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ढोलक

31 अगस्त 2022

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"ढोलक"
(लेखक:- प्रिन्शु लोकेश)


महाविद्यालय के छात्र वो सब करते हैं सिवा पढ़ाई के और प्रोफेसर्स भी वो सब करवाते हैं सिवा पढ़ाई के। जो छात्र स्नातकोत्तर में पहुंच गया हो ऊपर से साहित्य का विद्यार्थी हो फिर तो उसका कहना ही क्या, वो स्वयं में एक दार्शनिक हो जाता है, प्रोफेसरो और अन्य सहपाठियों की बातों पर अपना पांडित्य दिखाते हुए बिना कुछ बोले एक चोखी मुस्कान दे देता है बस। धार्मिक इतना हो जाता है कि क्लास की हर एक लड़की से उसका आत्मिक संबंध हो जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो एक दम परम बुद्धत्व को प्राप्त हो जाता है। यहां तक की घर छोड़ने की बात करने लगता है किन्तु यशोधरा को साथ लेकर। लड़कियां भी उन बुद्धों के प्रेम में एकदम निरीह होकर निर्बुद्ध हो जाती है।
ये किसी एक कालेज के एक छात्र की कहानी नहीं यही सभी कालेजों के सभी छात्रों की कहानी है। किन्तु बारिश के मौसम में बारिश हर जगह होती है लेकिन बाढ़ कहीं एकात जगह ही आती है। जहां बाढ़ आती है वहां तो फिर पूछना ही क्या। वहां फिर जो सहज और शांत पड़ता है उसे बाढ़ की उत्तेजित लहरें जड़ से ही उखाड़ फेंकती हैं। ऐसी ही एक उत्तेजित बाढ़ की लहरों में फंसा है ढोलक।

महामारी से जूझते हुए आनलाइन क्लास के बाद एक दिन सभी स्टूडेंट्स महाविद्यालय द्वारा निर्धारित तारीख़ पर अपना एसाइनमेंट जमा करने कालेज पहुंचते हैं किन्तु ढोलक हर बार की तरह इस बार भी देरी कर देता है और दो दिन बाद जाता है जबकि एसाइनमेंट जमा करने की तारीख़ निकल चुकी होती है, किन्तु ढोलक लगभग -लगभग सभी प्रोफेसरों से एक सभ्य स्टूडेंट के रूप में परिचित रहता है अक्सर कालेज में हो या आनलाइन क्लास में हो ढोलक सदा एक अच्छा छात्र बना रहता है, जिसका फायदा उसे आज देर से आने के बाद भी मिला उसका एसाइनमेंट जमा हो जाता है।
ढोलक एकदम अपनी मस्ती में शर्ट की दोनों बाहें मोड़े हुए बिना शर्टिंग और बिना प्रेस किया हुआ शर्ट पहने अपना एसाइनमेंट जमा करके चला आ रहा था कि अचानक कैमेस्ट्री गेट के पास उसे सहजो और रोशनी दिख जाती हैं जो ढोलक की क्लास की ही लड़कियां हैं। उन दोनों का चेहरा सूखी बेर की तरह सूखा हुआ था, ढोलक देखते ही समझ गया कि इन लोगों का कोई न कोई कार्य आज अधूरा रह गया जिसकी वजह से दोनों उदास हैं। ढोलक, सहजो की नज़र बचा कर उसकी ओर एक बार देखता है और फिर नजरांदाज करके फिर उसी मस्ती से चलने लगता है।
लेकिन ठहरा तो बेचारा पुरुष ही वैसे भी पुरुष आदिकाल से ही स्त्रियों की सेवा में सब कुछ समर्पित करने की भावना रखते हैं। ढोलक के मन में भी आया होगा कि क्यूं न इनसे पूछा जाए कि क्या बात है? लेकिन ढोलक बिना कुछ बोले उसी मस्ती के साथ बढ़ा जा रहा था कि अचानक शायद रोशनी की आवाज आती है।
ढोलक....

ढोलक चलते-चलते पीछे मुड़ कर देखता है और फिर देखकर ठहर जाता है।

रोशनी कहती है ढोलक इधर आओ जरा..
ढोलक इतना सुनते ही उसके पास कब पहुंच जाता है
यह तो लेखक भी नहीं देख पाता।
मानो जैसा कोई पावर हाउस का स्विच ऑन कर दे और पलक झपकते ही पूरे मोहल्ले में उजियारा हो जाए।

ढोलक उनके पास जा कर सहजो को एकटक देखने लगता है।
तभी रोशनी पूंछती है कि तुम्हारा एसाइनमेंट वगैरह जमा हो गया?
ढोलक सहजो की ओर देखते हुए ; हां हां अभी जमा कर के ही....
तभी बीच में सहजो बोल पड़ती है
सुनिए ढोलक; मेरा आज ये काम नहीं हुआ शायद लेट हो गई
आपको तो सर/मैम अच्छे से पहचानते हैं, करवा दीजिए ना।

ढोलक खुद के लिए सहजो से आप सुनकर एक दम बौरा सा जाता है, शायद महाविद्यालय में आज तक कोई लड़की उससे आप करके नहीं बोली थी।
सहजो का आप ढोलक में एक नया जोश भर देता है वो बहुत प्रसन्न हो जाता है, और बोलता है चलो ।
ढोलक, सहजो और रोशनी के साथ प्रोफेसर रोही के पास जाता है।
ढोलक, नमस्ते रोही मैम
प्रोफेसर रोही, नमस्ते बेटा
ढोलक, सहजो और रोशनी कि ओर इशारा करते हुए- मैम इनका कुछ महाविद्यालय संबंधित कार्य अधूरा है हो सकें तो पूर्ण कर दीजिए।
प्रोफेसर रोही ढोलक से हंसते हुए कहती हैं- सिफारिश करने आए हो।
ढोलक मुस्काराते हुए- नहीं नहीं मैम.....(ढोलक कुछ बोलता है किन्तु वो लेखक समझ नहीं पाता)

प्रोफेसर रोही सहजो से, लाओ क्या है?
सहजो और रोशनी प्रोफेसर रोही के पास चली जाती है और ढोलक आफिस से निकल कर बरामदे में आ जाता है। कुछ ही देर में सहजो और रोशनी भी आ जाती है।
ढोलक- हो गया काम
रोशनी- हां
सहजो- शुक्रिया ढोलक
ढोलक मुस्कुरा देता है।
ढोलक सहजो से पहली बार मिला था शायद उसके बोलचाल से प्रभावित था और पता नहीं क्यूं मुस्कुरा रहा था। सहजो भी खुश नज़र आ रही थी हो सकता है उसका कार्य हो गया था इसलिए खुश रही हो। रोशनी भी प्रसन्न थी।

लेखक देखता है कि
तीनों आपस में बातें करते हुए कालेज परिसर से निकल कर अपने- अपने कमरे की और चले जाते हैं।

*'अगला दृश्य'*

ढोलक कमरे में आ कर शाम को अपने मित्र रोहन और चैतू को फोन पर ये सब बात बताता है। रोहन और चैतू भी ढोलक का मजाक उड़ाते हुए उसकी खूब खिंचाई करते हैं किन्तु बेचारे ढोलक फिर भी प्रसन्न नज़र आता है और इसी तरह तीनों में कुछ देर तक बातचीत होती है फिर तीनों फोन रख कर अपने-अपने काम में लग जाते हैं। लेकिन ढोलक का मन न किसी काम में लगता न पढ़ाई में। उसे तो बस अब हर जगह सहजो ही सहजो दिखाई देने लगती है। सहजो भी शायद ढोलक से बात करने के लिए उत्सुक थी। ढोलक की स्थिति देखकर एक शे'र याद आता है कि

"अंधेरी रात के जल्वे हैं अपने
जिसे भी चाह ले ग़ुमराह कर दे।"

जैसे-तैसे करके लेखक की मदद से ढोलक को सहजो का और सहजो को ढोलक का नंबर मिल जाता है, दोनों में मुसलसल बातचीत होनी शुरू हो जाती है, किन्तु यहां किसके प्रति किसके लिए क्या भाव हैं ये तो ना अभी तक लेखक जान पाता और ना ही ढोलक, सहजो।

एक दिन अचानक ढोलक को सहजो से एकदम चौंधियां देने वाली बात सुनने को मिलती हैं। जिसे सुनकर ढोलक जैसे कुछ क्षणों के लिए अपने शरीर से अलग हो गया हो।

सहजो कहती है कि पता है आपको मुझे क‌ई लोगों ने क‌ई आप से बात ना करने के लिए सजग किया है।
क्या आप सच में इतने बुरे हो....?

ढोलक, मैं कुछ समझा नहीं..आप कहना क्या चाहती हैं?
सहजो, हो गया छोड़िए... लोग जिससे जलते हैं उसके बारे में बुरा भला बोलते ही रहते हैं...
ढोलक, बात मत बनाओ सीधे और स्पष्ट शब्दों में बताओ क्या है?

ढोलक के बार-बार जिद करने पर सहजो फिर बता ही देती है। अच्छा! तो फिर सुनिए...

एक दिन ऐसे ही हम सभी बैचमेट्स के बीच आपकी बात चली तो; रोशनी, चंचल, रोहन, चैतू और अन्य कुछ लड़कियों ने बताया कि जब आप स्नातक में थे तो आपका किसी लड़की से चक्कर-वक्कर था और आपने उसके साथ बहुत ग़लत किया जो बताने तक में मेरे को शर्म आती है वो शायद आपसे सच्चा प्रेम करती थी और साथ ही उन्होंने ये बताया की पता नहीं आपको किस बात का घमंड रहता है कि आप कभी भी क्लास में किसी का सीधा नाम लेकर नहीं बुलाते, किसी को मेढ़किया, तो किसी को चिहुटिया, छोटकिया वगैरह-वगैरह करके बोलते रहते हैं।

ये सब सुनकर ढोलक कुछ देर के लिए तो एकदम झन्ना सा जाता है।
जहां तक ढोलक को लेखक समझता है कि वो तो ऐसा किसी भी लड़की के साथ कभी भी नहीं कर सकता। ये लेखक दावे के साथ कहता है कि यह कहानी सहजो और ढोलक के बीच घृणा पैदा करने के लिए रची गई होगी या फिर सीमा द्वारा सीमा का प्रेम न स्वीकारने पर ढोलक को बदनाम किया गया हो। क्योंकि जिस व्यक्ति के जीवन का सूत्र ही हो "सहजता और प्रेम" वो ऐसा कभी कर सकता?
नहीं...
हां ये तो सत्य है कि ढोलक कभी किसी को सही नाम से नहीं बुलाता और इसे बुरा भी नहीं मानना चाहिए।

ढोलक सहजो की बात सुनकर एक लम्बी सांस लेते हुए बोलता है कि ये आपसे किसने कहा, सहजो हकलाते हुए एक दो नाम लेती है और फिर कहती है रोशनी... रोशनी..!

ढोलक, अच्छा चलिए मैं किसी दिन पूंछूगा रोशनी से।
सहजो, हां ठीक है पूछ लीजिएगा।

सहजो कुछ देर तक चुप रहती है फिर कुछ बोलती है लेकिन ढोलक अच्छे से सुन नहीं पाता शायद।
ढोलक, क्या कहा आपने?
सहजो, यही कि- मैं पहले ही बोल रही थी कि छोड़िए क्या मतलब जो जलते हैं वो तो चुगली करेंगे ही। हमें तो उनकी बातचीत से सौ टका लगता है कि वो सब आपसे जलते हैं।
ढोलक, फिर भी सहजो आप ही बताओ- कोई किसी से जलता है तो क्या इतना भद्दा आरोप लगाए गा। आप ने तो बता दिया है और क्या पता ये लोग अभी तक में कितने लोगों में मुझे बदनाम करे होंगे।
सहजो, जाने दीजिए। आप भी ना , छोड़िए उनकी बात। मुझे तो पहले ही उनकी बात झूठी लग रही थी ,बस मैंने ऐसे ही पूंछ ली।
अच्छा बताइए कल कालेज आ रहे हैं आप, सुनने में आया है कि कल से क्लास आफलाइन लगेंगी।
ढोलक निराश मन से बोलता है कि हां शायद आएं।

अगले दिन सभी लोग महाविद्यालय पहुंचते हैं। ढोलक भी आदतन 10-15 मिनट देरी से अपनी उसी मस्ती के साथ क्लास कि ओर जाता है कि दरवाजे से ही उसे सहजो, रोशनी, चंचल, नंदनी गंगू, गंगू की सहेली और रोहन, चैतू, गब्भू, संगम, सागर, और अन्य क‌ई सहपाठी दिख जाते हैं किन्तु वो रोशनी कि ओर एक बार नज़र भरके देखता है और फिर सीधे अपनी सीट पे जा कर बैठ जाता है। महामारी के बाद आज पहली बार क्लास लगी सभी को ऐसा प्रतीत हो रहा जैसे सभी धरती को छोड़कर स्वर्ग आ ग‌ए हो। सभी छात्रों के चेहरे पर एक ऐसी पवित्र मुस्कान दिखाई देती है कि चंद्रमा भी देखे तो शर्म के मारे घूंघट काढ़ ले। पूराने छात्र नये छात्रों से नये छात्र पुराने छात्रों से परिचय बनाने लगते हैं कि,
तभी अचानक ढीलढाल कपड़ा पहने हुए मुंह में एक साथ दो-दो पान का बीड़ा दबाए हुए, एकदम परम् मौन।
उन्हें देख कर आज भी महिलाओं का तीज व्रत याद आ जाता है। कुछ इस तरह अपने उसी पुराने ही ढंग से क्लास में प्रवेश करते हैं। 'प्रोफेसर डॉल सर'।

प्रोफेसर डॉल सर को देखकर सभी छात्र उनके सम्मान में खड़े हो जाते हैं तभी डॉल सर इशारा करते हैं और सभी छात्र अपनी अपनी सीट पर बैठ जाते हैं।

प्रोफेसर डॉल कुछ देर तक इधर-उधर देखते हैं और वहीं पास में रखी डस्टबिन में एक लम्बा पीक मारते हैं फिर ढोलक की ओर देखते हुए बोलते हैं कि- ढोलक तू भी इसी क्लास में है, कैसी चल रही है पढ़ाई लिखाई।
ढोलक खड़ा हो कर बड़ी विनम्रता से, सब आप लोगों की कृपा है सर ठीक- ठाक ही चल रही है।
प्रोफेसर डॉल- बदमाश कहीं का।

ढोलक मुस्कुरा कर बैठ जाता है, प्रोफेसर जिन छात्रों से परिचित नहीं थे उनका परिचय पूंछने लगते हैं और परिचय पूंछने के बाद किसी एक टॉपिक पर दो-चार मिनट बातें करते हैं और फिर चले जाते हैं।

प्रोफेसर डॉल के जाते ही क्लास में फिर वही चिल्ल-पों का माहौल हो जाता है। उधर चंचल, रोशनी, नंदनी ये सब आपस में कुछ फुसफुसाती है। फुसफुसाते-फुसफुसाते ही उनमें से चंचल उठती है और अपने कुर्ती की बांहीं चढ़ाते हुए ढोलक के आप आती है और बोलती है कि-
ढोलक हम लोगों को तुम क्या कहां करते हो, मेढ़किया, चिहुटिया, छोटकिया।
ढोलक हंसते हुए, इतने दिनों बाद सुध आयी पूछने की पूरा स्नातक निकल गया स्नातकोत्तर का भी छ: महीना निकल गया और आज पूछती हो।

क्लास में सहजो और नंदनी भी बैठीं होती हैं इसलिए ढोलक ज्यादा कुछ नहीं बोला जिससे उन लोगों को कहीं ये ना लगे कि ख़ुराफ़ाती ही है।

चंचल कुछ देर बड़बड़ाती है और फिर जा कर चुपचाप अपनी सीट पर बैठ जाती है।
कुछ ही देर में क्लास की ओर आता हुआ एक व्यक्ति दिखाई देता है। माथे पर एक दिव्य तेज, छोटा कद, शरीर में 25 वर्ष के नौजवान जैसी फुर्ती, क़दम तेजी से इस तरह बढ़ते हैं कि मानों जैसे कोई जिम्मेदार व्यक्ति अपने कर्तव्यों के प्रति इतना सजग हो गया हो की मानों समय को भी निगल जाएगा। हाथ में एक पानी का बॉटल लिए हुए सीधे क्लास में आता है। सभी छात्र एकदम से खुश हो जाते हैं और उनके मुख से निकलता है।

'प्रोफेसर राम सर'

सभी छात्र राम सर के सम्मान में कुछ सेकंड के लिए खड़े होते हैं और फिर बैठ जाते हैं। प्रोफेसर राम सर चेहरे से सिर्फ सहजो को पहचाते थे क्योंकि सहजो अक्सर महाविद्यालय के संस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया करती थी और उस कार्यक्रम के मुख्य प्रोफेसर राम सर और प्रोफेसर ट्विंकल मैम रहा करती थी।
राम सर सहजो से एकात मिनट कुछ पूछते हैं और फिर लगातार 40-50 मिनट पाठ्यक्रमानुसार टॉपिक पर चर्चा करके चले जाते हैं।

प्रोफेसर राम के जाते ही फिर से चिल्ल-पों चालू हो जाता है सभी छात्र एक दूसरे से बात करने लगते हैं ढोलक भी रोहन चैतू गब्भू इन सब से बातें करने करता है किन्तु उसकी निगाह सहजो और नंदनी की ओर घूमती रहती है। कुछ देर में सभी छात्र उठ कर परिसर के बाहर आते हैं और अपने -अपने कमरे की ओर चल देते हैं। सभी छात्रों का क्लास रूम से एक साथ आकर परिसर के बाहर इस तरह से अलग-अलग दिशाओं की ओर चल देना। ऐसे लगता है मानो जैसे किसी स्टेशन से क‌ई यात्री एकसाथ एक रेल में बैठ कर अगले स्टेशन में एक साथ उतरकर बिना किसी हीन भावना के अपने-अपने घर चले जाते हो, किन्तु ढोलक और सहजो का अलग-अलग दिशाओं की ओर जाना, एक अलग ही दृश्य प्रगट करता है उन्हें देखकर लेखक को ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे किसी एक स्टेशन से एक ही इंजन में दो अलग-अलग जगहों की गाड़ी को स्टेशन से रवाना किया गया हो और बीच में कोई एक ऐसा जंक्शन आ जाता हो कि फिर बीच से डिब्बे काट कर दो अलग-अलग दिशाओं की ओर रवाना कर दिया जाता हो।

ऐसे ही दो-चार दिन में जब भी क्लास लगती इसी तरह की क्रिया प्रतिक्रिया होती रहती। धीरे-धीरे ढोलक और सहजो दोनों एक दूसरे के अच्छे दोस्त बन जाते हैं किन्तु क्लास में सभी यही सोचते हैं कि ये दोनों प्रेम संबंध में हैं। नंदनी की क‌ई मजाक मजाक ढोलक और सहजो से कह भी देती है।
क्या बात है सहजो बड़ा देख रही हो ढोलक की ओर
और ढोलक से भी....

धीरे-धीरे क्लास में सब तो शत् प्रतिशत ये झूठी ख़बर फैल जाती है। वैसे भी कहा जाता है कि जंगल की आग और अफवाह कब कहां तक फैल जाती है पता नहीं चलता।
लेखक के अनुसार ढोलक शायद नंदनी को पसन्द करता है किन्तु नंदनी का कुछ समझ में नहीं आता। जहां तक है शायद ढोलक नंदनी से इजहार भी कर देता है किन्तु नंदनी उसे स्वीकार करती है या नहीं इसका पता अभी तक किसी को नहीं। हां ये जरूर पता है यदि ढोलक इज़हार किया होगा तो वो किया जरूर साहित्यिक ढंग से ही होगा क्योंकि उसे साहित्य से उसे जघन्य स्नेह रहता है। लेखक तो यहां तक मानता है कि यदि वो उससे इज़हार किया होगा तो कुछ इस तरह से।

"इस सदी का आख़िरी दिया
अंधकार में पड़े पड़े पुकार रहा है
स्वीकार लो प्रिये।"

लेकिन ढोलक और नंदनी के संबंध में ज्यादा कुछ कहा नहीं जा सकता।

*"अगला पड़ाव"*

चैतू, रोहन, गब्भू, संगम ये सब ढोलक के खास मित्र हैं स्नातक तक तो मानो दोस्त नहीं जान‌ हैं। किन्तु बड़े बुजुर्ग जो कहा करते हैं कि जो जितना तुम्हारे साथ जितना अपनापन दिखाता है वो उतना वास्तव में होता नहीं है। कहा जाता है कि ढोलक को अक्सर लड़कियों के बीच में बदनाम करने का काम इन्हीं में से किसी एक द्वारा किया जाता रहा। क्योंकि लड़के स्वाभाविक आपस में हर तरह की बातें किया करते है। सड़क चलते मजाक के ही मूड में बोल देते हैं की वो देख तेरी भाभी जा रही है। और इसी तरह हंसी मजाक करते हुए आते जाते हैं। वैसे देखा जाए तो ये आजकल के लड़को में एक साधारण सी बात हो गई है, लेकिन बड़ी बात तो ये होती है कि क्लास में अक्सर लड़के ये बताते हुए बहुत गर्व महसूस करते हैं कि मेरा इतनी लड़कियों के साथ संबंध है, जिसका जितनी लड़कियों के साथ गलत संबंध रहता है वो उतना ही बता कर गर्व महसूस करता, ये सब सुनकर ढोलक भी हंस देता और अपनी एकात झूठी और मनगढ़ंत कहानी सुना देता। ज्यादातर अन्य लड़कों की भी कहानी झूठी ही हुआ करती थी वो तो बस रौब जमाने के उद्देश्य से बोल देते थे बस। किन्तु ढोलक की झूठी कहानियों को भी किसी जासूस के माध्यम से लड़कियों के बीच सत्य बता के परोसा जाता। इसी तरह धीरे-धीरे स्नातक में ही ढोलक बहुत बदनाम हो चुका होता है किन्तु उसे ये सब पता नहीं चलता । जब सहजो उसे एक दिन फोन पे अचानक ये सब बताती है। तब बेचारा उस दिन ये सब जान पाता है।
जैसा कि पूर्व में सहजो कहती है कि उसे ये सब बात रोशनी से पता चला करता है और ये बात ढोलक के भी ध्यान में रहा करती है तभी अचानक ढोलक और सहजो को लेकर एक विवाद उत्पन्न होता है उस विवाद में रोशनी का भी नाम आता है , विवाद इस बात को लेकर होता है कि रोशनी, नंदनी सब आपस में कहा करती हैं कि सहजो ढोलक से प्रेम करती है किन्तु ये बात शायद ढोलक नहीं समझ पा रहा। लेकिन ये बात किसी-न-किसी माध्यम से ढोलक को पता चल जाती है कि उसके बारे में सहजो को लेकर क्या कहा जा रहा है, ये सब बात सुनते ही ढोलक सीधे सहजो से पूंछ पड़ता है।
सहजो यदि मैं जो सुन रहा हूं ये सब सही है तो आप मुझसे सीधे बताओ मैं बहुत सीधा हूं आराम से मान जाऊंगा। सहजो कहने लगती है, ढोलक आप पगला तो नहीं ग‌ए हम और आप केवल दोस्त है बस और मेरे अंदर ऐसा वैसा कुछ नहीं। फिर इसी बात को लेकर पूंछ- ताछ होनी शुरू हो जाती है जो एक छोटे विवाद का कारण बन जाती है किन्तु इसी विवाद से ढोलक को मौका मिल जाता है रोशनी से खुल के बात करने का और वो उससे सब पूंछने लगता है कि तुम्हें ये बस कुछ कौन बताता है जो तुम सहजो अभी तक में बताती आ रही हो । रोशनी अजीब ढंग से ढोलक के मित्रों में से एक की ओर इशारा करती है और उसके इशारा करते ही वो व्यक्ति ढोलक की निगाहों से ऐसे उतरता है जैसे ठाठ से पानी।  

ढोलक और सहजो दोनों को पता चल जाता है कि ये बिचवैया आय मजा ले रहा है लेकिन वो दोनों बिचवैये का तिरस्कार कर देते है और दोनों अपनी दोस्ती और मस्ती में पुनः आ जाते हैं।

बात यहीं खत्म नहीं होती ढोलक भी जिस नंदनी को सहजो की आड़ से ताका करता था एक दिन उससे अपने दिल की बोल देता है किन्तु वो यह कर के टाल देती है कि तुम जब सहजो जैसी खुबसूरत लड़की को इज्ज़त नहीं दिए तो मुझे क्या ख़ाक दोगे। ढोलक नंदनी को बहुत समझाने की कोशिश करता है किन्तु नंदनी अपनी जिद नहीं छोड़ती। नंदनी ढोलक को साढ़े तीन घंटे में बहुत कुछ कही जिस पे तो एक पूरा का पूरा उपन्यास लिखा जा सकता है किन्तु उसका बार -बार यही कहना कि सहजो तुम्हें सच में चाहती है तुम एक बार सहजो से पूछो तो सही।

ढोलक एकदम शांत भाव से उदास बैठा रहता है शायद वो ये सोचता रहता है कि क्या मतलब ऐसे लोगों से जिन्हें भावनाएं समझ तक ना आती हो इन लोगों से तो संपर्क ही ख़त्म देना बेहतर होगा।
कि तभी अचानक सहजो का फोन आ जाता है।
ढोलक उदास ही मन से सीधे सहजो से संपर्क करता है और सीधे सहजो की बातों को काटते हुए बोलता है कि हम दोनों के बारे में पता नहीं सब लोग क्या- क्या बोलते रहते हैं अब मैं सीधे और साफ- साफ कहता हूं कि आपको मेरे साथ अगर प्रेम संबंध में रहना हो तो रहिए नहीं तो मेरा और आपका कोई संबंध ही नहीं, मुझे बिना मतलब में अब और बदनाम नहीं होना। प्रेम संबंध के लिए सहजो नहीं मानती, हो सकता है शायद पहले से ही उसका कोई प्रेमी रहा हो। ढोलक और सहजो दोनों उदास हो कर फोन रख देते हैं औश्र जीवन भर के लिए एक दूसरे से अलग हो जाते हैं। लेकिन ढोलक का मन अभी भी नंदनी की ओर खिंचा चला जाता है।
दूसरे दिन फिर ढोलक एक बार नंदनी से किसी बहाने संपर्क करता है और फिर पूछता है आपने विषय में किन्तु नंदनी इस बार भी सीधे साफ शब्दों में नाही कर देती है ।
एक दिन नंदनी कुछ ऐसा सुन लेती है कि उस दिन से तो ढोलक से बात ही करना बंद जैसे कर देती है। नंदनी कालेज जाती है और वहां गंगू के मुंह कुछ ढोलक के संदर्भ में ये सुन लेती है कि ढोलक इसी तरह सभी लड़कियों से मजाक करता रहता है।‌ हो सकता है कभी कोई मजाक किया रहा होगा ढोलक गंगू से।

सत्यता को नंदनी एक पढ़ी लिखी होकर के भी समझ नहीं पाती और ढोलक भी इस बार खुद को इतना बदनाम और इतना बेइज्जत महसूस करता है कि वो भी कसम खा लेता है कि वो अब किसे से कोई मतलब नहीं रखेगा और फिर सभी लोगों से संपर्क तोड़ देता है।

ढोलक की ये महाविद्यालय की कथा एक व्यक्ति के संपूर्ण जीवन की कथा हो सकती है जैसे कि जब ढोलक महाविद्यालय में आता है तो उसका यहां कोई अपना नहीं रहता, ठीक उसी तरह जिस तरह जीव का इस संसार में आने पर, किन्तु धीरे- धीरे वो सभी लोगों में घुल मिलकर उन्हें अपना समझने लगता है किन्तु जब ढोलक महाविद्यालय छोड़ने लगता है तो वो भी ठीक उसी तरह जिस तरह जब कोई जीव ये संसार छोड़ता है तो उसका अपना कोई नहीं रहता। सिर्फ अंत में एक पहचान रह जाती और रिश्ते खत्म हो जाते हैं।
इन्हीं बातों से 'सत्यम् शुक्ला सरफरोश' का एक शे'र याद आता है कि

"वक्त ऐसा है कि जिससे दोस्ती थी
वो महज पहचान का अब आदमी है।"

~





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इस कहानी के सारांश में यही कहना चाहूंगा कि कॉलेज जीवन ही छात्र जीवन का स्वर्ग है

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