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.... जरा याद करो कुर्बानी

28 जनवरी 2020

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🔴 संजय चाणक्य

'' ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आंख में भर लो पानी !!

जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो कुर्बानी !!''

जश्न-ए-आजादी की 70 वी वर्षगाठ़ पर अपने प्राणों की आहुति देकर मां भारती को मुक्त कराकर इबादत लिखने वाले अमर शहीदों को सलाम! इन योद्वाओं को जन्म देने वाली जगत जननी मां को शत-शत प्रणाम! और उन लाखों हिन्दुस्तानियों को सलाम जिन्हे स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस से न कोई सरोकार है न कोई मतलब! खैरात में आजादी पाकर स्वार्थ और व्यक्तिवाद को अपनाकर राष्ट्रीय महापर्व को उल्लास के साथ मनाने एवं तिरंगा के नीचे खड़े होने की जिसके पास फुर्सत नही है,उन्हे भी सलाम! आज सोच रहा हॅू हिन्दवासियों आपसे कुछ कहुं। वर्षो से मेरे दिल में एक बात कौध रही। जब-जब स्वतंत्रता दिवस या गणतत्र दिवस का महापर्व सामने आता है दिल में दबी हुई टिस ज्वार बन जाती है, हर बार इस ज्वार को दबाने की कोशिश करता हॅु लेकिन क्या करे अब सहा नही जा रहा है। आज सोचता हॅू अपने दिल की भड़ास निकाल ही दू, आप पर असर पड़े या न पड़े कम से कम मेरा मन मस्तिष्क तो हल्का हो जायेगा। शायद मेरी बातों से देश के एक चैथाई लोग इत्तेफाक रखते हो तो बहुतरे ऐसे भी देशप्रेमी होगे जो मुझे सिरफिरा कहने से भी परहेज नही करेगे। लेकिन इसकी परवाह नही है , बात कड़वी है मगर सच्ची है। जिस आजादी के लिए मां भारती के लाखों सन्ताने अपनी कुर्बानी देकर हमे आजाद भारत का नागरिक होने का गौरव दिलाया। जिन्होने हिमालय का सिर उंचा रखने के लिए अपना सिर कटा लिया,जिनके बलिदान के बाद 15 अगस्त-1947 को आजाद भारत की उत्पत्ति हुई और अखण्ड भारत का निर्माण हुआ। उसके बाद 26 जनवरी 1950 को अपने देश में नियम-कानून का एक संबिधान लागू किया गया। ताकि आजाद भारत में हर एक व्यक्ति को बराबर का दर्जा मिल सके। सही माने में हमे पूर्ण आजादी उस दिन हासिल हुआ जब हमारे देश में गणतंत्र लागू हुआ। 15 अगस्त 1947 प्रथम स्वाधीनता दिवस है, लेकिन 26 जनवरी 1950 पूर्ण आजादी का दिवस है। यह दोनों दिवस हम भारतवासियों के लिए किसी त्यौहार से कम नही है। इस दिन को हम हिन्दवासी एक महापर्व के रूप में मनाते आ रहे है। परन्तु वर्तमान समय में हिन्दवासियों के लिए स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस महज एक अवकाश दिवस बनकर रह गया है। पूर्वजों द्वारा अपनी कुर्बानी देकर दिए गए स्वतंत्रता रूपी अनमोल उपहार को उल्लास के साथ मनाने के लिए हम भारतवासियों के पास तनिक भी फुर्सत नही है। व्यक्तिवाद के इस दुनिया में जितने उल्लास के साथ हम भारतवासी अपने बच्चों का बर्थ-डे और अपना मैरेज इनवर्सरी मनाते है क्या हम स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस भी उतने ही जोश-खरोश और उल्लास के साथ मनाते है? धिक्कार है हमे अपने आप पर! हम स्वार्थ में इतने अन्धे हो गए है कि अपनी व्यक्तिगत खुशी के आगे राष्ट्र के अनमोल खुशी को ही भूलते जा रहे है, उसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने के बजाय खुद को उस खुशी से अलग करते जा रहे है!

'' उनकी मजार पर नही है एक भी दीया !

जिनके खून से जलते है ये चिरागे वतन !!

जगमगा रहे है मकबरे उनके !

जो बेचा करते थे शहीदों के कफन !!''

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बचपन में मैने एक किताब पढ़ी थी जिसमे अब्राहम लिंकन ने कहा था ‘ उस राष्ट्र की कभी उन्नति नही हो सकती, वह राष्ट्र कभी लम्बे समय तक अस्तित्व में नही रह सकता है जो अपने राष्ट्र के नायको की शहादत को भूल जाते है। हिन्दवासियों जरा सोचिए.....। एक हिन्दुस्तानी की सबसे बड़ी खुशी क्या होगी? शादी की साहलगीरा,बच्चों का जन्म दिवस और तीज-त्यौहार,जो व्यक्ति विशेष और मजहबी खुशी है। यह खुशी तो हम सब पूरे जोश-खरोश के साथ मनाते है लेकिन सबसे बड़ी खुशी जो देश की आजादी की खुशी है मां भारती की स्वतंत्रता की खुशी है जो न किसी धर्म और मजहब का है और न ही किसी व्यक्ति विशेष का उसे मनाने में जोश-खरोश और उल्लास क्यों नही ? राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस महापर्व है यह सभी तीज-त्यौहारों से बढ़कर है। क्यों कि यह धर्म और मजहब से बहुत उपर है यह एक ऐसा पर्व है जिसे हिन्दू,मुस्लिम,सिखा सभी को एक साथ मिलकर मनाने का त्यौहार है। आजादी की लड़ाई में हिन्दू-मुसलमान और सिखों ने अपनों प्राणों की आहुति देकर यह सौगात हम भारतवासियों को दिया है। इस सौगात को यू ही हल्के में मत लीजिए। इसके लिए हमारें देश के असंख्य योद्धाओ ने अपने लहु से धरती मां को सीचां है। देश की स्वतंत्रता हमें हिन्द के लाखो क्रान्तिकारियों के बलिदान के बाद प्राप्त हुई है। यह फिरंगियों द्वारा खैरात में दी हुई कोई भेट नही है। माना कि शहीद क्रान्तिकारी आपके और हमारे परिवार के नही है लेकिन यह मत भूलिए कि वह हमारे परिवार से बढ़ कर है। जिस तरह ईश्वर और अल्लाह हमारे परिवार के नही है। फिर हम उनको पूजते है क्यो कि उन्होने ही हमे बनाया! इस सृष्टि की रचना की, उसी तरह हमारे देश के शहीद क्रान्तिकारी हमारे लिए पूज्यनीय है उन्होनें हमे अग्रेंजों की गुलामी से मुक्त कराया हमे स्वतंत्र जीने का अधिकार दिलाया है। वह हमारे लिए पूज्यनीय है और पूज्यनीय रहेगें। हमसे अच्छा तो इस राष्ट्र के प्रति निष्ठावान हमारे नन्हे-मुन्ने बच्चे है जो इस राष्ट्रीय पर्व को पूरे उल्लास के साथ मनाते है। कुछ नही तो हमे इन्ही बच्चों से सिख लेनी चाहिए। बहुत दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि देश के भविष्य कहे जाने वाले युवा ही अन्धकार की ओर बढ़ते जा रहे है। बहुत पीड़ा होती है जब देश के युवाओं को स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के दिन झण्डे के नीचे नही पाता हू तो! फिर सोचता हू कि चलो कभी न कभी इन्हे अपने गलती का एहसास होगा और देश के क्रान्तिकारियों के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए संकल्प लेगें। लेकिन उस समय मेरे दिल में देश के उन युवाओं के प्रति नफरत उत्पन्न हो जाती है जब किसी नर्तकियों के पीछे इन्हे भागते देखता हू। जब किसी आर्केस्टा में इन युवाओं को बदहवास होकर झुमते हुए देखता हू तो मुझे उन युवा से धृणा होती है। सोचता हू जिन्हे अपने देश के पूर्वजो को याद करने की फुर्सत नही है जो उन क्रान्तिकारियों को नमन करने से मुंह चुराते है , वह क्या खाक देश के भविष्य बन सकते है। आइए ....! जिनके त्याग और बलिदान के बदौलत हम हिन्दवासी आज खुद को स्वतंत्रत भारत का नागरिक कहला रहे है। उन सभी मां भारती के सपूतो को नमन करे और संकल्प ले कि इन्हे कभी नही भूलेगें, हर दिन हर समय इनकी कुर्वानी को याद करेगें और इनकी बहादूरी एवं बलिदान के किस्से अपने देश के नौनिहालों को सुनायेगें!

'' कर चले हम फिदा जां-नत साथियो

अब तुम्हारें हवाले वतन साथियों!’

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!! जय हिन्द,जय जननी !!

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