता नही कहा से इतना भरोसा अपने आप आगया ।
मैंने उसको भरोसा दिलाया भाई मैं अभी आया पानी को लेकर।
उसके बहुत कहने पर मैं दूर न जाकर उसी बिल्डिंग में पानी खोजने के लिये अंदर चला गया।
अंदर बहुत ही अंधेरा था कुछ नजर नही आ रहा था।
इस अँधेरे को , सिसकियों की आवाजें और भी भूतिया नज़ारा बना रही थी।
मैंने अपनी आँखों पर जोर दिया और तेज़ी से अँधेरे में देखने की कोशिस करने लगा। तभी मुझे ऊपर जाती हुई सीढ़ियां दिखाई दी , मैंने उसके विपरीत देखने की कोशिस की तो मुझे दूसरी तरफ भी वैसी ही सीढ़ियां दिखाई दी।
मैं बहुत ही विस्मय में पड़ गया कि किस सीढ़ियों को चुना जाए।
आर्या की प्यास ,प्रियेश का गुम हो जाना और वीर का बिल्डिंग से बाहर न निकलना मुझे अंदर ही अंदर डर पैदा कर रहा था जो अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका था।
मैंने अपने आप को समझाया औऱ मैंने अपने दायीं तरफ की सीढ़ियों पर जाना ही उचित समझा।
मैं बहुत आहिस्ते आहिस्ते अपना पैर बड़ा रहा था।
तभी मेरे कानों में उन आने वाली सिसकियों के साथ प्रियेश की रोने की आवाज़ प्रतीत हुई।
आवाज़ सुनते ही मेरा पैर सीढ़ियों से फिसल गया और मैं निचे गिर पड़ा।

मैं फिर फ़र्श पर बैठा बैठा सोचने लगा कि ये कैसे हो सकता है, प्रियेश तो गुमटी पर अम्मा के साथ था।
अब कुछ भी समझ मे नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है।
मैंने फिर से सीढ़ियों के बगल में लगी लकड़ी को पकड़ पकड़ कर ऊपर चढ़ने लगा ..... धीरे धीरे और चारों तरफ से चौकन्ना होकर ऊपर बढने लगा।
सीढ़ियों बीच मे मकड़ियों का जाला लगा हुआ था , मैंने तुरन्त ही नीचे की ओर उतरने लगा क्योंकि अगर वीर इन सीढ़ियों से गया होता तो ये जाला उसके जाने की बजह से साफ हो गया होता।
मैंने दूसरी सीढ़ी की ओर अपने पैर बढ़ाये और ऊपर जाने लगा।
ऊपर पहुँचते हुए मुझे सिसकियों की आवाजें और तेज़ सुनायीं देने लगी, लेकिन प्रियेश के रोने की आवाज़ कम होने लगीं थीं।
मुझे इतना समझने में देरी न लगी कि वीर इस सीढ़ी आया था और प्रियेश उस तरफ़ है.....लेकिन सबसे बड़ी उलझन तो ये थी कि प्रियेश उधर पहुँचा कैसे?.... मैंने अपने मन मे उठने वाली उलझन को शांत करने के लिये , अपने मन को झूठी तसल्ली दी बोला कि वो कोई दूसरी रास्ते से आया होगा उधर।
मेरे पास झूठी तस्सली देने के अलावा कोई और विकल्प नही था।
मैं उन सिसकियों के तरफ़ तेज़ी से बड़ने लगा ।
मुझे सामने अचानक एक लड़की दिखाई दी जो सफ़ेद कुर्ता और काले पैजामे में खड़ी थीं। मैं देखते ही डर की बजह से गिर पड़ा। लेकिन वो वैसे ही खड़ी खड़ी हल्की हल्की आवाज़ में रो रही थी।
मुझे समझ मे नही आ रहा था कि सब इस बिल्डिंग रो क्यूँ रहे है।
मैंने अपने आप को सम्भाला और खड़े होकर उस लड़की से पूछा तुम कौन हो? .. वीर कहाँ हैं?… प्रियेश क्यों रो रहा है? पानी कहाँ मिलेगा?……… इतने सारे प्रश्न मैंने एक साथ उससे पूछे।
वो हँसने लगी।
वो शायद मेरी जल्दबाजी में पूछें गए प्रश्नों के वजह से हँसने लगी हो ये मैंने अपने मन को तसल्ली देने के लिये सोचा।
मैंने उससे पूछा हस क्यों रही हो अब, अभी तक तो रो रही थी?....
उसने बहुत ही सरलता से मेरी बातों के प्रतिउत्तर दिए।
मेरा नाम सुस्मिता है। मैं यहीं रहती हूँ, मैं किसी वीर और प्रियेश को नही जानती हूँ।
मेरा मुँह गुस्से से लाल हो गया था। मन कर रहा था इसका मुँह तोड़ दूं, मेरे दोस्त पता नही किस परेशानी में होंगे और ये कह रही है कि मैं नहीं जानती हूँ।

धन्यवाद।

आर्या को क्या पानी मिल पायेगा?..... लड़की के बारें में क्या रहस्य है?..... वीर और प्रियेश को हुसैन खोज पायेगा की नही?.....
उपर्युक्त प्रश्नों को जानने के लिये पढ़िए पार्ट 2

अगला पार्ट जल्दी पढने के लिये अपनी समीक्षा अवस्य दे।

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Pragya pandey

Pragya pandey

Interesting story Waiting for next episode

16 सितम्बर 2021

Er. Shashank

Er. Shashank

16 सितम्बर 2021

Thanks alot for comment

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रचनाएँ
रहस्यों का पिटारा
5.0
रहस्यों का पिटारा , लेखक द्वारा रचित वे रचनाये है जिसमें लेखक ने स्वयं को उसका चास्मदीद माना हैं।

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