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ग्रीष्म ऋतु

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सुखि गइलें पोखरा आ जर गइलें टपरी , ए बदरी । कउना बात पे कोहाइ गइलू ए बदरी । देखा पेड़वा झुराई गइलें ए बदरी । बनरा के पेट पीठ एक भइलें घानी । कहा काहें होत बाटे राम मनमानी । गोरुअन के बेटवा क पेटवा ह

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