Saraswati Mata Story in Hindi माता सरस्वती की कथा
Saraswati Mata हिन्दू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं. वह भगवान ब्रह्मदेव की मानसपुत्री हैं. मां सरस्वती को विद्या की देवी माना गया है. इन्हें वाग्देवी, शारदा, सतरूपा, वीणावादिनी, वागेश्वरी, भारती आदि नामों से जाना जाता है.
माता सरस्वती की उपासना से मुर्ख भी विद्वान बन सकता है. वसंत पंचमी के दिन की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि बसंत पंचमी के दिन ही इन्हें भगवान ब्रह्मा जी ने उत्पन्न किया था.
मां सरस्वती को कला, विद्या, संगीत की देवी माना जाता है. उनमें विचारणा, भावना और सद्भावना का समन्वय है. माता सरस्वती को शिक्षा की देवी कहा जाता है.
जो भी छात्र माता सरस्वती की पूजा करता है उसे मां का आशीर्वाद अवश्य ही प्राप्त होता है. वसंत पंचमी के दिन विद्यालयों में माता सरस्वती की पूजा की जाती है.
Who Is Saraswati Mata? माता सरस्वती कौन है? Maa Saraswati Story in Hindi
शिक्षा और बुद्धि के बगैर मनुष्य एक पशु के सामान है. यह दोनों ही चीजें माता सरस्वती से प्रदान होती हैं. भौतिक जीवन की सुख – सुविधाओं के लिए बुद्धि और ज्ञान की आवश्यकता होती है.
बौद्धिक क्षमता विकसित करने, चित्त की चंचलता और अश्वस्थता दूर करने के लिए मां सरस्वती की साधना विशेष उपयोगी है. कल्पना – शक्ति की कमी, उचित निर्णय ना कर सकने की क्षमता में कमी, विस्मृत, प्रमाद, दीर्घसूत्रता जैसे कारणों को दूर करने के लिए माता सरस्वती की आराधना जरुर करनी चाहिए. क्योंकि उपरोक्त कारणों के कारण ही मानव मुर्ख कहलाता है और अनेकों बार विपत्ति का कारक बनाता है.
अगर छात्रों का शिक्षा में मन ना लगे, पढ़ा हुआ भूल जाए, किसी विषय पर ध्यान केन्द्रित ना हो तो मां सरस्वती की आराधना करनी चाहिए. इससे कष्ट दूर होते हैं.
कैसे हुआ मां सरस्वती का जन्म Maa Saraswati
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य की रचना की. अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे. उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों आ॓र मौन छाया रहता है.
विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा… इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ.
यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था. अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी. ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया.
जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई. जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया. पवन चलने से सरसराहट होने लगी.
तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा. सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है. ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं. संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं.
Saraswati Devi ने क्यों दिया ब्रह्मा जी को श्राप
ब्रह्मदेव इस सृष्टि के रचयिता है. उन्होंने इस संसार की रचना की है. आज हम आपको बता रहे आखिर माता सरस्वती ने भगवान ब्रह्मदेव को श्राप क्यों दिया था.
इस ग्घतना का वर्णन सरस्वती पुराण और मत्स्य पुराण में मिलता है. भगवान ब्रह्मदेव ने अपनी शक्ति से देवी सरस्वती की उत्पत्ति की. इस कारण ब्रह्मा जी देवी सरस्वती के मांस पिता हुए.
भगवान् ब्रह्मा जी देवी सरस्वती पर मोहित हो गए. देवी सरस्वती ने इस बात को भांप लिया और उनके नज़रों से बचने की कोशिश करने लगीं. लेकिन वे जिस भी दिशा में, जिस भी जगह छिपती, ब्रह्माजी का पांचवा सर उन्हें ढूंढ लेता था.
अंततः उन्हें विवश होकर विवाह करना पड़ा. इससे एक पुत्र हुआ और उनका नाम रखा गया स्वयंभू मनु. कहा जाता है की इस घटना से महादेव शिव शंकर अत्यधिक क्रुद्ध हुए.
उसके बाद उन्होंने ब्रह्मा जी के पांचवे सर को काट दिया. कई जगहों पर कहा गया है की भगवान् ब्रह्मदेव का यह सर अपवित्र और अमर्यादित भाषा बोलता था, जिसके वजह से भगवान् शिव ने इस सर को काट दिया.
ब्रह्मा, विष्णु और महादेव को त्रिदेव कहा जाता है. परन्तु भगवान् शिव और भगवान् विष्णु की पूजा तो सर्वत्र होती है लेकिन ब्रह्मदेव की पूजा नहीं होती है. आज इसका कारण जानते हैं.
एक बार की बात है विश्व कल्याण हेतु ब्रह्मदेव ने यज्ञ का आयोजन करने के बारे में सोचा. यग्य आयोजन हेतु कमल पुष्प को धरती पर भेजा. वह पुष्प राजस्थान के पुष्कर में गिरा.
आअज भी वहाँ भगवन ब्रह्मदेव का मंदिर है. पुष्प के गिरने से एक तालाब का निर्माण हुआ. यहाँ भक्तों की लम्बी कतार लगती है परन्तु कोई भी वहाँ पूजा नाहिंन करता है, श्रद्धालु दूर से ही प्रार्थना कर लेते हैं.
जब भगवान् ब्रह्मा जी उस स्थान पर यज्ञ हेतु पहुंचे तो माता सरस्वती को पहुंचने में बिलम्ब हो गया. शुभ मुहूर्त निकलता जा रहा था. ऐसे उन्होंने एक स्थानीय ग्वाल बाला ” गायत्री ” से विवाह कर लिया और यज्ञ में बैठ गए.
जब थोड़ी देर बाद माता सरस्वती वहाँ पहुंची तो यह नजारा देख वे बहुत क्रुद्ध हुईं और ब्रह्मदेव को श्राप दे दिया कि इस धरा पर ना तो कोई उनकी पूजा करेगा और ना ही उन्हें याद रखेगा.
उन्होंने इन्द्रदेव और भगवान् शिव और भगवान् विष्णु को भी अलग – अलग श्राप दिया. क्योंकि इन्द्रदेव ही उस ग्वाल बाला को लाये थे और इस यज्ञ में भगवान् शिव और भगवान् विष्णु भी उपस्थित थे.
सभी देवताओं ने माता सरस्वती से श्राप वापस लेने की प्रार्थना की, लेक्किन वह नहीं मानी. जब उनका क्रोध शांत हुआ तब उन्होंने कहा जिस स्थान पर यह कमल पुष्प गिरा सिर्फ वहीँ ब्रह्मदेव की पुजा होगी. इसके अतिरिक्त कहीं पर उनकी पूजा होने पर या मंदिर निर्माण होने पर परिणाम विनाशकारी होंगे.
मां सरस्वती की वन्दना Saraswati Vandana Saraswati Mantra
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥
मां सरस्वती के ११ नाम दिलाएंगे परीक्षा में सफलता
१- मां शारदा
२-मां सरस्वती
३- मां भारती
४- मां वीणावादिनी
५- मां बुद्धिदायिनी
६-मां हंससुवाहिनी
७- मां वागीश्वरी
८- मां कौमुदी प्रयुक्ता
९- मां जगत ख्यात्वा
१०- मां नमो चन्द्रकान्ता
११- मां भुवनेश्वरी
सभी के आगे ” जय ” लगाकर रोज ११ बार इन नामों का जप करें. जल्द ही सफलता हासिल होगी.
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