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हरीश की डायरी

हरीश

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harish ki dir

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पुस्तक के भाग

1

मन को प्राण दो, दो इस पहलु का हल

13 मई 2016
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मन को प्राण दो, दो इस  पहलु का हलवीराने से मन आँगन मैं , कर दो कोलाहल  नीरवता का है अँधियारा, मुक्त व्योम में लगती है कारा  ( जेल)दूरी को सामान कर दो, लो अब कोई पहल. .....वीराने से मन ........चौखट खाली चौबारे खाली, चिड़िया नहीं चहकने वाली ध्वनि का आह्वान कर दो, वीराना जाये जल......वीराने से मन ......

2

तुम ....

17 मई 2016
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तुम मेरे जीवन की सबसे सुखद घड़ी होदिल के हर गहनों में, साँसों जैसी जड़ी हो.... जीवन में मधुमास हो, चन्दन जैसी साँस हो सूख गए आँगन में, सावन की एक झड़ी हो......... तुम मेरे जीवन  शंकर की शक्ति से ,हम तुम जब से मिले हैं अनुभूत हुआ विष्णु के सानिध्य में ,लक्ष्मी जैसे खड़ी हो  ..... तुम मेरे जीवन  बरबस सर

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