भोली भाली थी बड़ी, मासूम बहोत, भोंदू भी बहोत थी कोई कुछ कह भी दे तो उसे जवाब नहीं सूझता। चोटिल भी हो जाती पर रियेक्ट नहीं करती पर पढ़ाई में होशियार। उम्र भी बहुत छोटा था फिर भी घर के छुटपुट काम निपटा दिया करती स्कूल जाने से पहले। घर आने के बाद भी छुटूर पुटूर निपटा देती, कुएं से पानी खींच लाती माँ के आने से पहले। स्कूल भी दूर ही था, पैदल जाया करती, रास्ते में एक बड़ी सी खूंखार लड़की अक्सर उसे पीट दिया करती कभी कभी घर से मिले पचीस-पचास पैसे भी उस खूंखार के हाथ लग जाते और वो घर मे डर के मारे बताती भी नहीं कि कहीं डरपोक समझ कर और डांट न पड़ जाए। और भी साथी स्कूल जाते थे साथ में पर स्कूल नियमितता के मामले में अकेली थी इसलिए उस खूंखार से पिटाई खाने का चांस भी इन्ही मोहतरमा को मिलता। मजेदार बात तो ये है कि उसके हाई स्कूल पहुंचते पहुंचते उस खूंखार की शादी भी हो गयी और बच्चे भी। बाद के दिनों में जब वो स्कूल से वापसी के समय बस से उतर कर घर आ रही होती तो वो खूंखार जोर जोर से पुकारती और और बैठने को कहती वो अब प्यार वाली दीदी बन गयी थी।
सच मे उस भोंदू का बचपना यादों को चोटिल भी कर देता है और गुदगुदी भी।