parshuram मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जिनका सादर नमन करते हों, उन शस्त्रधारी भगवान परशुराम की महिमा का वर्णन शब्दों की सीमा में संभव नहीं हो सकता है.
वे योग, वेद और नीति में निष्णात थे, तंत्रकर्म तथा ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में पारंगत थे. यानी जीवन और आध्यात्म की हर विधा के महारथी.
भगवान परशुराम का जन्म कहां हुआ था? Bhagwan Parshuram Birthplace
भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्म भगवान श्रीराम के पूर्व हुआ था. भगवान श्रीराम सातवें अवतार है. भगवान परशुराम का जिक्र रामायण काल में भी है.
वर्तमान शोधकर्ताओं द्वारा रामायण पर किये गए शोधों के अनुसार और माथुर – चतुर्वेदी ब्राह्मणों के इतिहास – लेखक, श्री बालमुकुन्द चतुर्वेदी के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म ५१४२ वि. पु. वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन – रात्री के प्रथम प्रहार में हुआ था.
पौराणिक मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया को ही त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था. इसी दिन, यानी वैशाख शुक्ल तृतीया को सरस्वती नदी के तट पर निवास करने वाले ऋषि जमदग्नि तथा माता रेणुका के घर प्रदोषकाल में भगवान् परशुराम का जन्म हुआ.
इनका जन्म समय सतयुग और त्रेतायुग का संधिकाल माना जाता है. मान्यता है कि भगवान परशुराम का जन्म ६ उच्च ग्रहों के योग में हुआ, इसीलिए वे महान तेजस्वी, ओजस्वी और वर्चस्वी महापुरुष बने.भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन होने के कारण अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती मनाई जाती है.
Birthplace ( जन्मस्थान )
भृगुक्षेत्र के शोधकर्ता साहित्यकार शिवकुमार सिंह कौशिकेय के अनुसार वर्तमान बलिया के खौराडीह में हुआ था. उन्होंने इसके लिए अपने शोधों और खोज से जुड़े अभिलेखों को प्रस्तुत किया.
सन १९८१ में बीएचयू के प्रोफ़ेसर डा. केके सिन्हा के देख रेख में हुई पुरातात्विक खुदाई में यहाँ ९०० ईसा पूर्व के समृद्ध नगर के प्रमाण मिले थे. इस ऐतिहासिक खोद से वैदिक ऋषि श्री परशुराम की प्रमाणिकता सिद्ध होने के साथ – साथ इस काल – खंड के ऋषि – मुनियों वशिष्ठ, विश्वामित्र, पराशर, वेदव्यास आदि के इतिहास की कड़ियाँ भी सुगमता से जुड़ जाती हैं.
भगवान परशुराम ( bhagwan parshuram )
भगवान परशुराम राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र , भगवान विष्णु के अवतार और भगवान शिव के परम भक्त थे. इन्हें शिव से विशेष परशु प्राप्त हुआ था.
इनका नाम तो राम था, किन्तु शंकर द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये परशुराम कहलाये. विष्णु के दस अवतारों में से छठा अवतार, जो वामन एवं रामचन्द्र के मध्य में गिने जाता है. जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये जामदग्न्य भी कहे जाते हैं.
श्री हरी विष्णु के छठे अवतार परशुराम पशुपति का तप कर परशु धारी बने और उन्होंने शस्त्र का प्रयोग कुप्रवृत्तियों का दमन करने के लिए किया.
कुछ लोग कहते हैं, परशुराम ने जाति विशेष का सदैव विरोध किया, लेकिन यह तार्किक सत्य नहीं. तथ्य तो यह है कि संहार और निर्माण, दोनों में कुशल परशुराम जाति नहीं, अपितु अवगुण विरोधी थे.
गोस्वामी तुलसीदास ने अपने शब्दों में परशुराम जी का वर्णन किया है. जो खल दंड करहुं नहिं तोरा, भ्रष्ट होय श्रुति मारग मोरा की परंपरा का ही उन्होंने भलीभांति पालन किया.
परशुराम ने ऋषियों के सम्मान की पुनस्र्थापना के लिए शस्त्र उठाए. उनका उद्देश्य जाति विशेष का विनाश करना नहीं था. यदि ऐसा होता, तो वे केवल हैहय वंश को समूल नष्ट न करते. जनक, दशरथ आदि राजाओं का उन्होंने समुचित सम्मान किया.
सीता स्वयंवर में श्रीराम की वास्तविकता जानने के बाद प्रभु का अभिनंदन किया, तो कौरव-सभा में कृष्ण का समर्थन करने में भी परशुराम ने संकोच नहीं किया.
कर्ण को श्राप उन्होंने इसलिए नहीं दिया कि कुंतीपुत्र किसी विशिष्ट जाति से संबंध रखते हैं, वरन् असत्य वाचन करने के दंड स्वरूप कर्ण को सारी विद्या विस्मृत हो जाने का श्राप दिया था.
आखिर भगवान परशुराम ने अपनी मां की गर्दन क्यों काट दी?
एक बार की बात है. परशुराम जी की माँ जल का कलश लेकर भरने के लिए नदी पर गयीं. वहाँ गंधर्व चित्ररथ अप्सराओं के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था. उसे देखने में रेणुका इतनी तन्मय हो गयी कि जल लाने में विलंब हो गया तथा यज्ञ का समय व्यतीत हो गया.
उसकी मानसिक स्थिति समझकर परशुराम के पिता जमदग्नि ने क्रोध के आवेश में अपने चारों पुत्रों को उसका वध करने के लिए कहा. परशुराम के अतिरिक्त कोई भी तैयार न हुआ. जमदग्नि ने सबको संज्ञाहीन कर दिया. परशुराम ने पिता की आज्ञा मानकर माता का शीश काट डाला.
पिता ने प्रसन्न होकर वर माँगने को कहा तब भगवान परशुराम ने चार वरदान माँगे-
1. मां पुनः जीवित हो जाएँ .
2. उन्हें मरने की स्मृति न रहे.
3. भाई चेतना-युक्त हो जायँ और
4 -मैं परमायु होऊँ.
जमदग्नि ने उन्हें चारों वरदान दे दिये. इस तरह से भगवान परशुराम ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए मां को जीवित भी करा लिया.
परशुराम भगवान ने नहीं किया क्षत्रियों का समूल नाश
कौशल्या पुत्र राम और देवकीनंदन कृष्ण से अगाध स्नेह रखने वाले परशुराम ने गंगापुत्र भीष्म पितामह को न सिर्फ युद्धकला में प्रशिक्षित किया, बल्कि यह कहकर आशीष भी दी कि संसार में किसी गुरु को ऐसा शिष्य पुन: कभी प्राप्त न होगा.
पौराणिक मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया को ही त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था. इसी दिन, यानी वैशाख शुक्ल तृतीया को सरस्वती नदी के तट पर निवास करने वाले ऋषि जमदग्नि तथा माता रेणुका के घर प्रदोषकाल में भगवान् परशुराम का जन्म हुआ .
भगवान परशुराम के क्रोध की चर्चा बार-बार होती है, लेकिन आक्रोश के कारणों की खोज बहुत कम हुई है. परशुराम ने प्रतिकार स्वरूप हैहयवंश के कार्तवीर्य अर्जुन की वंश-बेल का 21 बार विनाश किया था, क्योंकि कामधेनु गाय का हरण करने के लिए अर्जुनपुत्रों ने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी थी.
भगवान दत्तात्रेय की कृपा से हजार भुजाएं प्राप्त करने वाला कार्तवीर्य अर्जुन दंभ से लबालब भरा था. उसके लिए विप्रवध जैसे खेल था, जिसका दंड परशुराम ने उसे दिया. ग्रंथों में यह भी वर्णित है कि सहस्त्रबाहु ने परशुराम के कुल का 21 बार अपमान किया था.
परशुराम के लिए पिता की ह्त्या का समाचार प्रलयातीत था. उनके लिए ऋषि जमदग्नि केवल पिता ही नहीं, ईश्वर भी थे. इतिहास प्रमाण है कि परशुराम ने किस तरह पिता के आदेश के बाद मां रेणुका का वध कर दिया था.
जमदग्नि ने पितृ आज्ञा का विरोध कर रहे पुत्रों रुक्मवान, सुखेण, वसु तथा विश्वानस को जड़ होने का श्राप दिया, लेकिन बाद में परशुराम के अनुरोध पर उन्होंने दयावश पत्नी और पुत्रों को पुनर्जीवित कर दिया.
पशुपति भक्त परशुराम ने श्रीराम पर भी क्रोध तब व्यक्त किया जब उन्होंने स्वयंबर में शिवधनुष तोड़ दिया था.जब कार्त्तवीर्य ने परशुराम की अनुपस्थिति में आश्रम उजाड़ डाला था, जिससे परशुराम ने क्रोधित हो उसकी सहस्त्र भुजाओं को काट डाला.
कार्त्तवीर्य के सम्बन्धियों ने प्रतिशोध में फिर से आक्रमण किया . इस पर परशुराम ने २१ बार धरा को क्षत्रिय-विहीन कर दिया (हर बार हताहत क्षत्रियों की पत्नियाँ जीवित रहीं और नई पीढ़ी को जन्म दिया) और पाँच झीलों को रक्त से भर दिया.
अंत में पितरों की आकाशवाणी सुनकर उन्होंने क्षत्रियों से युद्ध करना छोड़कर तपस्या की ओर ध्यान लगाया . रामावतार में रामचन्द्र द्वारा शिव का धनुष तोड़ने पर ये क्रुद्ध होकर आये थे.
इन्होंने परीक्षा के लिए उनका धनुष रामचन्द्र को दिया. जब राम ने धनुष चढ़ा दिया तो परशुराम समझ गये कि रामचन्द्र विष्णु के अवतार हैं. इसलिए उनकी वन्दना करके वे तपस्या करने चले गये. भगवान परशुराम ने आचार्य द्रोण और कर्ण को भी शस्त्र शिक्षा दी.
परशुराम के क्रोध का सामना तो गणपति को भी करना पड़ा था. मंगलमूर्ति ने परशुराम को शिव दर्शन से रोक लिया था, रुष्ट परशुराम ने उन पर परशु प्रहार किया.
जिससे गणेश का एक दांत नष्ट हो गया और वे एकदंत कहलाए. अश्वत्थामा, हनुमान और विभीषण की भांति प्रभुस्वरूप परशुराम के संबंध में भी यह बात मानी जाती है कि वे चिरजीवी हैं.
parshuram mantra परशुराम मंत्र
1. ‘ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।।’
2. ‘ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।।’
3. ‘ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।।’
इन मन्त्रों का जाप कर दशांस हवन करने से सभी परेशानियों का नाश होता है. भाग्य खुलता है. घर परिवार में सुख शान्ति बढती है और खुशहाली आती है.
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