निज भाषा उन्नति अहे,सब उन्नति को मूल
महान साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अपनी भाषा को सब प्रकार की उन्नति का मूल कारक बताया था।अपनी
भाषा अर्थात जिस जगह हम रहते हैं ,उस विस्तृत भूभाग
में बोली जाने वाली भाषा।इस प्रकार हिंदी हमारी मातृ-
भाषा है,क्योंकि वह विस्तृत भू-भाग में बोली जाती है।
लेकिन हिंदी अभी भी राष्ट्रभाषा के पद पर मनोनीत
होने के लिए संघर्षरत है। राष्ट्रभाषा को जिन विशेषताओं
से युक्त होना चाहिए,वे सभी विशेषताएं हमारी हिन्दी
भाषा हैं-
वह जनसंपर्क की भाषा है।
वह वैज्ञानिक शब्दावली से युक्त है।
उसकी अपनी उपभाषाएं, बोलियां,उपबोलियां हैं।
उसका अपना विशाल शब्द-भंडार है।
उसका अपना शब्द-कोश है।
उसकी अपनी लिपि है।
देवनागरी लिपि को वैज्ञानिक लिपि माना जाता है।
उसमें अन्य भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करने
की क्षमता है।
उसका साहित्य-भंडार समृद्ध है।
संपूर्ण विश्व में बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी का
का चतुर्थ स्थान है।
ऑक्सफोर्ड शब्दकोश में हिंदी के शब्दों को शामिल
किया जाने लगा है।
हिंदी सिर्फ हिन्दुस्तान में ही नहीं,बल्कि फिजी,नेपाल
माॅरिशस जैसे कई देशों में भी बोली जाती है।
हिन्दी भाषा की राष्ट्रभाषा की तमाम विशेषताओं से
युक्त होने के बाद भी राष्ट्र की भाषा नहीं बन पाई
क्योंकि अंग्रेजीपरस्त लोग इसे राष्ट्र भाषा के रूप में
आसीन नहीं होने देना चाहते। उनकी दृष्टि में हिंदी
में वे विशेषताएं नहीं है,जो अंग्रेजी में है।तमाम विरोधों
के बाद भी संविधान सभा ने १४ सितंबर १९४९ को
हिंदी को राजभाषा बनाने का फैसला किया गया, लेकिन
इसके वाबजूद भी अभी भी हिंदी पूर्ण रूप से राज-काज
की भाषा नहीं बन पाई,तमाम नियम और कानून बनने
के बाद भी वह अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है।
इसका बहुत बड़ा कारण हम लोग भी हैं,जो हिंदी को
बोलने में संकोच अनुभव करते हैं और टूटी-फूटी अंग्रेजी
बोलकर अपने आपको गौरवांवित महसूस करते हैं।
भाषा-ज्ञान कभी बुरा नहीं होता,एक नहीं अनेक
भाषाएं सीखिए लेकिन हिंदीभाषी होने पर लज्जा
महसूस न कीजिए। वैश्विक स्थिति को देखते हुए
अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है, लेकिन
इसके लिए अपनी मातृभाषा का परित्याग करना
बेवकूफी है।हम अपने बच्चों को हिंदी भाषा का
सम्मान करना सिखाएं।उसे व्यवहार में लाना सिखाएं,
वह हमारी पहचान है ।विश्व स्तर पर सम्मान पा चुकी
हिंदी अपने ही देश में उपेक्षित रहे ये अच्छी बात नहीं।
उसकी विशालता देखिए कि हम उसे कितना ही तोड़े-
मरोड़े फिर भी वह अपनी मधुरता और सरसता नहीं
खोती।आइए संकल्प लें कि हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा
बने और हम सब यही प्रयास करें।