यहा आस्था है, विश्वास है। प्रेम है सदभाव है।यहा हर नाउम्मीदो की उम्मीद है। यहा न कोई बडा है न कोई छोटा । न कोई ब्राह्मण है न कोई छुद्र। यहा ‘ ‘ ‘ राजा हो या रंक ‘ सभी एक समान है।क्योंकि यहां साक्षात देवाधिदेव महादेव बास करते है। यहा सच्चे मन से मागी गई हर मुरादे महादेव की कृपा से पूरी होती है। ऐसी मान्यता है कि तारणहार के इस दरबार से आज तक कोई निराश नही लौटा। यही कारण है कि सीवान के मेंहदार मे स्थित प्राचीन शिव मंदिर बाबा महेन्द्रनाथ धाम ” द्वितीय बाबाधाम ” के नाम से विख्यात है। ” युगान्धर टाइम्स ” ने बाबा महेन्द्रनाथ धाम ,, के इतिहास पर विशेष पड़ताल किया। यहा के पावन भूमि के महत्त्व पर विशेष रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे है ” संजय चाणक्य …..!”
यूपी के पडोसी राज्य बिहार के सीवान मे देवाधिदेव त्रिकालदेव के कई ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिर हैं। इन्हीं में से एक है सिसवन प्रखंड के मेंहदार में स्थित ” बाबा महेंद्र नाथ धाम ” जो कि सावन मास और महाशिवरात्री के मौके पर लोगों की आस्था का केंद्र बन जाता है । देवघर के बाबा बैजनाथ की भांति सावन के पावन महीने में यहाँ पर भी दूर दराज से लोग भगवान शंकर का जलाभिषेक करने आते हैं। खासकर सोमवार को जलाभिषेक के लिए यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ जाती है।
गौरतलब है कि सिसवन प्रखंड के मेंहदार स्थित बाबा महेंद्रनाथ धाम शिव भक्तों की आस्था का प्रमुख और विख्यात केंद्र है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में यह क्षेत्र नेपाल देश के अंतर्गत आता था। एक बार कुष्ठ रोग से पीड़ित नेपाल के राजा महेंद्र नाथ नेपाल मे अपना राज्यपाट छोडकर भगवान शिव के शरण मे नेपाल से काशी विश्वनाथ के लिए इस रास्ते से जा रहे थे तभी उन्हें शौच लग गयी। शौच के बाद राजा ने गड्ढे के पानी से हाथ साफ किया तो उनके हाथ का कुष्ठ रोग दूर हो गया ।फिर वह उसे गड्ढे मे स्नान किए और देखते ही देखते उनके शरीर के सारे कुष्ठरोग ठीक हो गए। इसके बाद उन्होंने जंगल की कटाई कराने और वहां तालाब बनाने का आदेश दिया। तालब की खुदाई के दौरान जमीन के नीचे दबा वहां एक शिव लिंग दिखाई दिया जिसे बाहर निकाल कर वहां राजा ने मंदिर का निर्माण कराया और तब से यह महेंद्र नाथ धाम के नाम से विख्यात हुआ।
500 वर्ष पुरानी है भगवान भोलेनाथ का मंदिर
धार्मिक पर्यटन के देश में बिहार के सीवान का अपना अलग ही महत्व है। बाबा महेंद्रनाथ मंदिर प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। सीवान से लगभग 32 किमी दूर सिसवन ब्लॉक के मेंहदार गांव में स्थित भगवान महाकाल के महेंद्रनाथ मंदिर का निर्माण नेपाल नरेश महेंद्र विक्रम ने 17वीं शताब्दी में करवाया था। यह मंदिर अपने आप-पास क्षेत्रों के अलावा देशी-विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। मेंहदार धाम बिहार का पर्यटक और ऐतिहासिक स्थलों मे शुमार है। लगभग 500 वर्ष पुराना मेंहदार का महेंद्रनाथ मंदिर सबसे पुरानी धार्मिक स्थलों में से एक है जो लोकप्रिय पर्यटक स्थल के रुप मे अपनी पहचान बना चुकी है। मुख्य मंदिर के पूर्व में सैकड़ों बड़े छोटे घंटी लटका है जो देखने में बहुत ही रमणीय लगता है। घंटी के सामने पर्यटक अपनी फोटो खिंचवाते हैं।
भगवान गणेश और माता पार्वती के अलावा तमाम देवी- देवताओ की लगी है मूर्तिया
यहा भगवान नीलकण्ठ लिंग के रुप मे विराजमान है। इसके अलावा उत्तर मे जगत जननी माता पार्वती का मंदिर है तो दुसरी ओर प्रथम पूज्य देव भगवान गणपति बाबा की एक प्रतिमा भी परिसर में रखा गया है। यहा भगवान त्रिशूलधारी का रुद्रवतार हनुमान जी अलग मंदिर है, जबकि गर्भगृह के दक्षिण में भगवान राम और माता जानकी का मंदिर है। काल भैरव, बटूक भैरव और महादेव की मूर्तियां मंदिर परिसर के दक्षिणी क्षेत्र में है। मंदिर परिसर से 300 मीटर की दूरी पर भगवान विश्वकर्मा का एक मंदिर है। मंदिर के उत्तर में एक तालाब है जिसे कमलदाह सरोवर के रूप में जाना जाता है जो 52 बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है। इस सरोवर से भक्त भगवान शिव को जलाभिषेक करने के लिए पानी ले जाते हैं। यह सरोवर नवंबर माह में अदभुत और मनोहारी दिखता क्योंकि उस समय पूरा सरोवर कमल से गुलजार रहता है । इसके अलावा बहुत सारे साइबेरियाई प्रवासी पक्षियां भी यहां आते हैं जो मार्च तक रहते है। महाशिवारात्रि पर यहां लाखों भक्त आते हैं। उत्सव पूरे दिन पर चलता रहता है और भगवान शिव व मां पार्वती की एक विशेष विवाह समारोह आयोजित होता है। इस दौरान शिव बारात मुख्य आकर्षण होता है।
देश-विदेश से आते है शिवभक्त
मान्यता के साथ साथ यहा के लोगों का पूर्ण विश्वास है कि बाबा महेन्द्रनाथ के दरबार मे सच्चे मन से मागी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है इस दरबार से कोई निराश नहीं लौटता। यहां प्रतिदिन हजारों भक्तजन आते हैं। सावन में भक्तों की संख्या और बढ़ जाती है। मेंहदार में बाबा के दर्शन पूजन के लिए गोपालगंज, छपरा, मोतिहारी, बेतिया, मुजफ्फरपुर, हाजीपुर, वैशाली, गया, आरा, कोलकाता, झारखंड , पंजाब, महाराष्ट्र, केरल व यूपी के अतिरिक्त नेपाल से भी लोग आते हैं।
पीएम और सीएम भी महादेव के दरबार मे टेक चुके है माथा
पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मनोकामनाओ की पूर्ति के लिए बाबा के दरबार मे मथा टेक चुके हैं । इतना ही नहीं इन लोगों ने विधि-विधान पूर्वक रुद्राभिषेक भी किया है। यही वजह है कि लोगों की यहा अपार आस्था जुड़ी हुई है।
जलाभिषेक करने से मिलता है असाध्य रोगो से छुटकारा
मान्यता है कि मेंहदार के शिवलिंग पर जलाभिषेक करने पर नि:संतानों को संतान व चर्म रोगियों को रोग से निजात मिल जाती है। कहा जाता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व नेपाल नरेश को कुष्ठ हो गया था। मायूस राजा राजपाट त्याग कर निकल पड़े और चलते-चलते सीवान जिलांतर्गत सिसवन प्रखंड के ग्यासपुर गांव के चंवर में पहुंचे। शौच के बाद हाथ धोने के लिए पानी तलाश रहे थे। उन्हें छोटे से गड्ढे में गंदा पानी मिला।राजा विवश हो उसी से हाथ धोने लगे। जैसे ही गंदा पानी कुष्ठ हाथ पर पड़ा, हाथ का घाव व कुष्ठ गायब हो गया। फिर क्या था राजा ने उसी पानी से स्नान कर लिया और उनका कुष्ठ समाप्त हो गया। बाद में स्वप्न में आए भगवान शिव की प्रेरणा से राजा ने वहीं एक विशाल पोखरा खोदवाया और शिव मंदिर का निर्माण करवाया, जो आगे चलकर मेंहदार शिवमंदिर के नाम से प्रचलित हुआ।
मंदिर में है खास
मंदिर में छोटे-बड़े आकार की असंख्य घंटियां बहुत नीचे से ऊपर तक टँगी हुई है, मानो उन घंटियो को सुसज्जित ढंग से सजाया गया हो जिसको बच्चे आसानी से बजा सकते हैं। हर-हर महादेव के उद्घोष और घंट-शंख की ध्वनि से मंदिर परिसर से लेकर सड़कों पर भगवान शिव की महिमा गूंजती रहती है। दशहरा के पर्व में 10 दिनों तक अखंड भजन, संकीर्तन का पाठ होता है। इसके अलावा सावन मास व महाशिवरात्रि पर लाखों भक्त महामृत्युजंय का जलाभिषेक करते हैं। वैसे तो सोमवार भगवान महारुद्र का दिन माना जाता है इस लिए खासे भीड होती है लेकिन यहा हर दिन भगवान शिव का दिन है हर दिन भक्ति का तोता लगा रहता है। भर पर्यटक का आना जाना लगा रहता है।
यहा आये तो न भूले यह देखना
52 बीघा का कमलदाह सरोवर ,छोटे-बड़े मंदिर,देशी और विदेशी साइबेरियाई पक्षी,शिव श्रृंगार ,असंख्य छोटे-बड़े आकर की घण्टी , मंदिर में उछल कूद करते बंदर (लंगूर)कलश यात्रा के दौरान रास्ते में लोगों का हुजुम आदि अलौकिक नजारे हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है।
शिवलिंग का विशेष श्रृंगार
भोलेनाथ के श्रृंगार को देखने के लिए मंदिर में श्रद्धालु और पर्यटक खास तौर पर आते हैं। यहां शिवलिंग का शहद, चंदन, बेलपत्र और फूल से विशेष श्रृंगार किया जाता है। पहले शहद से शिवलिंग को स्नान कराया जाता है फिर गंगा जल से स्नान कराकर चंदन का लेप लगाया जाता है। उसी लेप का शिवलिंग पर हाथों से डिजाइन बनाया जाता है। राम और ऊं लिखा बेलपत्र, धतूरा और फूलों से भगवान शिव का श्रृंगार होता है।
मंदिर निर्माण की विशेषताएं
मंदिर का निर्माण लाखौरी ईट और सुर्खी-चूना से हुआ है। चार खंभों पर खड़ा मंदिर एक ही पत्थर से बना है जिसमें कहीं जोड़ नहीं है। मुख्य मंदिर के ऊपर बड़ा गुबंद है जिस पर सोने से बना कलश और त्रिशुल रखा है। मंदिर के चारों तरफ आठ छोटे-बड़े मंदिर है जिनके ऊपर भी उसी डिजाइज और कलर का गुबंद है। मुख्य मंदिर में शिव का ऐतिहासिक काले पत्थर का शिवलिंग है जिसके चारों तरफ पीतल का घेरा है।
पूर्ण होती है सबकी मनोकामनाए
ऐसी मान्यता है कि महेंद्र नाथ धाम पर आकर भगवान शिव की पूजा अर्चना कर शिवलिंग का जलाभिषेक करने से हर किसी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. वही वहां स्थित करीब 52 बीघा में फैले कमलदाह सरोवर में स्नान करने से लोगों के असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं ।
पुजारी बोले- भगवान शिव की है विशेष कृपा
मंदिर के पुजारियों की माने तो इस जगह पर भगवान शिव की विशेष कृपा है और सावन के महीने में यहां पूजा करने का खास महत्व होता है। खासकर सावन के सोमवार को यहां जलाभिषेक करने से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। अपने कष्टों को दूर करने और मन्नते पूरी करने के लिए यहां घंटा बांधने की भी परंपरा है,जो काफी वर्षों से चली आ रही है। लोग मंदिर से जुड़ी मान्यता में आस्था और विश्वास रखते हैं! लोग श्रद्धा के साथ यहां आकर जलाभिषेक और पूजा अर्चना करते हैं। मंदिर के पुजारी कहते है कि हर साल सावन और महाशिवरात्रि के मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं और अपनी मन्नतों को पूरा करने के लिए मंदिर के मुख्य द्वार पर घंटा बांधते हैं। अपने कष्ट और रोगों को दूर करने के लिए मंदिर के आगे स्थित विशाल कमलदाह सरोवर में स्नान भी करते हैं। शिव भक्तों और श्रद्धालुओं की माने तो यहां सच्चे मन से पूजा करने पर शिव सबकी मुरादें पूरी करते हैं।