हो गया इश्क़ तो मौसिक़ी आ गई हमसे मिलने गले ज़िंदग़ी आ गई ,दर ख़ुदा के गए लाख सज़दे किए अब मआनी सही बंदग़ी आ गई ,तल्ख़ तेवर अभी तक हमारे रहे क्या हुआ जो हमें सादगी आ गई ,हो रहा है असर आ रहा है नज़र बात ही बात में मसख़री आ गई ,वो कहे जा रहे हम सुने जा रहे फिर हुआ इल्म के शायरी आ गई ,आरज़ू ख़ुदक़ुशी की नहीं थी हमें शाद था दिल कहाँ आशिक़ी आ गई ,लड़खड़ाते क़दम होश गाफ़िल न थे ग़मज़दा थे ज़रा मयक़शी आ गई ,मोहसिन थाम अपने जिगर बैठिए महफ़िलों में ग़ज़ल बावरी आ गई -दीक्षा सारस्वत बावरी