हमारे स्वतंत्रता सेनानी एकखूबसूरत खुशबूदार गुलदस्ते की तरह है कुछ फूल मुरझा कर ख़त्म हो गए कुछ हँसते हँसते ख़त्म हो गए और जो गिने चुने बचें हैं वो हम जैसे लापरवाह एहसान फरामोश लोगों की वजह से गुमनाम जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं एक बार सिर्फ याद करें.जिनकी वजह से हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं और वो ढंग से सांस भी नहीं ले पाए
बटुकेश्वर दत्त भगत सिंह के सहयोगी..
बटुकेश्वर दत्त को कोई सम्मान नहीं दिया गया स्वाधीनता के बाद. निर्धनता की ज़िंदगी बिताई उन्होंने. पटना की सड़कों पर सिगरेट की डीलरशिप और टूरिस्ट गाइड का काम करके बटुकेश्वर ने जीवन यापन किया..
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http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2010/12/101230_batukeswar_book_skj.shtml