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हरिगीतिका

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नफरत नहीं उर में रखें, अब प्रेम की बौछार हो। इक दूसरे की भावना का अब यहाँ सत्कार हो।। अब भाव की अभिव्यक्ति का,ये सिलसिला है चल पड़ा। ये लेखनी सच लिख सके ,जलते वही अँगार हो ।। ये रूठने का सिलसिला क्यों आप अब करने लगे । अनुराग से तुमको मना लें ये हमें अधिकार हो। जीवन चक्र का सिलसिला यूँ अनवरत चल

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