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ये बारिश कुछ और ही याद दिलाये

22 अगस्त 2016

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आखिरकार मैं भीग ही गया


जिस बारिश की दरकार न थी

न जाने कितनी ख्वाहिशे आंसू बने

न जाने कितने इंतकाम हुए

जब भी रस्ते मुश्किल लगे

न जाने कितने राहगीरो के लगाम लगे

मंजिलें इन कड़कती बिजलियों से दूर लगने लगे

पर उमीदों की छतरी से

रस्ते आसान लगे


आखिरकार मैं भीग ही गया



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ये बारिश कुछ और ही याद दिलाये

22 अगस्त 2016
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आखिरकार मैं भीग ही गया जिस बारिश की दरकार न थीन जाने कितनी ख्वाहिशे आंसू बने न जाने कितने इंतकाम हुए जब भी रस्ते मुश्किल लगे न जाने कितने राहगीरो के लगाम लगे मंजिलें इन कड़कती बिजलियों से दूर लगने लगे पर उमीदों की छतरी से रस्ते आसान लगेआखिरकार मैं भीग ही गया

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गुरु .....हमारे हमसफ़र

4 सितम्बर 2016
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रस्ते अनजान लगते थे ......पर कोई है जिसने क़दमों को गुजरने की तवज्जो की .......कोई है जिसकी कही अनकही बातें इन रास्तों के काटों को बयां कर देते हैं कुछ फूल के पत्ते भी थे इनमे .......जब मुश्किलों के पहाड़ खड़े होते ........बेहिस से हो जाते ......वो खड़ा दिखता ...कभी उमंग बन कर..... कभी तरंग बन कर ...

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अमन

8 सितम्बर 2016
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जाने इस मुल्क को क्या हो गयाहै ..........जो था कभी अमन अब वो बेचैन सा हो गया है ......लोग चाहे अनचाहे कुछ तो कर रहे हैं ......पर समझ में नहीं आता ये क्या कर रहे हैं ...बेहिस हो कर रूक जाता हूँ .....रास्तों से बहुत आहात सी आती है .....सुनाता हूँ समझता हूँ और फिर बेहिस हो कर रुक जाता हूँ ......मैं खुद

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