रामपाल को देखकर बोले आसाराम।
हम दोनों बैकुण्ठ में भजते सीताराम।।
भजते सीताराम काम कुछ ऐसा कर जाएं,
जेल में रहते रहते दोनों आश्रम नया बनाएं।
जितने बंदी बन्द यहाँ पर, प्रवचन उन्हें सुनाएं,
जब प्रभाव पड़ जाये उन पर, फौरन शिष्य बनायें।
इस प्रयोग को फिर धीरे से जेलर पर अजमाएं।
शंकर बूटी मिला मिलाकर दिव्य प्रसाद बनाएं।
बाँट-बाँट कर वह प्रसाद भरपूर प्रमाद बढ़ाएं,
किसी रात जब जेलर भैया गहरी नींद सो जाएं,
ज्ञान योग के इस प्रयोग का दोनों लाभ उठायें।
पाखण्ड नहीं ज्यादा दिन चलता, इक दिन परदा हटता।
कैसा ढ़ोंगी बाबा निकला, राम-राम था रटता।
राम नाम का ओढ़ पीताम्बर, कितना मूर्ख बनाया।
ऋषि-मुनियों की परम्परा पर काला दाग लगाया।
क्षमा नहीं मिल सकती, तुमको ऐसा काम किया है।
इतने घृणित कुकर्मों में भी ‘राम’ का नाम लिया है?
राम-नाम के ही प्रताप से पत्थर जल में भी तैरे।
विश्व विजेता रावण जैसे प्रभु सम्मुख कितना ठहरे?
राम नाम का दुरुप्रयोग कर अपना स्वार्थ जिया है
‘जौ का ढ़ेर गधा रखवाला’ को चरितार्थ किया है।
जहां कृष्ण का जन्म हुआ था वहीं तुम्हे रहना होगा।
कृत कर्मो का भोग तुम्हें अब आजीवन सहना होगा।