आज हम इतनी ऊंचाइयों पर पहुँच कर भी मनुष्य को जाति और धर्म के आधार पर देखते परखते है ऐसा नहीं की इनके विरोध में स्वर मुखरित करना उचित हैलेकिन धर्म की पवित्रता को जिस तरह संकीर्णता से देखा जाता है वह अनुचित है हर धर्म में प्रेम और दयाको सर्वोत्तम और हिंसा और नफरत को निकृष्ट माना जाता है। यदि सब धर्मों की शिक्षा एक है तो ये भेद भाव क्यों इस लिए धर्म को दुसरो की आँखों से नहीं अपने मन की आँखों से देखें। …।