shabd-logo

common.aboutWriter

,

no-certificate
common.noAwardFound

common.books_of

common.kelekh

शायरी आ गई

16 अप्रैल 2018
1
0

हो गया इश्क़ तो मौसिक़ी आ गई हमसे मिलने गले ज़िंदग़ी आ गई ,दर ख़ुदा के गए लाख सज़दे किए अब मआनी सही बंदग़ी आ गई ,तल्ख़ तेवर अभी तक हमारे रहे क्या हुआ जो हमें सादगी आ गई ,हो रहा है असर आ रहा है नज़र बात ही बात में मसख़री आ गई ,वो कहे जा

हर किसी में ही शराफत हो ज़रूरी तो नहीं

5 अप्रैल 2018
2
0

आपको हमसे मुहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं आपकी हमपे इनायत हो ज़रूरी तो नहीं एक पत्थर से लगा बैठे लगन क्या है बुरा बस ख़ुदा की ही इबादत हो ज़रूरी तो नहीं ख़्वाब आँखें ही दिखाती हैं ख़ता दिल की कहाँ ख़्वाब अंजाम ए हकीक़त हो ज़रूरी तो नहीं हाँ चलो माना शरीफों ने बसाया ये नगर ह

चाँद पर सैर को जा रहीं बेटियाँ

4 अप्रैल 2018
0
1

चाँद पर सैर को जा रहीं बेटियाँ जीतकर ट्रॉफियाँ ला रहीं बेटियाँ कोख में मारते हो भला क्यूँ इन्हें ज़ुर्म क्या जो सज़ा पा रहीं बेटियाँ अस्मतें जो सरेराह लुटतीं कहीं मौत बेमौत अपना रहीं बेटियाँ बैठ डोली चलीं जब पिया की गली क्यूँ दहे

जीवन का खेल

22 मार्च 2018
0
0

जीना मरना खोना पाना हँसना रोना आना जाना जीवन का है खेल निराला खेल रहा जग का रखवाला बिखरे जब श्वासों की मणिका देह उड़े फिर तिनका तिनका क्या है प्यारे हाथ हमारे कर्म निभा तू चलता जा रे दीक्षा द्विवेदी सारस्वत बावरी § Deeksha

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए