रस्ते अनजान लगते थे ......पर कोई है जिसने क़दमों को गुजरने की तवज्जो की .......कोई है जिसकी कही अनकही बातें इन रास्तों के काटों को बयां कर देते हैं कुछ फूल के पत्ते भी थे इनमे .......जब मुश्किलों के पहाड़ खड़े होते ........बेहिस से हो जाते ......वो खड़ा दिखता ...कभी उमंग बन कर..... कभी तरंग बन कर .....साथ होते हैं वो .....जिन्हें हम महसुस करतें हैं ........उन्हें हम गुरु कहते हैं