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छठ गीत और उसकी प्रासंगिकता

24 अक्टूबर 2017

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दीवाली का शोर अभी थमा ही था कि लोक आस्था का महापर्व छठ की तैयारी शुरू हो गयी। छठ पूजा और उसकी तैयारी का एक महत्वपूर्ण घटक है, छठ पूजा से से संबंधित पारंपरिक गीत। इन गीतों को गाये जाने की शुरुआत उतनी ही पुरानी है जितनी छठ की परंपरा। पहले इन गीतों को घर के महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप में गाया जाता था। परंतु जैसे जैसे संयुक्त परिवार की परंपरा टूटती गई और बिहारी बाहर जा के बसते चले गए छठ पूजा गीत का सामूहिक गान विलुप्त होता चला गया। बावजूद इसके पारंपरिक छठ पूजा गीत ने अपना महत्व और मधुरता नहीं खोया और इसका श्रेय बहुत हद तक बिहार कोकिला शारदा सिन्हा को जाता है, जिन्होंने न सिर्फ इन गीतों को अपनी मधुर आवाजों से सजाया बल्कि इन गीतों को विश्व पटल पर पहुंचाने का भी काम किया। विश्व पटल का जिक्र कई लोगों को अतिशयोक्ति लग सकती है, पर मैं ये बात इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि छठ अब केवल बिहार में ही मनाया जाने वाला पर्व नही रहा बल्कि बिहारी जहाँ गए अपने साथ छठ को भी ले गए चाहे वो अमेरिका हो, कनाडा हो या ऑस्ट्रेलिया हो। उन जगहों पर जहाँ बहुत ही सीमित मात्रा में बिहारी रहते हैं, उनके लिए छठ गीत को गुनगुनाने का एक मात्र जरिया ऑनलाइन और पेन ड्राइव में बंद ये गाने ही होते हैं। शारदा सिन्हा के अलावे इन गीतों की परंपरा को आगे बढ़ाने का काम अनुराधा पौडवाल और कल्पना पटवारी ने भी बखूबी किया है।

छठ पूजा के दौरान गाये जाने वाले इन गीतों का विशेष महत्व है। इन्ही गीतों के माध्यम से छठ व्रती पूरे पूजा विधान का वर्णन करती है, अपनी कल्पना और श्रद्धा की आंखों से छठी मईया का बड़ा ही मनमोहक आकार खींचती है। इन गीतों के माध्यम से छठी मईया का जो रूप प्रस्तुत किया जाता है वह सुनने वालों के आंखों के सामने मानो साक्षात हो जाता है और हम लोग इन गीतों के माध्यम से ही छठी मईया का दर्शन करते हैं क्योंकि किसी फ़ोटो इत्यादि में वो मौजूद नही होती हैं। इन्ही गीतों के माध्यम से व्रती एकमात्र मूर्त भगवान भास्कर की आराधना भी करते हैं, उस सूर्य की आराधना करते हैं जो समूचे विश्व को ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं। छठ व्रती इन्ही लोकगीतों के माध्यम से अपनी मांग भी रखते है, भगवान से वार्तालाप भी करते है। मतलब छठ के दौरान गाये जाने वाले गीत केवल गीत नही बल्कि पूजा, परंपरा, सामाजिकता, भक्त, भगवान और प्रकृति इन सबके बीच जो अन्योन्य संबंध है उसको बखूबी दर्शाता है।

मैं छठ गीत के संबंध में इन्ही कुछ विशेषताओं को यहां बताना चाहता हूँ। इन विशेषताओं का जिक्र करने के साथ साथ एक और बात का ध्यान रखना जरूरी है कि इन गीतों की रचना कई वर्ष पहले हुई होगी और इन गीतों को रचने वालों की सोच कितनी उच्च थी ये इन गानों को सुन के वखूबी पता चल जाता है।

वैसे तो कई गानों के माध्यम से छठ व्रती कई मांगों को रखती है। पर इन मांगों में महत्वपूर्ण है "बेटी की मांग", गीतों के माध्यम से न सिर्फ बेटी की मांग की जाती है बल्कि उसके लिए पढ़े लिखे वर की भी मांग की जाती है। एक अन्य गीत में छठ पूजा के दौरान होने वाले कई प्रयोजनों में बेटी की भूमिका को दर्शाते हुए बेटी की मांग छठी मईया से की जाती है। किसी और गीत में पुत्र के साथ बेटी की भी मांग की जाती है और उसे लक्ष्मी का रूप बताया जाता है। अब इन गीतों की रचना कई दशकों पहले हुई थी फिर भी इन गीतों में बेटी को प्रमुखता दिया गया, तो ये काबिलेतारीफ है और सलाम है उन समय की महिलाओं को जो बेटी मांगने का सोच रखती थी। आजकल विभिन्न मंचों से "बेटी बचाओ" का नारा दिया जा रहा है, जिसको छठ गीत के रचयिता महिलाओं ने कई दशक पहले ही सोच लिया था।

छठ गीत के कई गानों में गंगा मईया, नदी, पोखर इत्यादि की महत्ता को बखूबी दर्शया गया है, क्योंकि जल के बिना छठ पूजा संभव नही तो इन गीतों के माध्यम से जल की भी पूजा की जाती है और उनके सामने भी अपनी व्यथा को रखा जाता है। जल की महत्ता को समझने और उसे निर्मल रखने की जो सोच कई दशक पहले छठ गीतों के रचनाकार ने दिखाया वो आज भी कितना प्रासंगिक है वह प्रदूषण और बाढ़ की स्थिति देख के समझा जा सकता है।

एक गीत में छठ व्रती, छठी मईया से सवाल भी करती हैं की उन्हें आने में इतनी देर क्यों लगी। गीतों के माध्यम से भक्त और भगवान का ऐसा संबंध देखिये कि छठी मईया देर से आने का कारण बताती है कि वो बांझ की गोद भर रही थी, वो कोढ़ी को काया दे रही थी, वो अंधे को आंख दे रही थी इसी लिए उन्हें देर लग गई। इस तरह की गीतों की कल्पना उस समय करना कितना महत्वपूर्ण है कि इन गीतों में भगवान भक्त को सवाल करने का विकल्प भी दे रहे है और जबाव भी, पर आज के समय मे एक सामान्य इंसान से सवाल करना भी मुश्किल है।

एक अन्य गीत में छठ व्रती शादी के बाद ससुराल में होने वाले दिक्कतों को छठी मईया से सुधारने की गुहार लगाती है। आज के समय में भी यह कितना प्रासंगिक है, जब हम आये दिन घरेलू हिंसा की बाते सुनते हैं।

कुल मिला कर छठ व्रत के दौरान गाये जाने वाले गीतों में महिला और उनकी समस्या भी प्रमुखता से छाई रही हैं, क्योंकि अधिकांशतः घर की प्रधान महिला के द्वारा ही इस व्रत का अनुष्ठान किया जाता है, तो परिवार के लिए सुख समृद्धि मांगते हुए अपनी मांग भी छठी मईया के समक्ष रखती है। छठी मईया पर भरोसा ही है कि वो खुद दुखों से ग्रसित होने के वावजूद उनसे बेटी की मांग प्रमुखता से करती हैं और इन गीतों से इस पर्व को अनूठा बनाती है।


ये मेरी गीतों के सामान्य समझ पर आधारित लेख है तो आपका सुझाव हमेशा स्वीकार्य होगा।

Bandhu Uvaach
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Najariaa
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छठ पूजा और पर्यावरण

25 अक्टूबर 2017
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पर्यावरण का हम सबके जिंदगी में कितना महत्व है वो किसी से छुपा नही है। ये अलग बात है कि हम उसे याद नही करना चाहते। पर जब भी हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को याद करते हैं तो पर्यावरण को पूजने के कई साक्ष्य जहन में आ ही जाते हैं। अब जबकि अभी छठ पूजा की गूँज चहुं ओर है तो इस समय पर्यावरण के बारे में बात

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