02/06/2022
गुरुवार
बस कुछ यूं ही।
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ऐ वक़्त ऐसे तो रुसवा न करता ।
आँखों की गलियों को तन्हा न करता ।
शख्सियत का हमारी तू हो जाता कायल ।
दो पल को गर, गुफ्तगू हमसे करता ।
स्वरचित एवं मौलिक 📝✍
सरिता बजाज गुलाटी "सिया"