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मै देवी शंकर मिश्र पूर्व राजभाषा अधिकारी, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में अपनी सेवाएँ दे चुका हूँ | मेरी शैक्षणिक योग्यता M.A अंग्रेजी एवं दर्शन शास्त्र हैं और वॉली बाल का स्टेट लेवल खिलाडी भी रहा हूँ |सम्प्रति कविता लेखन एवं सामाजिक कार्यों में मेरी सदेव रूचि रही है | पूर्व मे मैने कई कवि सम्मेलनों का सफल संचालन भी किया है |

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निर्माता

28 मई 2015
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निराकार अरु निरविशेष निर्लिप्त और निष्काम शब्द समभाव में सदैव रहते हैं। उसी तरह से बिनु माता के जो होता उसको निर्माता कहते हैं। इसलिये अजन्मा कहते हैं उसकी जननी है कोई नहीं। फिर भी वह ‘था’, ‘है’ अरु ‘होगा’ इसमें है संशय तनिक नहीं। इस आत्म तत्व के ऊपर जब संसार पर्त चढ़ जाती है। माया अधीन जब मन होता

होली

28 मई 2015
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प्रेम और सौहार्द की आँखे अगर न तुमने खोलीं वैर भाव प्रतिशोध की गाँठें नहीं अभी तक खोलीं फिर तो तुम भी मना रहे बस परम्परागत होली। मन का कलुष तो ज्यों का त्यों है बसी है मन में चोली आत्मतत्व निर्मल होगा यदि मन की कलुषता धो ली फिर तो तुम भी मना रहे बस परम्परागत होली। शत्रु भी बन जाते हैं मित्र यदि

जड़-चेतन

28 मई 2015
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आकाश, भूमि, जल, वायु, अग्नि सब जड़ श्रेणी में आते हैं। जड़ का ही सेवन नित करके प्राणी चेतन कहलाते हैं।। जड़ का महत्व मत कम समझो जड़ से ही चेतन चलता है। वैचित्र विलक्षण है जग में मिथ्या से चेतन पलता है।। यदि नहीं तो सेवन बन्द करो फिर कब तक चेतन रुकता है। अस्तित्व बचाने को अपना चेतन जड़ सम्मुख झुकता

आसा - राम - पाल

28 मई 2015
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रामपाल को देखकर बोले आसाराम। हम दोनों बैकुण्ठ में भजते सीताराम।। भजते सीताराम काम कुछ ऐसा कर जाएं, जेल में रहते रहते दोनों आश्रम नया बनाएं। जितने बंदी बन्द यहाँ पर, प्रवचन उन्हें सुनाएं, जब प्रभाव पड़ जाये उन पर, फौरन शिष्य बनायें। इस प्रयोग को फिर धीरे से जेलर पर अजमाएं। शंकर बूटी मिला मिलाकर दिव्य

नेताजी का भाषण

28 मई 2015
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स्वाधीनता के बाद देश आगे बढ़ा है, प्रगति के आंकड़ों को मैने भी पढ़ा है। हाँ, आंकड़ों पर यदि आप विश्वास नहीं करते तो, आँख खोलकर देखो, इतना बड़ा उदाहरण सामने खड़ा है। पहले मैं क्या था, आज मैं क्या हूँ, मैं पुलिस को देखकर भागता था, डर के मारे रात-रात भर जागता था, मेरे अतीत पर मत जाओ, मेरे वर्तमान को गल

आनन्द सिन्धु

28 मई 2015
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पहले तुम मानव बन जाओ, ब्रह्म खोजने फिर जाना। चारवाक का जीवन जीकर परमतत्व किसने जाना।। श्रेय ही जीवन लक्ष्य व्यक्ति का, प्रेय मात्र तो साधन है। ‘‘मैं’’ विलीन हो जायेगा जब तब समझो आराधन है।। तभी पूर्ण होता आराधन जब आराधक अपना रूप । शनैः शनैः तजता जाता है हो जाता आराध्य स्वरूप।। नाम रूप सब हटा के देखो

काल

28 मई 2015
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जिस क्षण जो होना है निश्चित उस क्षण में ही सब कुछ होता। चलता फिरता एक खिलौना मानव के वश कुछ नहीं होता।। अस्थि दान यदि ऋषि ना करते, असुरों का संहार न होता। महादेव विष पान न करते, तो जग का कल्याण न होता।। मंथन में यदि सुधा न मिलती, देवासुर संग्राम न होता। जिस क्षण जो होना है निश्चित उस क्षण में ही सब

संसार-सत्य

28 मई 2015
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मृत्यु है प्रमाण पत्र ईश के अस्तित्व का, कर रहे है दंभ क्यों मिथ्या व्यक्तित्व का। किसी भी क्षण रूकेगी सांस आश सब यही रही, एक पल भी ना मिला ये संपदा धरी रही। संसार सत्य है यही जब से सृष्टि है बनी, बच सका न कोई भी निर्धन हो या धनी। कर्म ही प्रधान है तन तो नाशवान है, मिथ्या इस देह पर व्यर्थ का अभिमान

रूठा सावन

27 मई 2015
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अब सावन भी बेईमान हो गया। कहीं कहीं तो झमझम बरसा। कहीं पे रेगिस्तान हो गया। सावन भी बेईमान हो गया। ये अषाढ़ सावन अरु भादौं, पावस ऋतु के माह तीन हैं। जल देने में पावस रितु भी, देखो कितनी दीन-हीन है। प्यासी धरती निरख रही है, निर्दय बादल कहाँ खो गए। भौगोलिक सिद्धान्त विफल हो, पता नहीं वे कहाँ सो गए। प्

नौ मन तेल

27 मई 2015
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कहावत है न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी अब सुन लो कान खोलकर तेल की व्यवस्था हो गयी है अब राधा नाचेगी इतना ही नहीं भरत नाट्यम के दो-चार श्लोक भी बांचेगी। राधा ने सोचा था इतने तेल की व्यवस्था करना स्वयं में एक बखेड़ा है। अगर व्यवस्था हो भी गयी तो कह दूँगी कि आँगन टेढ़ा है। मत लो बहानेवाजी का सहारा । म

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