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तुम ....

17 मई 2016

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तुम मेरे जीवन की सबसे सुखद घड़ी हो

दिल के हर गहनों मेंसाँसों जैसी जड़ी हो....

 

जीवन में मधुमास होचन्दन जैसी साँस हो

सूख गए आँगन मेंसावन की एक झड़ी हो......... तुम मेरे जीवन 

 

शंकर की शक्ति से ,हम तुम जब से मिले हैं

अनुभूत हुआ विष्णु के सानिध्य में ,लक्ष्मी जैसे खड़ी हो  ..... तुम मेरे जीवन 

 

बरबस सरल हुई है, जीवन की परिभाषा,

यौवन से सिंचित हैमन की हर अभिलाषा 

अदृश्य हुए तमस के डेरेतुम वो जादू की छड़ी  हो.... तुम मेरे जीवन 

 

बिछ जाते हैं नयन तुम्हारेमेरे मिलन की प्यास में 

हो अधीर सीता जैसे राम मिलन की आस में

महकी हुयी माला में , तुम फूलों की लड़ी हो..... तुम मेरे जीवन 

 

ठहर गयी ओस सीप परमोती बनने की आस में

स्वछंद हुयी गोपी वन मेंमुरलीधर की रास में

राधा के गजरे में , तुम चंपा की कलि हो ...... तुम मेरे जीवन 

 

अंगअंग   रोमांचित है, पाकर साथ तुम्हारा

पुलकित होता है जैसे नदिया संग किनारा

जीवनं के हर द्वन्द में, संग पर्वत जैसे खड़ी हो.... तुम मेरे जीवन 

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मन को प्राण दो, दो इस पहलु का हल

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मन को प्राण दो, दो इस  पहलु का हलवीराने से मन आँगन मैं , कर दो कोलाहल  नीरवता का है अँधियारा, मुक्त व्योम में लगती है कारा  ( जेल)दूरी को सामान कर दो, लो अब कोई पहल. .....वीराने से मन ........चौखट खाली चौबारे खाली, चिड़िया नहीं चहकने वाली ध्वनि का आह्वान कर दो, वीराना जाये जल......वीराने से मन ......

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तुम ....

17 मई 2016
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तुम मेरे जीवन की सबसे सुखद घड़ी होदिल के हर गहनों में, साँसों जैसी जड़ी हो.... जीवन में मधुमास हो, चन्दन जैसी साँस हो सूख गए आँगन में, सावन की एक झड़ी हो......... तुम मेरे जीवन  शंकर की शक्ति से ,हम तुम जब से मिले हैं अनुभूत हुआ विष्णु के सानिध्य में ,लक्ष्मी जैसे खड़ी हो  ..... तुम मेरे जीवन  बरबस सर

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