mahabharat katha महाभारत की रचना महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने की है, लेकिन इसका लेखन भगवान श्रीगणेश ने किया है.. महाभारत ग्रंथ में चंद्रवंश का वर्णन है.
mahabharat katha में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं. यह महाकाव्य ‘जय’, ‘भारत’ और ‘महाभारत’ इन तीन नामों से प्रसिद्ध है.
महाभारत ग्रंथ में कुल मिलाकर एक लाख श्लोक हैं, इसलिए इसे शतसाहस्त्री संहिता भी कहा जाता है. यह ग्रंथ स्मृति वर्ग में आता है. इसमें कुल 18 पर्व हैं जो इस प्रकार हैं-.
आदिपर्व, सभा पर्व, वनपर्व, विराट पर्व, उद्योग पर्व, भीष्म पर्व, द्रोण पर्व, कर्ण पर्व, शल्य पर्व, सौप्तिक पर्व, स्त्री पर्व, शांति पर्व, अनुशासन पर्व, आश्वमेधिक पर्व, आश्रमवासिक पर्व, मौसल पर्व, महाप्रास्थनिक पर्व व स्वर्गारोहण पर्व. आइए इस लेख में हम इन 18 पर्वों के माध्यम से जानते है सम्पूर्ण महाभारत.
1. आदिपर्व mahabharat katha
चंद्रवंश में शांतनु नाम के प्रतापी राजा हुए.. शांतनु का विवाह देवी गंगा से हुआ. शांतनु व गंगा के पुत्र देवव्रत (भीष्म) हुए. अपने पिता की प्रसन्नता के लिए देवव्रत ने उनका विवाह सत्यवती से करवा दिया और स्वयं आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा कर ली.
देवव्रत की इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही उन्हें भीष्म कहा गया और उनकी प्रतिज्ञा को भीष्म प्रतिज्ञा. शांतनु को सत्यवती से दो पुत्र हुए- चित्रांगद व विचित्रवीर्य.
राजा शांतनु की मृत्यु के बाद चित्रांगद राजा बने. चित्रांगद के बाद विचित्रवीर्य गद्दी पर बैठे. विचित्रवीर्य का विवाह अंबिका एवं अंबालिका से हुआ. अंबिका से धृतराष्ट्र तथा अंबालिका से पांडु पैदा हुए. धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे, इसलिए पांडु को राजगद्दी पर बिठाया गया.
धृतराष्ट्र का विवाह गांधारी से तथा पांडु का विवाह कुंती व माद्री से हुआ. धृतराष्ट्र से गांधारी को सौ पुत्र हुये.इनमें सबसे बड़ा दुर्योधन था. पांडु को कुंती से युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन तथा माद्री से नकुल व सहदेव नामक पुत्र हुए.
असमय पांडु की मृत्यु होने पर धृतराष्ट्र को राजा बनाया गया.. कौरव (धृतराष्ट्र के पुत्र) तथा पांडव (पांडु के पुत्र) को द्रोणाचार्य ने शस्त्र विद्या सिखाई.
एक बार जब सभी राजकुमार शस्त्र विद्या का प्रदर्शन कर रहे थे, तब कर्ण (यह कुंती का सबसे बड़ा पुत्र था, जिसे कुंती ने पैदा होते ही नदी में बहा दिया था) ने अर्जुन से प्रतिस्पर्धा करनी चाही, लेकिन सूतपुत्र होने के कारण उसे मौका नहीं दिया गया. तब दुर्योधन ने उसे अंगदेश का राजा बना दिया.
एक बार दुर्योधन ने पांडवों को समाप्त करने के उद्देश्य से लाक्षागृह का निर्माण करवाया. दुर्योधन ने षड्यंत्रपूर्वक पांडवों को वहां भेज दिया. रात के समय दुर्योधन ने लाक्षागृह में आग लगवा दी, लेकिन पांडव वहां से बच निकले.
जब पांडव जंगल में आराम कर रहे थे, तब हिंडिब नामक राक्षस उन्हें खाने के लिए आया, लेकिन भीम ने उसका वध कर दिया… हिंडिब की बहन हिडिंबा भीम पर मोहित हो गई.
भीम ने उसके साथ विवाह किया. हिडिंबा को भीम से घटोत्कच नामक पुत्र हुआ. एक बार पांडव घूमते-घूमते पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी के स्वयंवर में गए.
यहां अर्जुन ने स्वयंवर जीत कर द्रौपदी का वरण किया. जब अर्जुन द्रौपदी को अपनी माता कुंती के पास ले गए तो उन्होंने बिना देखे ही कह दिया कि जो कुछ भिक्षा में लाये हो उसे आपस में बांट लो….. तब श्रीकृष्ण ने कहने पर पांचों भाइयों ने द्रौपदी से विवाह किया.
मयासुर द्वारा निर्मित सभा भवन बहुत ही सुंदर व विचित्र था. एक बार नारद मुनि युधिष्ठिर के पास आए और उन्हें राजसूय यज्ञ करने की सलाह दी….युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया… भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव चारों दिशाओं में गए तथा सभी राजाओं को युधिष्ठिर की अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया.
इसके बाद युधिष्ठिर ने समारोह पूर्वक राजसूय यज्ञ किया. इस समारोह में श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध कर दिया. युधिष्ठिर का ऐश्वर्य देखकर दुर्योधन के मन में इर्ष्या होने लगी. दुर्योधन ने पांडवों का राज-पाठ हथियाने के उद्देश्य से उन्हें हस्तिनापुर जुआ खेलने के लिए बुलाया. इसमें शकुनी का अहम् रोल था.
पांडव जुए में अपना राज-पाठ व धन आदि सबकुछ हार गए… इसके बाद युधिष्ठिर स्वयं के साथ अपने भाइयों व द्रौपदी को भी हार गए. भरी सभा में दु:शासन द्रौपदी को बालों से पकड़कर लाया और उसके वस्त्र खींचने लगा.
किंतु श्रीकृष्ण की कृपा से द्रौपदी की लाज बच गई…. द्रौपदी का अपमान देख भीम ने दु:शासन के हाथ उखाड़ कर उसका खून पीने और दुर्योधन की जंघा तोडऩे की प्रतिज्ञा की.
यह देख धृतराष्ट्र डर गए और उन्होंने पांडवों को कौरवों के दासत्व से मुक्त कर दिया… इसके बाद धृतराष्ट्र ने पांडवों को उनका राज-पाठ भी लौटा दिया.
इसके बाद दुर्योधन ने पांडवों को दोबारा जुआ खेलने के लिए बुलाया. इस बार शर्त रखी कि जो जुए में हारेगा, वह अपने भाइयों के साथ तेरह वर्ष वन में बिताएगा, जिसमें अंतिम वर्ष अज्ञातवास होगा.
इस बार भी दुर्योधन की ओर से शकुनि ने पासा फेंका तथा युधिष्ठिर को हरा दिया. शर्त के अनुसार पांडव तेरह वर्ष वनवास जाने के लिए विवश हुए और राज्य भी उनके हाथ से चला गया.
3. वन पर्व mahabharat katha
जुए की शर्त के अनुसार युधिष्ठिर को अपने भाइयों के साथ बारह वर्ष का वनवास तथा एक वर्ष के अज्ञातवास पर जाना पड़ा… पांडव वन में अपना जीवन बिताने लगे.
वन में ही व्यासजी पांडवों से मिले तथा अर्जुन को दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए कहा….. अर्जुन ने भगवान शिव से पाशुपास्त्र तथा अन्य देवताओं से भी दिव्यास्त्र प्राप्त किए… इसके लिए अर्जुन स्वर्ग भी गए… यहां किसी बात पर क्रोधित होकर उर्वशी नामक अप्सरा ने अर्जुन को नपुंसक होने का श्राप दे दिया.
तब इंद्र ने कहा कि अज्ञातवास के समय यह श्राप तुम्हारे लिए वरदान साबित होगा… इधर युधिष्ठिर आदि पांडव तीर्थयात्रा करते हुए बदरिका आश्रम आकर रहने लगे.
यहीं गंधमादन पर्वत पर भीम की भेंट हनुमानजी से हुई.. हनुमानजी ने प्रसन्न होकर भीम को वरदान दिया कि युद्ध के समय वे अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठकर शत्रुओं से अर्जुन की रक्षा करेंगे.
कुछ दिनों बाद अर्जुन स्वर्ग से लौट आए…. एक दिन जब द्रौपदी आश्रम में अकेली थी, तब राजा जयद्रथ (दुर्योधन की बहन दु:शला का पति) उसे बलपूर्वक उठा ले गया.
पांडवों को जब पता चला तो उन्होंने उसे पकड़ लिया… जयद्रथ को दंड देने के लिए भीम ने उसका सिर मूंड दिया व पांच चोटियां रख कर छोड़ दिया….एक बार यमराज ने पांडवों की परीक्षा ली.
यमराज ने यक्ष बन कर भीम, अर्जुन, नकुल व सहदेव से अपने प्रश्नों के उत्तर जानने चाहे, लेकिन अभिमान वश इनमें से किसी ने भी यमराज के प्रश्नों के उत्तर नहीं दिए…. जिसके कारण यमराज ने इन सभी को मृतप्राय: कर दिया… अंत में युधिष्ठिर ने यमराज के सभी प्रश्नों के उत्तर दिए…. प्रसन्न होकर यमराज ने सभी को पुनर्जीवित कर दिया.
4. विराट पर्व
mahabharat katha में 12 वर्ष के वनवास के बाद पांडवों ने अज्ञातवास बिताने के लिए विराट नगर में रहने की योजना बनाई… सबसे पहले पांडवों ने अपने शस्त्र नगर के बाहर एक विशाल वृक्ष पर छिपा दिए.
युधिष्ठिर राजा विराट के सभासद बन गए…. भीम रसोइए के रूप में विराट नगर में रहने लगे.. नकुल घोड़ों को देख-रेख करने लगे तथा सहदेव गायों की.
अर्जुन बृहन्नला बनकर राजा विराट की पुत्री उत्तरा को नृत्य की शिक्षा देने लगे….द्रौपदी दासी बनकर राजा विराट की पत्नी की सेवा करने लगी.
राजा विराट का साला कीचक द्रौपदी का रूप देखकर उस पर मोहित हो गया और उसके साथ दुराचार करना चाहा… प्रतिशोध स्वरूप भीम ने षड्यंत्रपूर्वक उसका वध कर दिया.
एक बार कौरवों ने विराट नगर पर हमले की योजना बनाई…. दुर्योधन को शक हो गया था कि पांडव विराट नगर में ही छुपे हैं…..पहले त्रिगर्तदेश के राजा सुशर्मा ने विराट नगर पर हमला किया.
राजा विराट जब उससे युद्ध करने चले गये , उसी समय कौरवों ने भी विराट नगर पर हमला कर दिया… तब राजा विराट का पुत्र उत्तर बृहन्नला (अर्जुन) को सारथी बनाकर युद्ध करने आया.
उत्तर ने जब कौरवों की सेना देखी तो वह डर कर भागने लगा. उस समय अर्जुन ने उसे सारथी बनाया और स्वयं युद्ध किया. देखते ही देखते अर्जुन ने कौरवों को हरा दिया.
तब तक पांडवों का अज्ञातवास समाप्त हो चुका था. अगले दिन सभी पांडव अपने वास्तविक स्वरूप में राजा विराट से मिले. पांडवों से मिलकर राजा विराट बहुत प्रसन्न हुए. राजा विराट ने अपनी पुत्री का विवाह अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से करवा दिया.
अज्ञातवास के बाद जब पांडव अपने वास्तविक स्वरूप में आए तो श्रीकृष्ण आदि सभी ने मिलकर ये निर्णय लिया कि शर्त के अनुसार अब कौरवों का पांडवों का राज्य लौटा देना चाहिए.
तब पांडवों ने अपना एक दूत हस्तिनापुर भेजा, लेकिन दुर्योधन ने राज्य देने से इनकार कर दिया। भीष्म, द्रोणाचार्य आदि ने भी दुर्योधन को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं माना.
तब पांडवों की तरफ से भगवान श्रीकृष्ण दूत बनकर गये , लेकिन दुर्योधन ने उनका सभा में अपमान किया और उन्हें बंदी बनाने का प्रयास किया.
तब श्रीकृष्ण ने अपनी माया दिखाई और वहाँ से चली आये. जब कौरव व पांडवों में युद्ध होना तय हो गया तब पांडवों ने अपने सेनापति धृष्टद्युम्न (द्रौपदी का भाई) को बनाया… दुर्योधन ने अपना सेनापति पितामह भीष्म को नियुक्त किया. कौरव व पांडवों की सेनाएं कुरुक्षेत्र में आ गईं.
भीष्म पितामह ने दुर्योधन को बताया कि पांडवों की सेना में शिखंडी नाम का जो योद्धा है वह जन्म के समय एक स्त्री था इसलिए मैं उसके साथ युद्ध नहीं करूंगा.
तब भीष्म पितामह ने ये भी बताया कि शिखंडी पूर्व जन्म में अंबा नामक राजकुमारी थी, जिसे मैं बलपूर्वक हर लाया था. उसी ने बदला लेने के उद्देश्य से पुन: जन्म लिया है.
जब युद्ध प्रारंभ होने वाला था, उस समय शत्रुओं के दल में अपने परिजनों को देखकर अर्जुन हताश हो गए…. तब श्रीकृष्ण ने उसे गीता का उपदेश दिया और अपना धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करने के लिए प्रेरित किया.
देखते-ही देखते कौरव व पांडवों में घमासान युद्ध छिड़ गया…. भीष्म लगातार 9 दिनों तक पांडव सेना का संहार करते रहे…..पहले तो भीष्म उतनी प्रबलता से युद्ध नहीं कर रहे थे.
वे सिर्फ वचन में बंधे होने के कारण ही दुर्योधन के साथ थे….लेकिन एक दिन दुर्योधन के द्वारा ललकारने पर उन्होंने बहुत तीक्ष्ण प्रहार पांडवों पर किया और उस दिन के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण को रथ का पहिया लेकर भीष्म की तरफ बढ़ना पडा.
श्रीकृष्ण ने पांडवों से कहा कि भीष्म की मृत्यु असंभव है क्योंकि उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान है इसलिए उन्हें युद्ध से हटाने का उपाय वे स्वयं ही बता सकते हैं…. पांडवों के पूछने पर भीष्म ने बताया कि शिखंडी अगर मुझसे युद्ध करने आया तो मैं उस पर शस्त्र नहीं चलाऊंगा.
दसवें दिन के युद्ध में शिखंडी पांडवों की ओर से भीष्म पितामह के सामने आकर डट गया, जिसे देखते ही भीष्म ने अपने अस्त्रों का त्याग कर दिया.
श्रीकृष्ण के कहने पर शिखंडी की आड़ लेकर अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म को घायल कर दिया….अत्यधिक घायल होने के कारण भीष्म अपने रथ से नीचे गिर पड़े.
शरीर में धंसे तीर ही उनके लिए शय्या बन गए… जब भीष्म ने देखा कि इस समय सूर्य दक्षिणायन है तो उन्हें प्राण नहीं त्यागे और तीरों की शय्या पर ही सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करने लगे.
7. द्रोण पर्व
भीष्म पितामह के बाद दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को अपनी सेना का सेनापति नियुक्त किया… द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को जीवित पकडऩे के योजना बनाई.
इसके लिए द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की और अर्जुन को युद्धभूमि से दूर ले गए…क्योंकि अर्जुन , द्रुपद और अभिमन्यु के अलावा इस चक्रव्यूह का तोड़ किसी के पास नहीं था.
द्रुपद और अन्य पांडव को जयद्रथ ने रोक दिया…क्योंकि उसे भगवान शंकर ने वरदान दिया था की एक दिन के लिए वह अर्जुन को छोड़कर सारे पांडव को हरा सकता है…और अभिमन्यु को भी इस चक्रव्यूह के ६ चरण के बारे में ही ज्ञात था.
अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह में घुस गया और वीरतापूर्वक लड़ते-लड़ते मृत्यु को प्राप्त हुआ…..अभिमन्यु अकेले ही बड़े बड़े महारथियों से बड़ी ही वीरता से मुकाबला किया , लेकिन जब मिलकर एक साथ हमला किये तब उसने वीरतापूर्वक लड़ते हुए अपनी प्राण त्याग दिये.
यह बात अर्जुन को पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और उसने जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा की क्योंकि जयद्रथ ने अभिमन्यु के चक्रव्यूह में प्रवेश करने के बाद उसका मार्ग बंद कर दिया था.
युद्ध के चौदहवें दिन अर्जुन ने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करते हुए जयद्रथ का वध कर दिया…..जयद्रथ के बाद दुर्योधन ने अलम्बुष नामक राक्षस का आह्वान किया और सोये हुए पांडवों पर हमला कर दिया.
अचानक हुए इस हमले से पांडव आश्चर्य में आ गये , क्योंकि यह नियम विरुद्ध था , लेकिन कौरवों से धर्म और नियम की अपेक्षा करना ही मुर्खता थी. तब श्रीकृष्ण के कहने पर भीम ने घटोत्कच का आह्वान किया और आते ही घतोत्कक्ष ने अलम्बुष का वध कर दिया और कौरव सेना में भारी तबाही मचाने लगा.
जब दुर्योधन ने देखा कि यदि घटोत्कच को रोका न गया तो ये आज ही कौरव सेना को हरा देगा, तब उसने कर्ण से उसे रोकने के लिए कहा….घतोत्कक्ष कर्ण पर भी भारी पड़ने लगा…तब दुर्योधन के बार – बार कहने पर कर्ण ने अपनी दिव्य शक्ति, जो उसने अर्जुन के वध के लिए बचा रखी थी, का प्रहार घटोत्कच पर कर उसका वध कर दिया.
युद्ध के पंद्रहवें दिन धृष्टद्युम्न ने षड्यंत्रपूर्वक द्रोणाचार्य का वध कर दिया…. जब यह बात अश्वत्थामा को पता चली तो उसने नारायण अस्त्र का प्रहार किया, लेकिन श्रीकृष्ण के कारण पांडव बच गए.
8. कर्ण पर्व
द्रोणाचार्य के बाद दुर्योधन ने कर्ण को सेनापति बनाया… दो दिनों तक कर्ण ने पराक्रमपूर्वक पांडवों की सेना का विनाश किया… सत्रहवे दिन कर्ण राजा शल्य को अपना सारथि बना कर युद्ध करने आया.
यह बात राजा शल्य को बहुत बुरी लगी…..एक तो दुर्योधन ने छल से उन्हें कौरव पक्ष में शामिल किया था, जबकि वे नकुल – सहदेव के सगे मामा थे और दुसरे उन्हें सारथी बनाए जाए जाने से वे बहुत ही क्रुद्ध हुए .
कर्ण जब अर्जुन से युद्ध कर रहा था उस समय भीम कौरव सेना का नाश कर रहे थे. भीम ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हुए दु:शासन के दोनों हाथ उखाड़ दिए.
यह देख कर्ण ने युधिष्ठिर को घायल कर दिया…. जब यह बात अर्जुन को पता चली तो वह कर्ण से युद्ध करने आए. अर्जुन और कर्ण के बीच भयंकर युद्ध होने लगा…..तमान अस्त्र – शस्त्रों से युद्ध क्षेत्र थर्रा गया.
तभी अचानक कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस गया……यह एक ब्राह्मण के श्राप के कारण हुआ था ……तभी श्रीकृष्ण की कहने पर अर्जुन ने कर्ण को ललकारा , तब कर्ण ने ब्रह्मास्त्र का आह्वान किया.
लेकिन भगवान परशुराम , जो कि कर्ण कके गुरु थे के श्राप से प्रकट ही नहीं हुआ…तब अर्जुन ने कर्ण को तीन क्षण का समय दिया और सज्ज होने के लिए कहा और इसके बाद उन्होंने एक तीक्ष्ण बाण से कर्ण का वध कर दिया.
9. शल्य पर्व
कर्ण की मृत्यु के बाद कृपाचार्य ने दुर्योधन को पांडवों से संधि करने के लिए समझाया, लेकिन वह नहीं माना… अगले दिन दुर्योधन ने राजा शल्य को सेनापति बनाया.
राजा शल्य सेनापति बनते ही पांडवों की सेना पर टूट पड़े… यह युद्ध का 18वां दिन था… राजा शल्य ने युधिष्ठिर को बीच भयंकर युद्ध हुआ…उन्हें आशीर्वाद था कि जो कोई भी उनके सामने क्रोधित होता था वे उसका आधा बल ले लेते थे …इसीलिए वे अपने प्रतिद्वंदी को क्रोधित करते थे, लेकिन वे युधिष्ठिर को क्रोधित करने में असफल रहे और अंत में युधिष्ठिर ने राजा शल्य का वध कर दिया.
यह देख कौरव सेना भागने लगी… उसी समय सहदेव ने शकुनि तथा उसके पुत्र उलूक का वध कर दिया… यह देख दुर्योधन रणभूमि से भाग कर दूर एक सरोवर में जाकर छिप गया.
पांडवों को जब पता चला कि दुर्योधन सरोवर में छिपा है तो उन्होंने जाकर उसे युद्ध के लिए ललकारा… दुर्योधन और भीम में भयंकर युद्ध हुआ… अंत में भीम ने दुर्योधन को पराजित कर दिया और मरणासन्न अवस्था में छोड़कर वहां से चले गए.
उस समय कौरवों के केवल तीन ही महारथी बचे थे-अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा… संध्या के समय जब उन्हें पता चला कि दुर्योधन मरणासन्न अवस्था में सरोवर के किनारे पड़े हैं, तो वे तीनों वहां पहुंचे.
दुर्योधन उन्हें देखकर अपने अपमान से क्षुब्ध होकर विलाप कर रहा था… अश्वत्थामा ने प्रतिज्ञा की कि मैं चाहे जैसे भी हो, पांडवों का वध अवश्य करूंगा… दुर्योधन ने वहीं अश्वत्थामा को सेनापति बना दिया.
10. सौप्तिक पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य व कृतवर्मा रात के अंधेरे में पांडवों के शिविर में गए, लेकिन उन्हें ये नहीं पता था कि उस समय पांडव अपने शिविर में नहीं हैं.
रात में उचित अवसर देखकर अश्वत्थामा हाथ में तलवार लेकर पांडवों के शिविर में घुस गया, उसने कृतवर्मा और कृपाचार्य से कहा कि यदि कोई शिविर से जीवित निकले तो तुम उसका वध कर देना.
अश्वत्थामा ने धृष्टद्युम्न, शिखंडी, उत्तमौजा आदि वीरों के साथ द्रौपदी के पांचों पुत्रों का भी वध कर दिया और शिविर में आग लगा दी….जब उसने यह बात दुर्योधन को बतायी तो उसे बड़ा ही कष्ट हुआ….उसने कहा कि सिर्फ पांडवों का वध चाहता था…उनके पुत्रों का नहीं और इस शोक में उसकी मृत्यु हो गई.
जब पांडवों को पता चला कि अश्वत्थामा ने छल पूर्वक सोते हुए हमारे पुत्रों व परिजनों का वध कर दिया है तो उन्हें बहुत क्रोध आया. पांडव अश्वत्थामा को ढूंढने निकल पड़े.
अश्वत्थामा को ढूंढते-ढूंढते पांडव महर्षि व्यास के आश्रम तक आ गए. तभी उन्हें यहां अश्वत्थामा दिखाई दिया. पांडवों को आता देख अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया.
इसपर अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र का आह्वान कर दिया…..दो ब्रह्मास्त्र के टकराने से सम्पूर्ण पृथ्वी पर संकट आ सकने के डर से श्रीकृष्ण और महर्षि वेदव्यास ने अर्जुन और अश्वत्थामा को अपने-अपने शस्त्र लौटाने के लिए कहा.
अर्जुन ने ऐसा ही किया किंतु अश्वत्थामा को अस्त्र लौटाने का विद्या नहीं आती थी…. तब उसने अपने अस्त्र की दिशा बदल कर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी.
ताकि पांडवों के वंश का नाश हो जाए… तब श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को सदियों तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया और उसके मस्तक की मणि निकाल ली.
11. स्त्री पर्व
जब कौरवों की हार और दुर्योधन की मृत्यु के बारे में धृतराष्ट्र, गांधारी आदि को पता चला तो हस्तिनापुर के महल में शोक छा गया…. युद्ध में मृत्यु को प्राप्त वीरों की पत्नियां बिलख-बिलख कर रोने लगी.
विदुर तथा संजय ने राजा धृतराष्ट्र को सांत्वना दी… अपने पुत्रों का संहार देखकर धृतराष्ट्र बेहोश हो गए… तब महर्षि वेदव्यास ने आकर उन्हें समझाया और सांत्वना प्रदान की… विदुरजी के कहने पर धृतराष्ट्र, गांधारी आदि कुरुकुल की स्त्रियां कुरुक्षेत्र चली गईं.
कुरुक्षेत्र में आकर श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र को समझाया तथा पांडव भी उनसे मिलने आए… धृतराष्ट्र ने कहा कि वह भीम को गले लगाना चाहते हैं जिसने अकेले ही मेरे पुत्रों को मार दिया.
श्रीकृष्ण ने समझ लिया कि धृतराष्ट्र के मन में भीम के प्रति द्वेष है… इसलिए उन्होंने पहले ही भीम की लोहे की मूर्ति सामने खड़ी कर दी…. धृतराष्ट्र ने उस मूर्ति को हृदय से लगाया तथा इतनी ज़ोर से दबाया कि वह चूर्ण हो गई… धृतराष्ट्र भीम को मरा समझकर रोने लगे, तब श्रीकृष्ण ने कहा कि वह भीम नहीं था, भीम की मूर्ति थी… यह जानकर धृतराष्ट्र बड़े लज्जित हुए.
श्रीकृष्ण पांडवों के साथ गांधारी के पास पहुंचे. वह दुर्योधन के शव से लिपट-लिपट कर रो रही थी. गांधारी ने श्रीकृष्ण को शाप दिया कि जिस तरह तुमने हमारे वंश का नाश कराया है, उसी तरह तुम्हारा भी परिवार नष्ट हो जाएगा. धृतराष्ट्र की आज्ञा से कौरव तथा पांडव वंश के सभी मृतकों का दाह-संस्कार कराया.
12. शान्ति पर्व
मृतकों का अंतिम संस्कार करने के बाद युधिष्ठिर आदि सभी एक महीने तक गंगा तट पर ही रुके. इसके बाद सर्वसम्मति से युधिष्ठिर का राज्याभिषेक किया गया.
राज्याभिषेक होने के बाद युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को अलग-अलग दायित्व दिए तथा विदुर, संजय और युयुत्सु को धृतराष्ट्र की सेवा में रहने के लिए कहा. इसके बाद श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को बाणों की शय्या पर लेटे भीष्म पितामह के पास ले गए. यहां भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर के धर्म, राजनीति, राजकार्य व धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि जुड़े अनेक प्रश्नों के उत्तर दिए.
13. अनुशासन पर्व
इस पर्व में भी भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को न्यायपूर्वक शासन करने का उपदेश दिया. सूर्य के उत्तरायण होने के बाद भीष्म अपनी इच्छा से मृत्यु का वरण करते हैं…. पांडव पूरे विधि-विधान से भीष्म पितामह का अंतिम संस्कार करते हैं पुन: हस्तिनापुर लौट आते हैं.
14. आश्वमेधिक पर्व
पितामह भीष्म की मृत्यु से युधिष्ठिर जब बहुत व्याकुल हो गए, तब महर्षि वेदव्यास युधिष्ठिर को अश्वमेध यज्ञ करने की सलाह देते हैं. तब युधिष्ठिर कहते हैं कि इस समय यज्ञ के लिए मेरे पास पर्याप्त धन नहीं है.
तब महर्षि वेदव्यास ने बताया कि सत्ययुग में राजा मरुत्त थे… उनका धन आज भी हिमालय पर रखा है, यदि तुम वह धन ले आओ तो अश्वमेध यज्ञ कर सकते हो.
युधिष्ठिर ऐसा ही करने का निर्णय करते हैं… शुभ मुहूर्त देखकर युधिष्ठिर अपने भाइयों व सेना के साथ राजा मरुत्त का धन लेने हिमालय जाते हैं.
जब पांडव धन ला रहे होते हैं, उसी समय अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा एक मृत शिशु को जन्म देती है… जब यह बात श्रीकृष्ण को पता चलती है तो वह उस मृत शिशु को जीवित कर देते हैं… श्रीकृष्ण उस बालक का नाम परीक्षित रखते हैं.
जब पांडव धन लेकर लौटते हैं और उन्हें परीक्षित के जन्म का समाचार मिलता है तो वे बहुत प्रसन्न होते हैं… इसके बाद राजा युधिष्ठिर समारोहपूर्वक अश्वमेध यज्ञ प्रारंभ करते हैं. युधिष्ठिर अर्जुन को यज्ञ के घोड़े का रक्षक नियुक्त करते हैं. अंत में बिना किसी रूकावट के राजा युधिष्ठिर का अश्वमेध यज्ञ पूर्ण होता है.
लगभग 15 वर्षों तक युधिष्ठिर के साथ रहने के बाद धृतराष्ट्र के मन में वैराग्य की उत्पत्ति होती है…. तब धृतराष्ट्र के साथ गांधारी, कुंती, विदुर व संजय भी वन में तप करने चले जाते हैं.
वन में रहते हुए धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती घोर तप करते हैं और विदुर तथा संजय इनकी सेवा करते थे… बहुत समय बीतने पर राजा युधिष्ठिर सपरिवार धृतराष्ट्र, गांधारी व अपनी माता कुंती से मिलने आते हैं.
उसी समय वहां महर्षि वेदव्यास भी आते हैं. महर्षि वेदव्यास अपने तपोबल से एक रात के लिए युद्ध में मारे गए सभी वीरों को जीवित करते हैं.
रात भर अपने परिजनों के साथ रहकर वे सभी पुन: अपने-अपने लोकों में लौट जाते हैं. कुछ दिन वन में रहकर युधिष्ठिर आदि सभी पुन: हस्तिनापुर लौट आते हैं.
इस घटना के करीब दो वर्ष बाद नारद मुनि युधिष्ठिर के पास आते हैं और बताते हैं कि धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती की मृत्यु जंगल में लगी आग के कारण हो गई है… यह सुनकर पांडवों को बहुत दुख होता है और वे धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती की आत्मशांति के लिए तर्पण आदि करते हैं.
एक दिन महर्षि विश्वामित्र, कण्व आदि ऋषि द्वारिका आते हैं… वहां श्रीकृष्ण के पुत्र व अन्य युवक उनका अपमान कर देते हैं… क्रोधित होकर मुनि यदुवंशियों का नाश होने का श्राप देते है.
एक दिन जब सभी यदुवंशी प्रभास क्षेत्र में एकत्रित होते हैं, तब वहां वे आपस में ही लड़कर मर जाते हैं. बलराम भी योगबल से अपना शरीर त्याग देते हैं… तब श्रीकृष्ण वन में एक पेड़ के नीचे बैठे होते हैं, तब एक शिकारी उनके पैर पर बाण चला देता है, जिससे श्रीकृष्ण भी शरीर त्याग कर स्वधाम चले जाते हैं.
जब यह बात अर्जुन को पता चलती है तो वह द्वारिका आते हैं और यदुवंशियों के परिवार को अपने साथ हस्तिनापुर ले जाते हैं… मार्ग में उन पर लुटेरे हमला कर देते हैं और बहुत सा धन व स्त्रियों को अपने साथ ले जाते हैं… यह देखकर अर्जुन बहुत लज्जित होते हैं. जब अर्जुन ये बात जाकर महर्षि वेदव्यास को बताते हैं तो वे पांडवों को परलोक यात्रा पर जाने के लिए कहते हैं.
17. महाप्रास्थानिक पर्व
श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद पांडव भी अत्यंत उदासीन रहने लगे तथा उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया. उन्होंने हिमालय की यात्रा करने का निश्चय किया.
अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को राजगद्दी सौंपकर युधिष्ठिर अपने चारों भाइयों और द्रौपदी के साथ चले गए तथा हिमालय पहुंचे. उनके साथ एक कुत्ता भी था. कुछ दूर चलने पर द्रौपदी गिर पड़ी. इसके बाद नकुल, सहदेव, अर्जुन व भीम भी गिर गए. युधिष्ठिर तथा वह कुत्ता आगे बढ़ते रहे.
युधिष्ठिर थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि स्वयं देवराज इंद्र अपने रथ पर सवार होकर युधिष्ठिर को सशरीर स्वर्ग ले जाने आए. तब युधिष्ठिर ने कहा कि यह कुत्ता भी मेरे साथ यहां तक आया है.
इसलिए यह भी मेरे साथ स्वर्ग जाएगा. देवराज इंद्र कुत्ते को अपने साथ ले जाने को तैयार नहीं हुए तो युधिष्ठिर ने भी स्वर्ग जाने से इनकार कर दिया.
युधिष्ठिर को अपने धर्म में स्थित देख वह यमराज अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए (कुत्ते के रूप में यमराज ही युधिष्ठिर के साथ थे). इस प्रकार देवराज इंद्र युधिष्ठिर को सशरीर स्वर्ग ले गए.
देवराज इंद्र युधिष्ठिर को स्वर्ग ले गए, तब वहां उन्हें दुर्योधन तो दिखाई दिया, लेकिन अपने भाई नजर नहीं आए. तब युधिष्ठिर ने इंद्र से कहा कि मैं वहीं जाना चाहता हूं, जहां मेरे भाई हैं… तब इंद्र ने उन्हें एक बहुत ही दुर्गम स्थान पर भेज दिया.
वहां जाकर युधिष्ठिर ने देखा कि भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव व द्रौपदी वहां नरक में हैं तो उन्होंने भी उसी स्थान पर रहने का निश्चय किया… तभी वहां देवराज इंद्र आते हैं और बताते हैं कि तुमने अश्वत्थामा के मरने की बात कहकर छल से द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्यु का विश्वास दिलाया था.
इसी के परिणाम स्वरूप तुम्हें भी छल से ही कुछ देर नरक देखना पड़ा… इसके बाद युधिष्ठिर देवराज इंद्र के कहने पर गंगा नदी में स्नान कर, अपना शरीर त्यागते हैं और इसके बाद उस स्थान पर जाते हैं.
जहां उनके चारों भाई, कर्ण, भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रौपदी आदि आनंदपूर्वक विराजमान थे (वह भगवान का परमधाम था). युधिष्ठिर को वहां भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन होते हैं. इस प्रकार mahabharat katha hindi का अंत होता है.
Mahabharat Story पांडव पक्ष के प्रमुख योद्धाओ के नाम
युधिष्ठिर
पांडवों के सबसे बड़ी भाई युधिष्ठिर थे. वैसे तो कर्ण पांडव में सबसे बड़े थे, लेकिन इसकी जानकारी लोगों को बहुत समय बाद हुई. युधिष्ठिर को धर्मनीति पर चलने के कारण ही “धर्मराज” कहा गया.
भीम
महाबली भीम पवनपुत्र थे. यए पवन देव के वरदान स्वरुप जन्मे थे. ये पांडव में दूसरे नंबर के थे. ये महाबलशाली और गदा युद्ध में प्रवीण थे.
अर्जुन
महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक महा धनुर्धारी अर्जुन पांडू और कुंती के पुत्र थे. इनका जन्म इंद्र देव के आशीर्वाद से हुआ था.
नकुल और सहदेव
यह पांच पांच पांडव में से क्रमशः चौथे और पांचवे नंबर पर थे. इनका जन्म अश्विनी कुमारों के आशीर्वाद से हुआ था. ये दोनों जुड़वा थे.
श्रुतकर्मण
श्रुतकर्मण द्रौपदी और सहदेव के पुत्र थे. इन्होने बहुत से कौरव योद्धाओं को युद्धक्षेत्र में धुल चटाई.
सतनीक
ये द्रौपदी और नकुल के पुत्र थे. ये भी बहुत ही वीर थे. इन्होने अपने बल से तमाम कौरव सेना का नाश किया.
श्रुतकीर्ति
ये द्रौपदी और अर्जुन के पुत्र थे. इन्होने अपने भाइयों के साथ मिलकर कौरव सेना को बहुत ही क्षति पहुंचाई.
सुतसोम
ये भीम और द्रौपदी के पुत्र थे. ये भी महाबलशाली थे. इन्होने भी कौरव सेना का बहुत नाश किया.
प्रतिविन्द्य
ये द्रौपदी और युधिष्ठिर के पुत्र थे. इन्होने युद्ध में कई कौरव पुत्रों को मृत्यु दी.
घतोत्कक्ष
ये भीम और हिडिम्बा का पुत्र था. यह महा बलशाली और मायावी था. इसने युद्ध क्षेत्र में आते ही कौरव सेना में हाहाकार मचा दिया. इसकी मृत्यु कर्ण के हाथों हुई थी.
वृहंत
यह पांडव सेना बहुत ही बलशाली योद्धा था. जिसको दुशासन ने मारा.
क्षात्र धर्मन
यह पांडव सेना का एक प्रमुख योद्धा था.
शिखंडनी
शिखंडनी एक किन्नर थी. यही किन्नर भीष्म पितामह के मौत का कारन बनी.
उत्तमौजा
यह पंचाल नरेश द्रुपद का पुत्र था.
चित्र युद्ध और चित्रयोधीन
यह पांडव सेना का महत्वपूर्ण योद्धा था, जिसे विकर्ण ने मारा.
अभिमन्यु
यह महान धनुर्धर अर्जुन के पुत्र थे. ये mahabharat ki katha के प्रमुख पात्रों में से एक हैं. इन्होने अपने युद्ध कौशल से कौरव सेना में खलबली मचा दी थी. ये अपने पिता के सामान ही महान धनुर्धारी थे. इनकी मृत्यु कौरवों के तरफ से रचे गए एक व्यूह में हुई.
पुरुजित
ये कुंती के भाई थे. mahabharat yuddh में पुरुजित ने पांडवों की तरफ से युद्ध किया. mahabharat yuddh के १४ वे दिन इनकी मृत्यु हुई. मृत्यु से पूर्व इन्होने कौरव सेना में भारी क्षति पहुंचाई.
धृष्टकेतु
यह शिशुपाल का पुत्र था. इसने पांडव के पक्ष में लड़ा और वृहद्वाहन का वध किया.
वृहद्क्षत्र
यह पांडव पक्ष का एक महान योद्धा था. जिसने अपने ५ भाइयों के साथ कौरव पक्ष में भरी तबाही मचाई.
सहदेव
सहदेव मगध का राजा और जरासंध का पुत्र था. वह बहुत ही बलवान था. वह और उसकी सेना ने कौरव की सेना का बहुत नुकसान किया.
इरावन
इरावन अर्जुन और नागकन्या उलूपी का पुत्र था. यह भी अपने पिता के समान बहुत अच्छा धनुर्धर था.
चेकितन
यह पांडवों का मित्र था. मित्रता के कारण ही वह कौरव की तरफ से ना लड़कर पांडव की तरफ से लड़ा.
सत्यकि
यह यादव राजकुमार था. इसने पांडवों की तरफ से युद्ध में भाग किया और युद्ध के बाद जीवित बचा था.
द्रुपद
द्रुपद द्रौपदी के पिता थे. जिन्होंने अपने अपमान का बदला लेने के लियी कौरवों के खिलाफ अपने पुत्रों और सम्पूर्ण सेना के साथ भाग लिया और कौरव सेना को बहुत ही भारी क्षति दी.
नील
यह पांडव पक्ष के महान योद्धाओं में से एक था. इसे अश्वस्थामा ने मारा.
विराट
विराट विराट नगर के राजा थे. इन्होने पांडवों के पक्ष में युद्ध किया .
द्रिष्टदयुम्न
यह पंचाल नरेश द्रुपद का पुत्र और द्रौपदी का भाई था. इसने आचार्य द्रोण को मारने की शपथ ली थी, जिसे उसने आचार्य द्रोण को मारकर पूरा किया.
mahabharat secret कौरव पक्ष के प्रमुख योद्धा
दुर्योधन
mahabharat ki kahani में दुर्योधन ध्रितराष्ट्र और गांधारी का सबसे बड़ा पुत्र था. इसे गदायुद्ध में महारत हासिल थी. इसने भगवान श्रीकृष्ण के भाई बलराम से गदा सीखी थी. वह बहुत घमंडी था और उसके इसी घमंड की वजह से महा विनाशकारी महाभारत का युद्ध हुआ.
दुशासन
यह भी अपने भाई की तरह घमंडी था. यह दुर्योधन के बाद दुसरे नंबर पर था और गदा युद्ध में पारंगत था. इसी ने द्रौपदी का चीर हरण किया था. महाभारत के युद्ध में महाबली भीम ने उसका वध किया.
मात्रिकवत
यह कृतवर्मा का पुत्र और महान योद्धा था. इसने युद्ध में कई पांडव योद्धाओं को मृत्यु दी.
जयद्रथ
mahabharat में कौरव पक्ष के प्रमुख योद्धाओं में से एक वृद्धक्षत्र के पुत्र जयद्रथ बहुत ही शक्तिशाली थे. इन्होने ही चक्रव्यूह के समय अन्य पांडवों को चक्रव्यूह के अन्दर प्रवेश करने से रोक दिया था.
इन्हें भगवान शंकर का वरदान था कि एक दिन वे अर्जुन को छोड़कर सभी पांडव को परास्त करने में सक्षम होगा. इसका विवाह कौरवों की एक मात्र बहन दुशाला से हुई थी.
सोमदत्त
यह राजा वाहलिक का पुत्र था. यह भीष्म का चचेरा भाई था. इसका वध सत्यकी ने १४ वें दिन किया.
शकुनी
यह mahabharatkatha के प्रमुख पत्रों में से एक और महाभारत के युद्ध का प्रमुख सूत्रधार था. इसने अपनी कुटिल योजनाओं से कई बार पांडवों के साथ छल किया. यह गांधार का राजा था जो कि इस समय अफगानिस्तान में है. यह गांधारी का भाई और कौरवों का मामा था.
कृतवर्मा
यह कौरव पक्ष का बहुत ही ताकतवर योद्धा था. इसने कई बार पांडव पक्ष कके वीरों को पराजित किया. रात्रियुद्ध के दौरान भी इसने ही कौरव पक्ष की तरफ से भीषण युद्ध किया. इसकी मृत्यु सत्यकी के हाथों हुई थी.
चित्रसेन
यह भी कौरव सेना प्रमुख योद्धा था. इसने अक्षौहिणी सेना के साथ युद्ध किया. यह कर्ण की दूसरी पत्नी सुप्रिया का पुत्र था. इसका वध सत्यकी ने किया.
वृषसेन
यह अंगराज कर्ण का पुत्र था. इसने युद्ध के शुरुवाती चरण में कौरव की तरफ से युद्ध किया. यह भी कर्ण की तरह महँ धनुर्धर था. इसका वध अर्जुन के हाथो हुआ.
शाल्व
यह एक क्षत्रिय राजा था और कृष्ण विरोधी था. इसने एक बार युद्ध में प्रद्युम्न को भी हरा दिया था. इसका वध दृष्टद्युम्न और सत्यकी ने मिलकर किया.
शल्य
मद्रनरेश शल्य नकुल और सहदेव के सगे मामा थे. इनको वरदान था कि अगर इनके सामने कोई क्रोधित होता तो वे उसका बल अपने अन्दर लेकर उससे बड़े शक्तिशाली हो जाते थे.
दुर्योधन ने छल से इन्हें अपनी तरफ मिला लिया. पहले ही दिन इन्होने उत्तर का वध किया और युद्ध के अंतिम में इन्होने कर्ण का सारथी बनना स्वीकार किया और karn के मृत्यु के बाद इन्होने कौरव सेना का नेत्रित्व किया. इनकी मृत्यु युधिष्ठिर के हाथों हुई.
भीष्म
भीष्म गंगा और शांतनु के पुत्र थे, इसीलिए इन्हें गंगापुत्र कहा जाता है. इन्होने आजीवन ब्रह्मचर्य जैसी प्रतिज्ञा ली थी, तभी से भीष्म प्रतिज्ञा का चलन हुआ. इन्होने मृत्यु को अपने अधीन कर लिया था.
कर्ण
mahabharat katha के प्रमुख पात्रों में से एक महादानी karn कुंती और भगवान सूर्य के पुत्र थे. ये mahabharata के महानायक और महान धनुर्धर थे. इनकी दानवीरता इन्हें और भी महान बनाती है. इनका वध अर्जुन ने किया था.
क्रिपाचार्य
क्रिपाचार्य कौरव और पांडवों के गुरु थे. इनके महाभारत के युद्ध में भाग लेने में मतभेद है. हालाँकि कई जगह बताया गया हैं कि इन्होने युद्ध में भाग लिया था.
उलूक
उलूक शकुनी और रानी अरशी का पुत्र था.
विकर्ण
विकर्ण एक महान कौरव योद्धा था.
ब्रिहदबल
यह भी एक बलशाली कौरव योद्धा था.
ध्रुमसेन और सम्यमणि
ध्रुमसेन सम्यमणि का पुत्र था. इन्होने कौरव्व सेना की तरफ से युद्ध में भाग लिया था.
वाह्लीक
यह वाह्लीक साम्राज्य का राजा था. यह क्षेत्र इस समय कश्मीर के निकट है. यह कौरव सेना के सबसे वृद्ध योद्धा थे.
भुरिश्वा
भुरिश्वा सोमदत्त का पुत्र और कौरव तथा पांडव का चाचा था. इसने अकेले ही सत्यकी के दस पुत्रों का वध किया.
आचार्य द्रोण
आचार्य द्रोण कौरव और पांडवों की गुरु थे. अर्जुन ने इन्ही से धनुर्विद्या सीखी थी. इन्होने अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर का ख़िताब दिया था. अश्वस्थामा आचार्य द्रोण का पुत्र था. आचार्य द्रोण को वरदान था कि जब तक इनके हाथ में शस्त्र है इन्हीं कोई पराजित नहीं कर सकता है.
अश्वस्थामा
अश्वस्थामा आचार्य द्रोण का पुत्र था. वह हमेशा ही अर्जुन से जलन रखता था. उसे लगता था कि उसके पिटा धनुर्विद्या में पक्षपात कर रहे हैनं. वे अर्जुन को श्रेष्ठ विद्या दे रहे हैं, जबकि ऐसा कुछ नहीं था.
पाठक गण, मुझे उम्मीद है की mahabharat katha आपको अवश्य ही पसंद आई होगी तो इसे शेयर जरुर करें और mahabharat katha की तरह की और भी कथा, कहानी, जानकारी के लिए ब्लॉग को सबस्क्राइब जरुर करें और दूसरी पोस्ट नीचें पढ़ें.
1- मध्य प्रदेश का maihar माता मंदिर , जहां पूरी होती हैं हर मुरादें. पढ़ें आल्हा की कहानी
2- बच्चों की शिक्षाप्रद कहानियां यहां पढ़ें
Mahabharat Katha ऐसी जानकारियां जिसे आपने नहीं सुनी होंगी पूरी कथा