ज़माने को इतनी सी बात की चुभन है
कि मेरे मिज़ाज में ज़रा आवारापन है
बात कहता हूं तो बेबाक कह देता हूं
अपना तो यही अंदाज यही बांकपन है
छेङते हो तो इक मेरे दिल को ना छेङो
ना जाने कितने क़िस्से इसमें दफन है
मुंसिफ़ ओ हाक़िम ओ ज़ालिम सब मिल बैट्ठे
अब किस उम्मीद पे कहूं ये मेरा वतन है
शे’र कहने लगे आज ‘बलराज’ जैसे भी
ये कहां का हुनर है और कहां का फ़न है