मैं और आर्या उही पर कुछ देर तक इंतजार करते रहे चचा का, परन्तु कोई दिख ही नही रह था। वीर को भी अंदर गए हुए 20-25 मिनट हो चुके थे। सिसकियों की आवाजें और तेज़ होने लगी थी। मैंने आर्या को बोला यार वीर को आवाज़ देते है।
आर्या वीर को पुकारने लगा। करीब 2 मिनट तक चिल्लाया परन्तु हमलोगों को कोई भी प्रतिउत्तर नही मिला।
हमलोग बहुत ही घबरा गए थे। कुछ समझ मे नही आ रहा था। और न ही अंदर जाने की हिम्मत हो रही थी। और चचा का भी कोई अतापता नही था।
आर्या बोला पहले प्रियेश को बुला कर लाते है फिर अंदर चलते है।
क्योंकि हमलोग बैग और अपना सामान प्रियेश के पास गुमटी पर ही छोड़ कर आये हुए थे।
हमलोग भागकर गुमटी के पास आये.....परन्तु ये क्या था?
उहाँ कोई न ही गुमटी दिख रही थी और न ही प्रियेश और
न अम्मा।
हमलोगों को कुछ समझ मे नही आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। हमलोग बहुत ही डर गए थे।
आर्या तो चिल्लाने लगा और प्रियेश को आवाजें देने लगा , लेकिन उहाँ हमलोगों की आवाजों का कोई भी प्रतिउत्तर देने वाला नही था।
हमलोग बहुत ही घबरा गए थे । अब हमलोग वापस उस बिल्डिंग के पास गये।
....आर्या ने कहा पहले चचा को ढूंढते है उही कुछ बता पाए , हमलोग उस बिल्डिंग के चारों तरफ घूम आये लेकिन उहा हर तरफ घोर अंधेरा था और चारों तरफ झाड़िया थीं।
हमलोग बहुत डर गए थे, अंत मे बिल्डिंग में जाने का सोचा जोकि मेरे पास उही विकल्प बचा था।
अचानक आर्या गिर पड़ा। मैंने उसको उठाया और अपना कंधे के बल खड़ा किया। पूछा क्या हो गया तुझे।
.....आर्या की घेघी बंध गयी थी कुछ बोल ही नही रह था।
मैंने उसको पकड़ कर हिलाया और बोला क्या हुआ तुझे।
थोड़ा संभल कर बोला भाई हुसैन यार बहुत तेज़ प्यास लग रही हैं।
हमलोगों के पास न ही बैग था न ही पानी का आसपास कोई प्रबंध था,...... करता भी क्या अब।
मैंने सोचा अगर इसको पानी नहीं मिला तो ये और भी घबरा जाएगा।
मैंने उसे पड़ी हुई लकड़ी की कुर्सी (जिस पर चचा बैठे हुए थे।) पर उसको बिठाया और भरोसा दिलाया भाई मैं पानी खोज कर लाता हूँ।
आर्या ने मेरा हाथ पकड़ लिया बोला , हुसैन तू मत जा यार मुझे बहुत डर लग रहा हैं।
डर तो मुझे भी बहुत लग रहा था लेकिन आर्या की हालत देख कर पता नही कहा से इतना भरोसा अपने आप आगया ।
मैंने उसको भरोसा दिलाया भाई मैं अभी आया पानी को लेकर।
उसके बहुत कहने पर मैं दूर न जाकर उसी बिल्डिंग में पानी खोजने के लिये अंदर चला गया।
अंदर बहुत ही अंधेरा था कुछ नजर नही आ रहा था।
इस अँधेरे को , सिसकियों की आवाजें और भी भूतिया नज़ारा बना रही थी।
मैंने अपनी आँखों पर जोर दिया और तेज़ी से अँधेरे में देखने की कोशिस करने लगा। तभी मुझे ऊपर जाती हुई सीढ़ियां दिखाई दी , मैंने उसके विपरीत देखने की कोशिस की तो मुझे दूसरी तरफ भी वैसी ही सीढ़ियां दिखाई दी।
मैं बहुत ही विस्मय में पड़ गया कि किस सीढ़ियों को चुना जाए।
आर्या की प्यास ,प्रियेश का गुम हो जाना और वीर का बिल्डिंग से बाहर न निकलना मुझे अंदर ही अंदर डर पैदा कर रहा था जो अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका था।
मैंने अपने आप को समझाया औऱ मैंने अपने दायीं तरफ की सीढ़ियों पर जाना ही उचित समझा।
मैं बहुत आहिस्ते आहिस्ते अपना पैर बड़ा रहा था।
तभी मेरे कानों में उन आने वाली सिसकियों के साथ प्रियेश की रोने की आवाज़ प्रतीत हुई।
आवाज़ सुनते ही मेरा पैर सीढ़ियों से फिसल गया और मैं निचे गिर पड़ा।
मैं फिर फ़र्श पर बैठा बैठा सोचने लगा कि ये कैसे हो सकता है, प्रियेश तो गुमटी पर अम्मा के साथ था।
अब कुछ भी समझ मे नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है।
मैंने फिर से सीढ़ियों के बगल में लगी लकड़ी को पकड़ पकड़ कर ऊपर चढ़ने लगा ..... धीरे धीरे और चारों तरफ से चौकन्ना होकर ऊपर बढने लगा।
सीढ़ियों बीच मे मकड़ियों का जाला लगा हुआ था , मैंने तुरन्त ही नीचे की ओर उतरने लगा क्योंकि अगर वीर इन सीढ़ियों से गया होता तो ये जाला उसके जाने की बजह से साफ हो गया होता।
मैंने दूसरी सीढ़ी की ओर अपने पैर बढ़ाये और ऊपर जाने लगा।
ऊपर पहुँचते हुए मुझे सिसकियों की आवाजें और तेज़ सुनायीं देने लगी, लेकिन प्रियेश के रोने की आवाज़ कम होने लगीं थीं।
मुझे इतना समझने में देरी न लगी कि वीर इस सीढ़ी आया था और प्रियेश उस तरफ़ है.....लेकिन सबसे बड़ी उलझन तो ये थी कि प्रियेश उधर पहुँचा कैसे?.... मैंने अपने मन मे उठने वाली उलझन को शांत करने के लिये , अपने मन को झूठी तसल्ली दी बोला कि वो कोई दूसरी रास्ते से आया होगा उधर।
मेरे पास झूठी तस्सली देने के अलावा कोई और विकल्प नही था।
मैं उन सिसकियों के तरफ़ तेज़ी से बड़ने लगा ।
मुझे सामने अचानक एक लड़की दिखाई दी जो सफ़ेद कुर्ता और काले पैजामे में खड़ी थीं। मैं देखते ही डर की बजह से गिर पड़ा। लेकिन वो वैसे ही खड़ी खड़ी हल्की हल्की आवाज़ में रो रही थी।
मुझे समझ मे नही आ रहा था कि सब इस बिल्डिंग रो क्यूँ रहे है।
मैंने अपने आप को सम्भाला और खड़े होकर उस लड़की से पूछा तुम कौन हो? .. वीर कहाँ हैं?… प्रियेश क्यों रो रहा है? पानी कहाँ मिलेगा?……… इतने सारे प्रश्न मैंने एक साथ उससे पूछे।
वो हँसने लगी।
वो शायद मेरी जल्दबाजी में पूछें गए प्रश्नों के वजह से हँसने लगी हो ये मैंने अपने मन को तसल्ली देने के लिये सोचा।
मैंने उससे पूछा हस क्यों रही हो अब, अभी तक तो रो रही थी?....
उसने बहुत ही सरलता से मेरी बातों के प्रतिउत्तर दिए।
मेरा नाम सुस्मिता है। मैं यहीं रहती हूँ, मैं किसी वीर और प्रियेश को नही जानती हूँ।
मेरा मुँह गुस्से से लाल हो गया था। मन कर रहा था इसका मुँह तोड़ दूं, मेरे दोस्त पता नही किस परेशानी में होंगे और ये कह रही है कि मैं नहीं जानती हूँ।
धन्यवाद।
आर्या को क्या पानी मिल पायेगा?..... लड़की के बारें में क्या रहस्य है?..... वीर और प्रियेश को हुसैन खोज पायेगा की नही?.....
उपर्युक्त प्रश्नों को जानने के लिये पढ़िए पार्ट 2
अगला पार्ट जल्दी पढने के लिये अपनी समीक्षा अवस्य दे।