आखिरकार मैं भीग ही गया
जिस बारिश की दरकार न थी
न जाने कितनी ख्वाहिशे आंसू बने
न जाने कितने इंतकाम हुए
जब भी रस्ते मुश्किल लगे
न जाने कितने राहगीरो के लगाम लगे
मंजिलें इन कड़कती बिजलियों से दूर लगने लगे
पर उमीदों की छतरी से
रस्ते आसान लगे
आखिरकार मैं भीग ही गया