7 सितम्बर 2021
साजन आकरके गये , जस का तस यह गेह।
बिन बरसे बादल गया , तपे धरा की देह।।
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निशब्द हूँ आप जैसे महानभावो की रचना पढ कर अच्छा लगता है
इतने प्यार के लिए बहुत शुक्रिया यूं ही प्यार बना रहे
<p>दूर बसे दिल में नजदीक दिखाय सुपंथ मिटा अंधियारी।</p> <p>दीजिए ज्ञान विज्ञान विशेष यही
<p>नदिया के तट कब मिले , पास-पास पर दूर।</p> <p>ऐसे ही हम तुम रहे , मिलने &n
<p>साजन आकरके गये , जस का तस यह गेह।</p> <p>बिन बरसे बादल गया , तपे धरा &nbs
<p>कितनी भागमभाग है , कितनी ज्यादा दौड़।</p> <p>महानगर में देखिए , मची
<p>करे यदि सूर्य ईर्ष्या तम तमाम करेगा &
<p>निंदिया उस दिन से नहीं , आई मुझको हाय।</p> <p>छोड़ हाथ से हाथ जब , तुमने बोला बा
<p>याद हमारी जो तुम्हें , आती होती काश।</p> <p>दिल में अपने पालते , मि
<p>आगे लम्बी धूप है , पीछे छूटी छांव।</p> <p>चलने को मजबूर हैं , हम सब
<p>नदी अकेली बह रही , पीछे छूटा गा
<p>भादों तक सूखा गया , सावन रहा उदास।</p> <p>बुझ ना पाई रात में , इन अधरों की प्यास।।</p>
<div>वीर सपूत बढ़ाए खिलाए उठाए पुकारत मात सुमाता।</div><div>शक्ति रमी इतनी नर में तज स्वर्ग धरा
<div><b><i>साजन आकरके गए , जस का तस यह गेह।</i></b></div><div><b><i>बिन बरसे बादल